मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप अद्भुत द्वीपश्रीकान्त व्यास
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जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...
''अगले दिन सुबह तक जाने कैसे मेरा खोया हुआ साहस फिर लौट आया। बजाय पीछे वापस लौटने के मैं फिर आगे की ओर चल पड़ा। वहां से मैं अधिक-से-अधिक एक मील आगे गया होऊंगा कि मुझे एक टापू दिखाई दिया, जिसके बीचों-बीच की पहाड़ी से धुआ निकल रहा था। मेरा मन भीतर ही भीतर खुशी से उछलने-सा लगा। मैंने सोचा, क्या यही वह धुएं वाली पहाड़ी है।
''टापू के तट पर पहुंचकर मैंने अपनी नाव किनारे से बांध दी और उस पहाड़ी की तरफ बढ़ने लगा। अचानक उसी समय भैंने देखा कि पचास गज की दूरी पर एक मानव आकृति खड़ी है और मेरी ओर देख रही है। मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। मैं अपने को काबू में न रख सका। और टूटी-फूटी अंग्रेजी में कहा, 'मुझे तुम्हारा संदेशा मिल गया था। अब मैं तुम्हारी सहायता के लिए आ गया हूं।'...और वह मानव आकृति और कोई नहीं मर्दाने वेष में अपने को छिपाए यह जेनी ही थी!...यह जेनी, जिसे अब हमने अपने परिवार का एक अंग बना लिया है।''
''जेनी? जेनी? जेनी? तो क्या अभी तक तुम हमें धोखा दे रहे थे ?'' जैक, अर्नेस्ट और फ्रांसिस विस्मित से हो उठे, ''क्या जिसे हम अपना नया भाई समझ रहे थे, वह हमारी नई बहिन है ?''
''हां, यह हमारी नई बहिन जेनी है! लेकिन ध्यान रखो, उसे अधिक परेशान मत करना, क्योंकि हमारी बहिन पिछले तीन साल से बिकुल अकेली और बहुत परेशान रही है। तुम सब खुद सोच सकते हो कि उसकी हालत कैसी होगी!''
सभी ने यह बात मान ली।
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