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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


अगले दिन, सुबह सुबह फिर उड़ान! रोम होते हुए टूरिन ! रोम पहुँचते-पहुँचते मेरा निर्धारित प्लेन मेरा इंतजार करने के बजाय मझे छोडकर उड गया। मझे दीर्घ चार घंटों तक हवाई अड्डे पर ही बैठे रहना पड़ा। अंत में टूरिन पहुँच ही गई। टूरिन में भी एमनेस्टी के लोग और पुलिस मेरा इंतजार कर रही थी। हर वार मैं जहाँ भी जाती हूँ, सूरज का उजाला साथ लेकर जाती हूँ। टूरिन में बारिश लेकर पहुँची । एयरपोर्ट के रेस्तराँ में ही मैंने दोपहर का खाना खाया ! पुलिस ने विल चुकाया। वैसे पुलिस इतनी मानवीय बहुत कम ही नजर आती है। वहाँ से रिकॉर्डो, अलेजान्द्रा, मुझे टूरिन का परिदर्शन कराते-कराते, होटल ले गईं। विशाल होटल ! खूबसूरत कमरा! उन दोनों ने बताया कि कार्यक्रम से पहले पत्रकार मुझसे बात करना चाहते हैं। मैंने साफ जवाब दे दिया कि मैं आराम करना चाहती हूँ, काफी थक गई हूँ। होटल में एमनेस्टी का प्रेस-अधिकारी मौजूद था। पत्रकार भी इंतजार कर रहे थे। अलेजान्द्रा जाकर कह आई-“इंटरव्यू संभव नहीं है, तसलीमा थकी हुई है।" आधा घंटे आराम करने के बाद उन लोगों ने इटली के सबसे अहम् अखबार के पत्रकार को कुल पाँच मिनट के लिए मुझसे बातचीत करने भेजा!

आगे-पीछे पुलिस की गाड़ियाँ और बीच में मेरी गाड़ी! मैं कॉन्फ्रेंस-हॉल में पहुँची । विशाल हॉल! दर्शक-श्रोता अपनी-अपनी कुर्सियों पर आसीन! सरकारी महिलाएँ स्टेज पर! मंच पर मेरे पहुँचते ही तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट गूंज उठी। उसके बाद वक्तव्य! सबने मेरे बारे में ही वक्तव्य दिया। उसके बाद बेजिंग की जातिरुंध मीटिंग के बारे में दो-चार बातें! नारीवादी एक महिला ने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया और एकदम से रो पड़ी। कार्यक्रम के अंत में छोटे-छोटे इंटरव्यू के लिए पत्रकारों की भीड़ लग गई। इंटरव्यू देकर मैं उन लोगों के साथ हो ली, जो लोग रात के खाने के लिए रेस्तरां में बुकिंग कराने के बाद मेरे इतजार में खड़े थे। इधर अलेजान्द्रा उन लोगों का बर्ताव देखकर अपना मूड खराब किए बैठी थी। वे लोग मेरे आराम का बिल्कुल ख्याल नहीं रख रहे थे इसलिए वह चाहती थी कि मैं उस दल के आमंत्रण पर न जाऊँ, बल्कि कुल दो-तीन लोगों के साथ किसी और रेस्तराँ में खाना खाने चलूँ। मैं उसकी बात पर राजी हो गई। उसके बाद गाड़ी में सवार होकर टूरिन की सैर! विभिन्न स्क्वायरों और एक सेनेगॉग का परिदर्शन! सेनेगॉग टूरिन का सबसे ऊँचा टॉवर है! यहाँ के यहूदी जब इसका खर्च नहीं चला पाए तो उसे सरकार को सौंप दिया गया था। टूरिन औद्योगिक शहर है! काफी साफ-सुथरा! किसी जमाने में यह शहर इटली की राजधानी था। अभी चंद रोमन स्मृतियाँ यहाँ मौजूद हैं। वह खवसरत राजमहल भी विद्यमान है, जिसे फ्रेंच लोगों ने हस्तगत कर लिया था। काफी रात तक शहर की सैर के बाद मैं होटल लौट आई।

