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मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप

अद्भुत द्वीप

श्रीकान्त व्यास

प्रकाशक : शिक्षा भारती प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5009
आईएसबीएन :9788174830197

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जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...


मैंने बड़ी आत्मीयता के साथ बढ़कर उससे हाथ मिलाया। लेकिन उससे हाथ मिलाते ही एकाएक मुझे लगा कि यह हाथ किसी युवक का नहीं, बल्कि युवती का है। फिर भी उस समय इस संबंध में कुछ भी पूछना मुझे ठीक न जंचा। हम सब लोग उसके प्रति बड़ा अपनापन प्रकट करते रहे और उसे विश्वास दिलाते रहे कि अब उसे तनिक भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। मैंने कहा, ''अब तुम्हारे मन में अगर तनिक भी संकोच हो तो उसे बाहर निकाल दो। यह समझ लो कि मैं तुम्हारा पिता हूं मेरी पत्नी मां है और मेरे यह चारों बच्चे तुम्हारे भाई हैं !'' मेरी बात सुनकर उस युवक का मोह आँखों के रास्ते बह चला और वह बड़ी मासूमियत के साथ मेरी पत्नी के वक्ष से चिपककर सुबकने लगा।

कुछ देर बाद फ्रिट्‌ज ने मुझे अलग ले जाकर कहा, ''पापा, अभी तक सही बात मैंने आप लोगों में से किसी को नहीं बताई है! यह बेचारी एक लड़की है। तीन साल पहले इसका जहाज इसी समुद्र में चकनाचूर हो गया था और तब से यह यहां बिल्कुल अकेली रह रही है। इसे डर था कि शायद मेरे भाई एक लड़की को अपने साथ रखना पसन्द न करें। इसलिए इसने मुझसे यह प्रार्थना की थी कि शुरू में मैं इस रहस्य को न खोलू।'' पूरी बात सुनकर मैंने कहा, ''लेकिन मैंने तो उससे हाथ मिलाते समय ही यह अनुमान लगा लिया था कि यह लड़की है! मैं समझता हूं कि इस बात को छिपाने से कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि जैक, अर्नेस्ट और फ्रांसिस के बारे में तो तुम खुद जानते हो।''

शाम के भोजन के बाद जब हम आग के चारों ओर बैठे ताप रहे थे तो फ्रिट्‌ज ने अपनी कहानी बतानी शुरू की कि सुरक्षातट के तंबूघर से धुएं की चट्टान की खोज में निकलने के बाद उस पर क्या बीती। उसने बताया, ''तंबूघर से चलने के बाद दो दिनों तक तो मैं इधर-उधर ही भटक्रता रहा। इसके बाद मैं एक ऐसे जंगली और भयानक तट के पास से गुजरा जिसकी हमने अब तक कल्पना ही नहीं की थी। रात गुजारने के लिए जब मैं एक जगह रुका तो मन में आया कि घर वापस लौट चलूं। मैं यह सोच ही रहा था कि झाड़ियों के पीछे से सरसराहट की आवाज आई! मैं चौकन्ना हो उठा। मैंने देखा कि झाड़ी को चीरता-फाड़ता एक भयानक शेर चला आ रहा है। भय के मारे मेरा चेहरा पीला पड़ गया। जब तक मैं अपनी बंदूक संभालूं उसने एक छलांग भरने की कोशिश की। मैं प्रभु को बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं कि उस समय मेरी पालतू चील मेरे साथ थी। उसने मरते दम तक मेरा साथ दिया। हुआ यह कि बिना तनिक भी डरे वह उड़ी और ठीक शेर की आँखों पर अपनी चोंच मार दी। जैसे ही वह अंधा होकर लड़खड़ाया मैंने झटपट अपनी बंदूक का घोड़ा दबा दिया। शेर तो मर गया, लेकिन मुझे अफसोस है कि हमारी प्यारी चील उससे पहले ही शेर के जबड़ों के नीचे आ चुकी थी। जितनी खुशी मुझे शेर को मारने की नहीं हुई उससे अधिक अफसोस उस चील के मरने का होता रहा।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. एक
  3. दो
  4. दो
  5. तीन
  6. तीन
  7. चार
  8. चार
  9. पाँच
  10. पाँच
  11. छह
  12. छह
  13. सात
  14. सात
  15. आठ
  16. आठ
  17. नौ
  18. नौ
  19. दस
  20. दस

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