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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


उसके बाद गैवी लगातार उत्तेजित नजर आया। वह भूल ही गया कि हम दोनों यहाँ डिनर खाने आए हैं। अचानक उसे याद आ गया या उसे याद दिलाया गया, तो वह झटपट उठ खड़ा हुआ और उसने चूल्हे पर पास्ता उबलने को चढ़ा दिया। फ्रिज में जो पहले से पड़ा था, पास्ता के साथ मिला-जुलाकर खाना होगा-यही था उसके डिनर का मेनू ! फ्रिज में कच्ची सलमन मछली पड़ी थी। और कोई आम दिन होता, तो मैं वहाने से रात का खाना टाल जाती, लेकिन पेट में जब भूख कुलाँचे भर रही हो, तो खाना चाहे जैसा भी हो, लज़ीज़ लगता है। बहरहाल, पास्ता जव उबल गया, तो उसे प्लेट में खाने के लिए उड़ेलने के बजाय, उसने वाथरूम में नल के नीचे उँडेल दिया। वजह पूछने पर उसने जवाब दिया, पास्ता ज़्यादा उवल गया था? यह भी भला कोई वजह हुई?

सिंक में फेंका गया पास्ता मैंने उँगली से दबाकर कहा, "ठीक ही तो था!" लेकिन मेरी बात कौन सुनता?

इस बीच नया पास्ता उबलने के लिए चढ़ा दिया गया। गैबी का पकाने में मन नहीं था।

"असल में तुम्हारे लिए एक साहित्यिक एजेंट की ज़रूरत है।" उसने कहा।

“साहित्यिक एजेंट क्या चीज़ है?"

“साहित्यिक एजेंट ही तुम्हारी तरफ से विभिन्न देशों से बातचीत करेगा। दुनिया के तमाम देशों से, अब तुम्हारी किताबें प्रकाशित होंगी। रॉयल्टी के बारे में मोल-भाव करना होगा। यह सव वह एजेंट ही करेगा। तुम्हारा काम होगा, बस, लिखना।"

"......''

"इस वक्त तुम्हें साहित्यिक एजेंट की ज़रूरत है। खैर, तुम फ़िक्र मत करो। जैसा-तैसा एजेंट लेने की तुम्हें ज़रूरत नहीं है। अभी तो बड़े-बड़े साहित्यिक एजेंट, तुम्हारे सामने लाइन में खड़े हो जाएँगे, लेकिन सुनो तुम खूब सोच-समझकर सबसे अच्छा एजेंट चुनना।"

गैबी लपककर गया और झटपट बंडल-भर फैक्स पर आए हुए ख़त उठा लाया। किसी मेरिडिथ टैक्स ने एजेंट बनने का प्रस्ताव भेजा था।

गैबी ने खुद ही उसे खारिज करते हुए कहा, "नहीं, यह नहीं चलेगा! काफी छोटा एजेंट है। हमें दुनिया का सबसे बढ़िया साहित्यिक एजेंट चाहिए।"

मैंने सिर हिलाकर कहा, "नहीं गैबी, नहीं, मैं कोई इतनी बड़ी लेखिका नहीं  हँ कि मुझे इन सबकी ज़रूरत हो। छोड़ो यह सब!"

"अरे, तसलीमा, तुम नहीं जानती कि तुम क्या हो! अभी तुम विश्व-जय पर निकली हो। समूची दुनिया की नज़रें तुम पर ही लगी हुई हैं।"

"मुझे इन बातों पर विश्वास नहीं होता! कट्टरवादियों ने मुझ पर हमला किया है. यह ख़बर चारों तरफ प्रकाशित हुई है, इसीलिए यह सब शुरू हुआ है। वे लोग मेरी कौन-सी किताब छापना चाहते हैं?"

"लज्जा !"

मैं दो हाथ पीछे हट आयी, 'लज्जा? यह किताव छपाने का तो सवाल ही नहीं उठता।"

"क्यों?"

“यह किताब यूरोपीय पाठकों की समझ में ही नहीं आएगी। यह तथ्यों पर आधारित उपन्यास है। बांग्लादेश के कोने-कोने में किसका घर टूटा, कौन किस तरह पीटा गया-इस सबका बयान है। यह किताव उपमहादेशों के भले ही काम आए, यूरोप के लिए हरगिज नहीं है। यह किताब में प्रकाशन के लिए नहीं दूंगी।''

"तुम पागल हो।"

गैवी ने तेज़ी से हाथ-पाँव नचाते हुए कहा, "मैंने 'लज्जा' पढ़ी है। अंग्रेजी अनुवाद बहुत बुरा है! मैं आज ही यह ख़बर लिख देता हूँ कि 'लज्जा' का अंग्रेजी अनुवाद बेहद निम्न स्तर का है। ऐसा करो, तुम अपने प्रकाशक से आज ही कह दो कि वह फिर से, अच्छा अनुवाद कराए और उसकी मैनुस्क्रिप्ट तुम्हें भेज दे।"

"न्ना !"

"न्ना मतलब?"

“जो हो गया, सो गया! अब इसका नए सिरे से अनुवाद कौन करने जाएगा?"

"तुम समझ नहीं रही हो, किस तादाद में तुमसे 'लज्जा' के पुनःप्रकाशन का अनुरोध किया जाएगा। तुम एक अच्छा-सा अनुवाद करा लो और अपने पास तैयार रखो! देर मत करो।"

"मैं नहीं चाहती कि यह किताब यूरोप में प्रकाशित हो, क्योंकि उपन्यास के तौर पर यह निहायत बकवास है। लोग यह किताब पढ़कर यही समझेंगे कि मैं बहुत बुरा लिखती हूँ।"

"बिल्कुल भी नहीं! हरगिज नहीं।"

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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