जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
सौ साल पुराना पब! पब के अंदर कोई जुआ खेल रहा था, कहीं हो-हुल्लड़ मचा हुआ था। इन सबके बीच हम सबका छोटा-मोटा दल, एक बड़ी-सी मेज़ घेरकर हम बैठ गए। नोरबर्ट ने बताया कि यह उसका प्रिय पब है। वह हर शुक्रवार की शाम यहाँ बियर पीने आता है! नोरबर्ट, वुल्फगांग, हान्स, हान्स की माँ, ओटो, इभा और थोड़ी ही देर में और भी दो-चार लोग आ जुटे। करीब घंटे भर वहाँ बने रहने के बाद, इभा और हान्स की माँ अपने घर चली गईं और हमारा अड्डा रात डेढ़ बचे तक चलता रहा। हान्स टहरा चरम अड्डेबाज़! सबको हमेशा चढ़ाए रखता है। पब की घड़ी उल्टी तरफ घूमती रही। नशेवाज़ों के लिए ज़रूर यह सुखद बात है। वे लोग बड़े-बड़े गिलासों में बियर चढ़ाते रहे। नोरबर्ट मुझसे सटकर बैठा हुआ था। मुझे दारू पीने की आदत नहीं है, लेकिन उसकी ज़िद की वजह से मुझे एकाध घुट भरना ही पड़ा। मैं शैम्पेन और वाइन के अलावा और कुछ नहीं लेती। नोरबर्ट ने आखिरी ऑर्डर कुल मिलाकर छह बार दिया। नोरबर्ट का शौक चर्राया कि वह मुझे 'मिसकैरेज' नामक एक कॉक्टेल पिलाएगा। सबके लिए 'मिसकैरेज' हाज़िर हो गया। यह उस पव का स्पेशल ड्रिंक था। वाइन, कॉफी और दूध मिलाकर कॉकटेल! काले पानी में सफेद क्रीम कुछ इस ढंग से मिलाते हैं कि यह यूँद-बूंद निखर जाता है, और उसके रंग-रूप से ऐसा लगता है, जैसे सचमुच ही यह मिसकैरेज है। कोई भ्रूण शायद टूटे हुए अंडे की जर्दी की तरह, शायद अभी-अभी टूटकर बिखर गया है। बहरहाल मैं नशवाज़ की तरह अड्डेवाज़ी में मगन हो उठी। आखिरकार किसी समय मेरे ही अनुरोध पर सवको उठना पड़ा! तुमुल हल्ला-गुल्ला मचाते हुए हम सव होटल लाट आए। नारवट की पाटा अपने घर लाट गई।
अगले दिन सुबह नाश्ते की मेज़ पर 'कुक्सहेवेन' अख़बार पर नज़र पड़ी। पूरे आधे पन्ने का, मुझ पर फोटो-फीचर! मैं विमान से कैसे उतर रही हूँ, नीचे उतरकर क्या कर रही हूँ। पता चला, कल बड़ी स्टोरी निकलेगी। पता नहीं कौन वह अख़बार उठा ले गया। दुनिया में, कितने-कितने अख़वारों में इस तुच्छ तसलीमा के बारे में कितना कुछ छप रहा है, लोग समझते हैं कि मुझे यह सव देखने की फुर्सत ही नहीं है।
होटल से हवाई अड्डा। आज फिर बॉन की ओर! वॉन के राष्ट्रीय गेस्टहाउस, पिटर्सवर्ग हाउस में राष्ट्रीय अभ्यर्थना! वॉन शहर में सात पहाड़ हैं। उनमें से एक के ऊपर स्थित है पिटर्सबर्ग हाउस! यह सरकारी गेस्टहाउस है! यहाँ के संसद-सदस्य इसे अपने मेहमानों को ठहराने के लिए इस्तेमाल करते हैं! मेरे लिए पीटर हान्स, दरवाज़े पर ही इंतज़ार कर रहे थे। संसद सदस्य! क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रेसीडेंट! सरकारी शाही लंच आयोजित किया गया था। राजनीतिक लोग तो थे ही, नामी-गिरामी प्राइवेट टेलीविजन एन.आर.डी. के मालिक किस्म की भी कई हस्तियाँ, इस लंच में शामिल थीं। कई-कई शताब्दियों की साधना के बाद सभ्य वने देश के सभ्य इंसान के सभ्यतम आचार-व्यवहार के साथ मैं चलती-फिरती हूँ, बोलती-बतियाती हूँ, खाती-पीती हूँ। वाह! पीटर हान्स ने बाढ़ के मौसम में राइन नदी में आई बाढ़ की हालत बयान की। बाढ़ के उस पानी में उनका भी घर डूब गया है। ऐसे अमीर देश में भी बाढ़ आती है, यह बात वैसे तो अविश्वसनीय लगी, लेकिन सच्ची घटना है कि जर्मनी के दस हज़ार लोग बाढ़ग्रस्त हैं। मैंने भी चुक-चुकाकर उनके साथ अपना दुःख जाहिर किया। बाद में, जब व्यक्तिगत विमान में बिठाकर, राइन नदी की बाढ़ दिखाई गई, तो मुझे वह बाढ़ जैसी लगी ही नहीं। प्रकृति का कोई अकल्पनीय सुंदर दृश्य देखकर मेरे मन में तो पुलक जाग उठा। बाढ़, बाढ़ जैसी लगती है, क्योंकि उसके साथ इंसान के दुःख-दर्द जुड़े होते हैं, लेकिन अगर कहीं पानी में उफान आ जाएँ और उसमें इंसानों की तकलीफ न शामिल हो, तब वह बाढ़ नहीं लगती, बल्कि उस बाढ़ में जलकेलि करने का मन होता है। पानी देखकर जर्मन दोस्तों की आँखों में पानी और मेरी आँखों में प्रकृति के स्वाद के अहसास का तिर-तिर करता हुआ सुख! मैं उस बाढ़ को जितना-जितना देख रही थी, उतना ही मुझे मज़ा आ रहा था। धनी देशों के लोग, बाढ़ देखने, गरीब देशों में जाते हैं और यहाँ गरीब देश की एक लड़की अमीर देश की बाढ़ का नज़ारा कर रही थी। यह एक किस्म का मज़ा ही तो है। बाढ़ ने शायद आपस में जगह बदल ली थी। इसके बाद सूखा, अनाहार, महामारी? पता नहीं? पता चला, आजकल इस तरफ बेरोजगारों की तादाद हहराकर बढ़ती जा रही है।
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