मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप अद्भुत द्वीपश्रीकान्त व्यास
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जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...
अपने नये जहाज में हमने हर तरह की सुविधा रखी थी। कोई भी हौसला बाकी नहीं रखा था। उसके डेक पर दो तोपें भी लगा दी थीं। उसे ऊपर से नीचे तक देखकर जितनी खुशी मुझे होती थी उससे कहीं ज्यादा खुश फ्रिटज, अर्नेस्ट और जैक थे।
जब हम अपने नये जहाज को किनारे पर ले चलने के लिए पूरी तरह तैयार हो गये तो फ्रिट्ज ने कहा, ''पापा हमारी इच्छा है कि तट पर पहुंचते ही हम अपनी मां को तोपों की सलामी दें।''
उन तीनों ने इतना काम किया था कि उनकी इच्छा को दबाना मुझे पसंद नहीं आया। मैंने स्वीकृति दे दी।
हमारी आठ खानों वाली नाव 'दि डिलीवरेंस' जहाज के पीछे बंधी थी और हम बड़ी शान के साथ अपने नये जहाज को 'सुरक्षातट' की ओर लिये जा रहे थे।
'सुरक्षातट' पर पहुंचते ही हमने दो तोपें दागकर सलामी दी। तोपों की आवाज से चारों ओर का वातावरण गूंज उठा। आवाज सुनकर नन्हा फ्रांसिस और उसकी मां भी तंबूघर से बाहर आ गए। जैसे ही हम लोग जहाज से नीचे उतरे उन्होंने आगे बढ़कर प्रसन्नता से हमारा स्वागत किया।
नये जहाज को देखकर पत्नी भी बेहद खुश थी। उसने कहा, ''सचमुच यह जहाज बहुत कीमती है! मुझे मालूम नहीं था कि रोज-रोज आप लोग इसी के लिए समुद्र में जाते हैं, नहीं तो मैं भी आपके साथ चलती और आपकी मदद करती।''
''तो तुम यह क्यों समझती हो कि तुमने मदद नहीं की है! घर की देखभाल, सबके खाने-पीने की व्यवस्था-यह सब भी तो इसी का एक हिस्सा था !'' मैंने पत्नी को समझाया।
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