जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
दिमाग के अंदर तमाम औरत-मर्द ही लवर्स या कपल होते हैं। जब तक यह ख्याल जड़ से नहीं मिटाया जाता, समकामियों में यह नाटक चलता रहेगा। एक व्यक्ति नरम बनो, एक व्यक्ति सख्त! मानो सख्त का मतलब है पुरुष और नरम का मतलब है, औरत! चरम नाटक का मंजर होता है-ड्रग-क्विन होना! ड्रग क्विन! जब लड़के, लडकियों की पोशाक पहनकर, हबह लड़की बने, घूमते-फिरते हैं। इधर समलैंगिक लड़कियों में बहुत-सी चमड़े की पोशाक पहनती हैं। ये लोग क्या पहनें-न पहनें, इसकी वजह, मेरे ख्याल से विशुद्ध राजनैतिक है। अपने को असमलैंगिक लोगों से अलग दिखने के लिए, अपने बिल्कुल अलग परिचय के लिए! वैसे कुछ लोग उनकी नकल में पहनते हैं। दल में भिड़ने के लिए! लेकिन मैंने ऐसे ढेरों समलैंगिक पुरुषों को देखा है, जो देखने में आम पुरुषों की तरह होते हैं। समलैंगिक औरतों को भी देखा है, जो आम औरतों जैसी ही नजर आती हैं। बाहर से देखकर, यह जानने का उपाय नहीं है कि कौन, किस यौन-क्रिया का अभ्यस्त है। वैसे यह समझने की किसी को जरूरत भी नहीं है! सेक्स पूर्णतः व्यक्तिगत मामला है, बिल्कुल निजी! उसे पोशाक-परिधान, आचार-व्यवहार, वातचीत में जाहिर करने की क्या जरूरत है? अगर इसकी वजह राजनैतिक है तो मैं कहूँगी, हाँ, इसमें युक्ति है, क्योंकि-समलैंगिक के अधिकारों की वसूली को लेकर, उन लोगों की जंग वर्षों से जारी है। पोशाक, पताका, रैली-सभी कुछ उस संग्राम का हिस्सा है।
अपने स्वभावगत कौतूहलवश मेरी जान-पहचान, दानियेल शारे नामक, एक समलैंगिक लड़की से हुई। चक्कर क्या है, यह देखना जैसे जातीय आग्रह हो। यह कौतूहल मुझमें नहीं जागता । अगर दानियल, मेरे यहाँ अचानक खुद न आ धमकती। उससे मेरी मुलाकात पैरिस के एक कार्यक्रम में हुई थी। वहाँ मैं मंच पर वक्ता थी और दानियेल दर्शकों की कतार में बैठी मेरा भाषण नोट करती जा रही थी। चूंकि वह आम लड़कियों जैसी नहीं लगी, इसलिए उस लड़की पर मेरी नजर पड़ गई।
होटल द विले का कार्यक्रम खत्म होने के बाद जब मैं वाहर आ रही थी, मैंने उस लड़की से कहा, “एइ, तुम तो कमाल हो! क्या नाम है तुम्हारा?"
अपना नाम-धाम धाराप्रवाह बताते हुए, उसने बेचैन लहजे में सवाल किया, "तुमसे बातचीत के लिए, अपना कोई फोन नंबर दे सकती हो?"
किसी को अपना फोन नंबर देने का नियम नहीं है। मैं इसी नियम-पालन की अभ्यस्त हूँ। सुरक्षा से आँख बचाकर मैंने जल्दी-जल्दी अपने घर का फोन नंबर लिख दिया। उस लड़की की आवाज भी भारी थी। चलो, ठीक है! मैंने सोचा था कि वह लड़की फोन पर शायद कुछेक मामूली बातें करेगी और बस! लेकिन मुझे अचरज में डालते हुए वह किसी छोटी-मोटी बातों के चक्कर में न पड़कर, “मैं आ रही हूँ।" कहकर, वह मुझसे मिलने के लिए सुदूर फ्रांस से उड़कर स्टॉकहोम शहर आ पहुँची। नहीं, वह मेरे घर का पता नहीं ढूँढ पाई। सड़क पर गठरी बनी बैठी थी। मैं ही उसे वहाँ से उठाकर ले आई। वह दानियल एक बार नहीं, दो-दो बार मुझसे मिलने स्टॉकहोम आई। जब मैं बर्लिन में थी, वहाँ तो वह बहुत बार आती रही। अगर विमान से नहीं आ सकती थी तो पैरिस से रात की बस लेकर आ जाती थी। उसके पास इतने रुपए नहीं थे परन्तु एक बार वह आना चाहती थी। तब मैंने ही उसे हवाई जहाज के खर्च के रुपए दे दिए। रुपए देने के बारे में इंतजाम यह किया कि उसे अपने फ्रेंच प्रकाशक, एडीशन द फाम के यहाँ जाकर, मेरी रॉयल्टी के रुपए ले लेने को कहा। दानियल ने उन्हीं रुपयों से हवाई जहाज का टिकट खरीद लिया। मेरा साथ पाने के लिए वह सिर्फ जर्मनी ही नहीं, स्पेन और कनाडा भी जाती रही। बर्लिन में मेरे साथ दानियल की खूबसूरत दोस्ती ही नहीं हुई बल्कि एक रिश्ता बन गया था। दानियल की वही समलैंगिक चाह! उसका कहना था कि वह मेरी मुहब्बत में गिरफ्तार हो गई है इसीलिए वह बार-बार मेरे दरवाजे पर आ खड़ी होती है। अक्सर यह होता है कि अगर तुम अधिकाधिक-दीर्घ दिनों तक साथी-संगीहीन दिन गुजारते हो, रात पलकों में काटते हो तो ऐसे में जिसके बारे में तुम्हें जानकारी नहीं है, जो मैथुन तुमने नहीं किया है, उसी मैथुन के जरिए तुम अपनी देह की प्यास बुझाने की कोशिश करते हो। जिंदगी में तीस की दहलीज पार करने के बाद, मैंने हस्तमैथून के बारे में जाना, वह भी यूरोप आकर, लेकिन पश्चिम की लड़कियाँ हस्तमैथुन बेहद कम उम्र में ही सीख जाती हैं। उस उम्र में पूरब की लड़कियाँ अपने को ऋतुवती होते देखकर आतंक से काँप उठती हैं। आखिरकार दानियल के साथ मेरा जो शारीरिक संबंध हुआ, वह समलैंगिक रिश्ता, अबाध कौतूहलवश ही हुआ।
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