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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


मुझे शाखारॅव पुरस्कार मिला है। सन् 1994 का शाखारव पुरस्कार मुझे दिया गया है। सोवियत वैज्ञानिक आंद्रेइ शाखारॅव के नाम का यह पुरस्कार, यूरोपीय पार्लियामेंट प्रदान करता है। यह पुरस्कार दिसंबर की दस तारीख को दिया जाता है, जिस तारीख को राष्ट्रीय समूह या राष्ट्रसंघ के यूनिवर्सल डिक्लरेशन ऑफ ह्युमैन राइट्स पर दस्तखत किए गए थे। यह पुरस्कार उन्हीं लोगों को दिया जाता है, जिन्होंने स्वाधीनता और मानवाधिकार के लिए संघर्ष किया है।

यह पुरस्कार सन् उन्नीस सौ अट्ठासी में पहली बार प्रदान किया गया था। इस साल यह पुरस्कार नेल्सन मंडेला और अनातोली मार्चेनको को और अगले साल अलेक्जेंडर दुबेक, सन् 1990 में आंग सान सू ची को, 91 में आदम.देमाघी को, 92 में अर्जेन्टिना की मादरन ऑव द प्लाज़ा दे मायो को, 93 में ऑस्लोबाडेनी को दिया गया था। शाखारव पुरस्कार के बारे में यह कहा जाता है कि यह पुरस्कार पाने का मतलव है, नोबेल शांति पुरस्कार पाना! दक्षिण अफ्रीका के वर्णवाद-विरोधी नेता, नेल्सन मंडेला और वर्मा या मयंमार के गणतांत्रिक आंदोलन की नेत्री, सू ची को नोबेल मिल चुका है। अलेक्जेंडर दुबेक चेकोस्लोवाकिया की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे। सन् अड़सठ में राजनैतिक रिफॉर्मेशन की माँग करते हुए, जो प्राग स्प्रिंग नामक प्रसिद्ध क्रांति शरू हई थी, उस क्रांति के नेता थे-दबेक! सन! 89 में कम्यजिज्म के पतन के बाद वे फेडरल एसेम्बली के चैयरमैन चुने गए।

आदम देमाची युगोस्लाविया के अल्पसंख्यक अल्बेनियन हैं! उन्होंने युगोस्लाविया या सबिंग में अपने रहने के बारे में संघर्ष किया है। उसे कसोवो में, जहाँ अधिकांश अल्बेनियन लोगों की आबादी है, वहाँ रहने को कहा गया था। लेकिन, वे नहीं गये। वे प्रिस्टिना में ही रह गए। उन्होंने कसोवो की आज़ादी के लिए जंग की। असाधारण साहसी आदम देमाची मृत्यु से नहीं डरते। उन्होंने पूरे 29 साल जेल में गुजार दिए।

उन्होंने कहा, “अगर तुम जुबान से जो कहते हो कि तुम आज़ादी के लिए जंग कर रहे हो. लेकिन आजादी के लिए अपने प्राणों की आहति देने को तैयार नहीं हो तो या तो तुम अपने से झूठ बोल रहे हो या दूसरों से झूठ बोल रहे हो।'

ऑस्लोबोडेनी साराखेव का अख़बार है। युद्ध के समय यह अख़बार हर रोज़ ही निकलता था। पत्रकार अपनी जान जोखिम में डालकर ख़बरें इकट्ठी करते थे और हर दिन छापते थे।

एमनेस्टी इंटरनेशनल के आमंत्रण पर स्कॉटलैंड, आयरलैंड, हॉलैंड, सब जगहों पर मानवाधिकार के प्रसंग में व्याख्यान या ख़ाक देकर, मैं लोगों को मानवता के काम-काज के लिए प्रेरित करती फिरी-एमनेस्टी की कार्यकर्ताओं को यह चैन भरी राहत देकर, इंग्लैंड से उड़कर फ्रांस के स्ट्रसवुर्ग आ पहुँची। यूरोपीय पार्लियामेंट दो शहरों में बैठती है। एक. वेल्जियम के व्रसेल्स में और दसरी. फ्रांस के स्टसबर्ग में। स्टसवर्ग की यरोपीय पार्लियामेंट ही मुझे पुरस्कार देने वाली है-शाखारव पुरस्कार! पुरस्कार की राशि है-डेढ़ लाख फ्राँ! हवाई अड्डे पर उतरते ही मैंने देखा, क़तार-दर-क़तार पुलिस ने मेरा स्वागत किया और अपनी गाड़ी में विठाकर ले गयी ! उन लोगों ने यथारीति शहर के सबसे बड़े होटल में उतारा, जहाँ मेरे लिए खास सूट बुक था। अब यथारीति मुझे तैयार होना होगा, सबसे बड़े रेस्तराँ में जाना होगा, बड़े-बड़े गण्यमान्य आयोजकों के साथ बैठना होगा, सवसे उन्नत मान का फ्रेंच वाइन पीना होगा और सवसे लज़ीज़ पकवान खाना होगा। उसके बाद मुझे आगे का कार्यक्रम बताया जाएगा। पहले दिन आराम, दूसरे दिन पुरस्कार समारोह! तीसरे दिन शहर देखना! चौथे दिन प्रस्थान !

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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