मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप अद्भुत द्वीपश्रीकान्त व्यास
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जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...
अगले दिन सुबह की बात है। तोप के एक गोले की आवाज सुनकर काफी तड़के ही मेरी आँख खुल गई। मैं चौंक पड़ा कि शायद कोई और बाहरी आदमी हमारी सुख-शाति में विघ्न डालने यहां-इस टापू में आ पहुंचा है। लेकिन असलियत का पता लगते देर न लगी। यह हमारे बच्चों की ही करतूत थी। वास्तव में उन्होंने तोप की सलामी से नये दिन का स्वागत किया था।
सुबह से ही हम तरह-तरह के कार्यक्रमों में जुट गए। खेल-कूद, निशाने-बाजी, तैराकी, संगीत-गायन, चुटकुले आदि के कार्यक्रम चलते रहे और हम खुले दिल से जीवन का आनन्द लूटते रहे।
उस दिन सबसे आखिरी कार्यक्रम पुरस्कार वितरण का था। पुरस्कार वितरण का काम पत्नी के जिम्मे सौंपा गया। गुफाघर के बैठक वाले कमरे में अपने हाथों तैयार की हुई दरियां बिछाई गई, खम्भे काटकर बनाई गई कुर्सियां रखी गई और रोशनी के लिए मोमबत्तियां जला दी गई। बच्चे दरी पर जमीन में बैठे और मैं व पत्नी कुर्सियों पर। जिस खेल में जो बालक प्रथम आया था। मैं उसका नाम बोलता जाता था और पत्नी उन्हें पुरस्कार देती जाती थी। जब सब बच्चों को पुरस्कार मिल गए तो मैं उठकर खड़ा हुआ और कहा, ''बच्चो, तुम लोगों को तो अपनी योग्यता का पुरस्कार मिल गया लेकिन हममें से एक व्यक्ति अभी बाकी है जिसे उसकी बुद्धिमत्ता और साहस का कोई भी पुरस्कार नहीं मिला है। वह है-तुम्हारी मां! अगर तुम्हारी मां हम सबके साथ इस तरह कंधे से कंधा भिड़ाकर न चली होती और अपने कर्तव्य का पूरी तरह पालन न किया होता तो शायद हम इतने सफल न हो पाये होते। इसलिए अब मैं उसे पुरस्कार दे रहा हूं।'' और मैंने बहुत दिनों से संजोकर रखी हुई एक विलायती सिलाई मशीन पत्नी को भेंट की। पत्नी को पुरस्कार देते समय बच्चों ने एक साथ ताली बजाकर अपनी खुशी प्रकट की और पत्नी ने पुरस्कार लेते समय झुककर मेरे प्रति आदर प्रकट किया।
इसके बाद उस दिन का आयोजन समाप्त हो गया। हम लोगों ने एक साथ बैठकर खाना खाया और सोने की तैयारी करने लगे।
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