जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
मासिमो की दो बहनें-पैट्रीचिया और वैलेंटीना ने इटली भाषा में, खासा डपटते हुए कुछ कहा। उन लोगों को शायद माफिया का प्रसंग पसंद नहीं आया। आन्तोनेला खामोश हो गई। मैंने खामोशी से चाय की प्याली की चूँट भरी। मैंने गौर किया, मासिमो का भाई लिओनार्दो कुछ कहना चाहता है। वैसे उसकी अंग्रेजी उतनी अच्छी नहीं थी। सवरीना ने उसका अनुवाद करके मुझे बताया।
लिओनार्दो ने कहा, "लोग समझते हैं कि सिसिली के सभी निवासी माफिया से जुड़े हुए हैं। सच तो यह है कि यह सच्चाई कोई नहीं जानता कि हम आम लोग, माफिया के खिलाफ किस कदर संघर्ष कर रहे हैं। सरकार में ही, मेयर कहो, कमिश्नर कहो, माफिया के लोग मौजूद हैं! हम लोग जाएँ तो जाएँ कहाँ, बताओ?"
मासिमो के पिता आदामो ने भी मेरे करीब आकर मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए टूटी-फूटी अंग्रेजी में कहा, "तुम्हें क्या उस होटल में रहते हुए, डर लग रहा है? मैंने पूरी कहानी सुनी है। तुम फिक्र न करो, बाकी कुछ दिन, न हो, मेरे ही घर में रहो। तुम आओगी, तो हम सबको बेहद खुशी होगी।"
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