अगले दिन सुबह टे जॅन! मुझे रेल-यात्रा पसंद है। आकाश-पथ मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता, लेकिन मेरी बदनसीबी यह है कि मेरे लिए रेल-यात्रा की सुविधा लगभग न के बराबर है। इटली में ही पहली बार आकाश से धरती पर उतरना संभव हुआ। फ्लोरेंस मैं ट्रेन से गई। वहाँ अमेरिकी अनुवादिका के साथ एलिजाबेथा, मेरी राह देख रही थी। हाँ, अब फ्लोरेंस देखने का चक्र शुरू हुआ। एलिजाबेथा बेहद प्यारी लड़की थी। वह बार-बार मुझे इतिहास की गहराइयों में ले गई, बार-बार विशाल-विशाल कुछ के सामने ले जाकर खड़ा करती रही। वह लड़की पागलों की तरह मुझमें मगन रही। होटल पहुँचकर सामान रखा और थोड़ी देर आराम करके मैं दुवारा निकल पड़ी। सबसे पहले राजमहल, जो अब मेयर का ऑफिस है। वहाँ बहुतेरे पत्रकारों की भीड़ लगी थी! मेयर ने मेरे आगमन का औपचारिक बयान दिया। प्रेसिडेंट ऑफ फ्लोरेंस पार्लियामेंट, नाम-दानियेला! उन्होंने भी इतालवी भाषा में बयान दिया। अंग्रेजी में भी उसका अनुवाद सुनाया गया- "फ्लोरेंस सिटी तसलीमा को पाकर गर्वित है! बेहद खुश है। फ्लोरेंस सिटी उन्हें हर तरह की मदद देने के लिए तैयार है। फ्लोरेंस के दरवाजे तसलीमा के लिए हमेशा खुले हैं। तसलीमा को सम्मानित करके आर्ट कल्चर के इस शहर, फ्लोरेंस ने अपने को सम्मानित किया है।' मेयर ने मुझे एक मेडल भी प्रदान किया। इसके बाद पैलेस दिखाने का इंतजाम! वहाँ के बड़े-बड़े कमरे एक के बाद एक खोल दिए गए, जहाँ ‘राज-आर्किये' पेंटिंग तैयार किया करते थे। फ्रांसिस उनमें से एक था। अचानक कोई मुसीबत आने पर भी इसी पेटिंग स्टूडियो वाले कमरे से, चोर-रास्ते से भागने के लिए सीढ़ियाँ वगैरह भी मौजूद थीं। गुप्त कोठरियाँ! मध्य युग में दुनिया का नक्शा तैयार किया जाने वाला वह कमरा भी मेरे लिए खोल दिया गया। वे सब अजीबोगरीब नक्शे देखकर आप बेहद याद आए। आपको यह सब देखकर बेहद अच्छा लगता कि पहले के जमाने में भूगोल-अनुमान कैसा था। आपने तो सिर्फ भारत के अनुमानों के बारे में लिखा है। आपको भेजने के इरादे से, मैंने उन लोगों से दरयाफ्त भी किया कि इन नक्शों की कोई किताब उपलब्ध है या नहीं! उन लोगों ने बताया कि इस किस्म की एक किताब जल्दी ही प्रकाशित होने वाली है। यहाँ हजारों मूर्तियाँ भी स्थित हैं। इस विशाल हॉल कमरे में पहले के जमाने में राजाओं की बैठकें हुआ करती थीं! किस कदर झकझक उजले-उजले कमरे! सबसे मजेदार बात यह है कि उस 'पेलेत्जा वस्ता' से गुप्त राह से, शहर के एक कोने से दूसरे कोने में स्थित दुर्ग तक पहुँचा जा सकता है। दुश्मनों के हाथ से बचने के लिए वे लोग हमेशा ही तैयार रहते थे।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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