मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप अद्भुत द्वीपश्रीकान्त व्यास
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जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...
फ्रिट्ज ने बताया कुछ भी नहीं। जितना जो कुछ हम जान पाए वह अनुमान के ही आधार पर था। वह फिर अपनी नाव पर वापस लौट गया और हमें अपने पीछे-पीछे आने को कहा। फ्रिट्ज की नाव का पीछा करते हुए हमारा जहाज लगभग तीन-चार घंटे तक चलता रहा। इसके बाद हमें एक ऐसा टापू दिखाई पड़ा जहां बहुत-से हरे-भरे पेड़ थे। बीचों-बीच एक पहाड़ी थी जिसके मुंह से धुएं की एक पतली लकीर निकल रही थी।
फ्रिट्ज ने अपनी नाव उसी टापू के तट पर रोक दी। हमने भी अपने जहाज का लंगर डाल दिया। जहाज पर मेरे अलावा किसी को भी यह नहीं मालूम था कि यह कौन-सी जगह है और हम लोग यहां क्यों आए हैं।
टापू पर पहुंचकर फ्रिट्ज पेड़ों के बीच से होता हुआ आगे बढ़ा। उसके पीछे-पीछे हम लोग चल रहे थे। पेड़ों की आड़ में हमें एक झोपड़ी और उसके बाहर एक छोटा-सा चूल्हा दिखाई दिया। मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उस पूरे प्रदेश में पिछले दस साल के अन्दर अपनी बनाई हुई चीजों के अलावा मनुष्य के हाथों की बनी कोई और चीज इससे पहले हमने नहीं देखी थी। फ्रिट्ज उस झोपड़ी के पास गया और एक आवाज दी। आवाज के साथ ही एक खूबसूरत युवक नाविक एक पेड़ पर से नीचे उतरा और डरी हुई नजरों से हमारी ओर देखने लगा। हम लोग इतने विस्मित और खुश थे कि एक भी शब्द मेरे मुंह से नहीं निकल पाया। काफी देर तक हम लोग चुपचाप एक-दूसरे की ओर देखते रहे। अंत में फ्रिट्ज ने ही शुरुआत की। वह बड़े प्यार के साथ उस युवक का हाथ पकड़कर हमारे पास ले आया और परिचय कराते हुए कहा, ''मिलिए, यह मेरे पिताजी हैं, यह मेरी मां है और यह तीनों मेरे छोटे भाई हैं।'' फिर उसने उस युवक का परिचय हम सबको दिया, ''पिताजी, इनसे मिलिए, यह हैं एडवर्ड मॉन्द्रोस-हमारे नये दोस्त, भाई, नये हमसफर! यह इंगलैंड के रहने वाले हैं और इनका जहाज भी इसी तट पर चकनाचूर हुआ था।''
परिचय के बाद तो हम सबकी खुशी का ठिकाना न रहा।
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