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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


बेर्नार्ड आंरी लेवी ने मेरे साथ रित्ज़ होटज में लंच लिया। सुदर्शन नौजवान लेवी! काफी उम्र हो जाने के बावजूद कुछेक मर्द जवान ही रह जाते हैं। वे वांग्लादेश के बारे में अपने अनुभव सुनाते रहे। सन् इकहत्तर में वे पत्रकार के तौर पर बांग्लादेश गए थे। अपना पहला उपन्यास भी उन्होंने उसी देश पर लिखा था। 'लज्जा' पर चर्चा छिड़ गयी। इन दिनों 'लज्जा' फ्रांस में 'बेस्ट सेलर' थी। लिस्ट में एक, दो, तीन नंबर पर उसी किताब का नाम है। लेवी ने बताया कि उन्होंने 'लज्जा' पढ़ी है। मैं फौरन संकोच से गड़ गयी।

"असल में, 'लज्जा' कोई उपन्यास नहीं है। उसे तथ्यमूलक उपन्यास भले ही कहे लें। मुझे मालूम है, इस देश में उसका प्रकाशन सही नहीं हुआ।" मैंने कहा।

लेवी ने मुझे वीच में रोककर कहा, "मैंने 'लज्जा' पढ़ी है। मुझे पसंद आई।"

“यह आप कह रहे हैं?"

"हाँ, मैं कह रहा हूँ। मैं ही यह भी कह रहा हूँ कि 'लज्जा' मुझे अच्छी लगी
है।"

"उसमें अच्छी लगने जैसी कोई बात नहीं है। वह तो महज् डॉक्यूमेंट...।"

"तो क्या हुआ? क्या उपन्यास लिखने का कोई बंधा-बँधाया नियम होता है?"

"भारतीय उपमहादेश के लिए लिखा गया है...क्या वह उपन्यास समझ में
आएगा?"

"तुम क्या समझती हो? हम लोगों की बुद्धि मोटी होती है? हम इंसान-इसान में मचा दंगा-फसाद भला नहीं समझेंग? एक्सोडस की समझ नहीं है हममें? अरे, भई, यह सब तो इंसानों का ही इतिहास है न?"

"इतनी लंबी लिस्ट है! किसका घर जला...कौन मरा...।"

"वही पढ़कर तो और अच्छी तरह समझ में आता है कि इंसान के अज्ञान और अशिक्षा की वजह से धर्म कैसे राज कर रहा है। मानव कैसे अमानव हो उठता है! कुत्सित हो उठता है! वह लिस्ट वेहद ज़रूरी थी। वह सब हमारी सभ्यता के गाल पर जड़ा हुआ एक-एक तमाचा है।''

"हाँ, उस तमाचे की बेहद ज़रूरत थी।"

"हाँ, वहोत अच्छी किताब है! बेहद जरूरी।"

मुझे लेवी की बातों पर यकीन नहीं आया। मुझे पहली बार लगा कि यह इंसान झूठ बोल रहा है। 'लज्जा' बेस्ट-सेलर लिस्ट में शामिल है। इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं लाख चाहूँ, इसकी विक्री बंद नहीं कर सकती। 'लज्जा' प्रसिद्ध हो गयी है, लोग खरीदना चाहते हैं। फिलहाल मेरा प्रकाशक इस बात से खुश है, लेकिन वह किताव पढ़ने के वाद, जब मेरी बदनामी होगी, तव वे इसे कैसे सम्हालेंगे? एक वांग्ला शब्द, इन दिनों फ्रेंच लोगों की जुबान पर है-लज्जा! अंग्रेजी के 'जे' का उच्चारण, बहुत से देशों में 'ए' होता है। यहाँ भी बहुत से लोग 'लज्जा' को 'लयया' कहते हैं। उन्हें सही कर देना होता है।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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