मनोरंजक कथाएँ >> अद्भुत द्वीप अद्भुत द्वीपश्रीकान्त व्यास
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जे.आर.विस के प्रसिद्ध उपन्यास स्विस फेमिली रॉबिन्सन का सरल हिन्दी रूपान्तर...
पहले दिन हमें बहुत कम सफलता मिली। निराश होकर करीब-करीब हमने अपना इरादा बदल-सा ही दिया। लेकिन वह निराशा अधिक देर टिकी नहीं रह सकी। नये जहाज के लोभ ने हमारी हिम्मत बंधाई और हम साहस बटोरकर फिर काम में लग गए। उस दिन लौटते समय चावलों से भरा एक बोरा और मक्खन का एक बक्स जहाज पर दिखाई दे गया। इन चीजों को देखकर हम सब इतने खुश हुए मानो कोई बड़ी दुर्लभ वस्तु मिल गई हो। सचमुच उस वीरान प्रदेश में ये चीजें नियामत ही थीं। वे दोनों चीजें हम अपने 'घोसले' में ले आए। शाम को बड़ा जायकेदार पुलाव तैयार किया गया और उसे हम सबने बहुत प्रसन्नता से खाया।
इस प्रकार हमें दो मस्तुलों वाले उस नये जहाज के बनाने में पूरे सात दिन का समय लग गया। रोज शाम को हम घर लौट आते और सुबह आठ बजते-बजते फिर चल पड़ते। हम चारों लोगों को जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ी। लेकिन उस मेहनत के बदले में हमें जो चीज मिली थी, उसका मूल्य कहीं बहुत ज्यादा था। इसलिए हम सब बेहद खुश थे। अब केवल एक ही समस्या सामने थी कि उस नये जहाज को पानी में कैसे उतारा जाए। उसे हमने पुराने जहाज के अंदर ही बनाया था। पानी में उतारने का केवल एक ही तरीका था, वह यह कि पुराने जहाज के एक हिस्से को बारूद से उड़ा दिया जाए। काफी सोच-विचार के बाद मैंने वही तरीका अपनाया। जिस तरफ हमारा नया जहाज रखा था उसके दूसरी तरफ का सिरा हमने बारूद से उड़ा दिया। इस तरह हमारा नया जहाज आसानी से पानी पर आ गया।
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