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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


वह डॉक्यूमेंटरी चूँकि जर्मन भापा में बन रही है, उसमें जर्मनी के दृश्य न हों, तो वह अधूरी लगेगी। जब हवाई जहाज कुक्सहेवेन के आकाश से उड़ा, उस वक्त चमकती धूप थी। सर्दी के मौसम में धूप नसीब होना, किस कदर सुखद होता है, यह बात लंबे अर्से तक माइनस दस-बीस डिग्री सेल्सियस में रहने के बाद मैं समझ सकती हूँ। हवाई जहाज कुक्सहवेन एअरफोर्स फील्ड में उतर पड़ा। मैंने देखा, कुछ लोग हाथ में कैमरा उठाए खड़े हैं। हान्स ने बताया कि वे लोग पत्रकार हैं। मेरा मूड खराव हो गया। मैंने उससे पहले से ही कह रखा था-नो प्रेस, नो मीटिंग, नो पुलिस! हान्स काफी मज़दार शख्स है। वेहिसाब वालता है। वैसे उसकी अधिकांश वातें लोगों को हँसाने के लिए होती हैं। वह ऐसी ढेरों कसमें खाता है, जो वह अक्सर पूरी नहीं करता। कुक्सहवेन में मेरे स्वागत के लिए, खुद रीयर एडमिरल खड़े थे। एडमिरल मुझं कॉफी पिलाने के लिए एअरफोर्स के दफ्तर में ले आए। जव मैं लाल-सफ़ेद झंडा लहराते एयरफोर्स की गाड़ी में सवार होकर सैनिक-पथ से आ रही थी, तो मैदान में खड़े सव-मेरीन डिटेक्टर जहाजों पर मेरी नज़र पड़ी। दूसरे महायुद्ध के ज़माने में यह एयरफोर्स की सीमा-चौकी थी। डेनमार्क और नॉर्वे को हस्तगत करने के लिए सारे अस्त्र-शस्त्र यहीं से सप्लाई किए जाते थे। काफी सारे युद्ध-विमान और सबमेरिन यहाँ सजाकर रखे गए हैं। महायुद्ध जब ख़त्म हुआ तब यह इलाका अमेरिका की दखल में था। पश्चिम जर्मनी के तीन हिस्से करके, तीन भिन्न-शक्तियाँ-अमेरिका, फ्रांस और संयुक्त राज्य वहाँ अड्डा गाड़कर बैठी रहीं, ताकि सोवियत यूनियन के कब्जे से इस देश को बचाया जा सके। जर्मन तो अभी भी सतर्क रहते हैं, जाने कव रूसी सवमेरिन उत्तरी सागर के तल से चलकर यहाँ आ पहुँचे और जर्मनी को दखल कर ले। मैंने देखा है. स्वीडिश भी समद्र में कछ भी देखते हैं तो एकदम से चौंक उठते हैं, शायद रूसी सबमेरिन आ पहुँचा है। ये किस्से-कहानियाँ काफी कुछ बांग्लादेश के दैत्य-दानवों की कहानियाँ जैसी हैं। छुटपन में मेरी माँ यह कहकर मुझे सुलाने की कोशिश करती थी कि दैत्य आ रहा है, सो जा! मेरी माँ अगर जर्मन होती, तो वह भी ज़रूर यही कहती-'ले रूसी सब-मेरिन आ गया, चल, जल्दी से सो जा।'

एडमिरल ने मेरा ओवरकोट उतारकर रखने में मेरी मदद की! हम दोनों जब बातचीत कर रहे थे, तब एक नौजवान और एक अधेड़ आदमी कमरे में दाखिल हए। उस नौजवान के हाथों में फल थे। वह एकटक मझे ही देख रहा था। उसने बताया कि बगल के कमरे में मेरा हैट देखकर ही वह पहचान गया कि वह मेरा हैट है। जर्मनी के कुक्सहेवेन के लोग तक पहचानते थे कि वह मेरा हैट है। उस प्यारे नौजवान को देखकर मेरे मन में आग्रह जाग उठा कि मैं पूछ लूँ कि वह नौजवान कौन है। उसका नाम-नोरबर्ट प्लम्बेक था। उम्र अट्ठाईस! इसी उम्र में वह अरबपति था। नोरबर्ट के हाथों से फूल लेने का मौका ही नहीं मिला। हम चाय पीकर, दुबारा हवाई जहाज में सवार हो गए। साथ में नोरबर्ट और वुल्फगांग भी! पायलॅट नोरबर्ट के पिता हैं ओटो प्लम्बेक! यह जहाज नोरबर्ट प्लम्बेक का है। वह कुक्सहेवेन का अमीर कारोबारी है। नोरबर्ट से मेरी जान-पहचान होने की कोई बात नहीं थी मगर हान्स की वजह से हमारा परिचय हो गया।

कुक्सहेवेन से मैं वॉन पहुँची। वॉन में जर्मनी के विदेश मंत्री क्लास किनकेल, मेरा इंतज़ार कर रहे थे। दरवाजे के बाहर पत्रकारों की भीड़ ! अचानक प्रेस फोटोग्राफरों के फ्लैश-वल्ब की चकाचौंध से मेरी आँखं जल उठीं। फोटांग्राफरों को मरी तस्वीरें उतारने के लिए कुछेक पला का मौका देकर वे मुझे एक बड़े-से कमरे में लिवा ले गए।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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