बहुभागीय पुस्तकें >> भूतनाथ - भाग 1 भूतनाथ - भाग 1देवकीनन्दन खत्री
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भूतनाथ - भाग 1
गुलाबसिंह इससे ज्यादा कुछ कहने न पाया था कि सीटी बजाने वाला अर्थात् भूतनाथ वहाँ आ पहुँचा. प्रभाकरसिंह को सलाम करने के बाद भूतनाथ गुलाबसिंह के गले मिला और इसके बाद चारों आदमी पत्थर की चट्टानों पर बैठ कर इस तरह बातचीत करने लगे:-
गुलाब.: (भूतनाथ से) यहाँ यकायक आपका इस तरह आ पहुँचना बड़े आश्चर्य की बात है !!
भूतनाथ: आश्चर्य काहे का ! यहाँ तो मेरा ठिकाना ही ठहरा, या यों कहिये कि यह दिन-रात का मेरा रास्ता ही है.
गुलाब: ठीक है, मगर फिर भी आपका घर यहाँ से आधे घंटे की दूरी पर होगा ऐसी अवस्था में क्या जरूरी है कि आप दिन-रात इसी पहाड़ी पर दिखाई दें ?
भूत.: (हँस कर) हाँ सो तो सच है, मगर आप जो यहाँ आ पहुँचे तो फिर क्या किया जाय, आखिर मुलाकात करना भी तो जरूरी ठहरा !
गुलाब.: (हँसी के साथ) बस तो सीधे यही क्यों नहीं कहते कि मेरा यहाँ आना आपको मालूम हो गया.
भूत.: बेशक आपका आना मुझे मालूम हो गया बल्कि और भी कई बातें मालूम हुईं हैं जिनसे आप लोगों को होशियार कर देना जरूरी है. (प्रभाकरसिंह की तरफ देखकर) अभी तक दुश्मनों से आपका पीछा नहीं छूटा, खाली गुलाबसिंह ही आपकी गिरफ्तारी के लिए नहीं भेजे गये बल्कि इनको भेजने के बाद आपके राजा साहब ने और भी बहुत से आदमी आप लोगों को पकड़ने के लिए भेजे जो इस समय इस पहाड़ी के इधर-उधर आ गये हैं और आपके आदमियों को भी उन लोगों ने गिरफ्तार कर लिया है जिनका शायद आप इन्तजार करते होंगे.
प्रभा.: (ताज्जुब में आकर) आपकी जुबानी बहुत-सी बातें मालूम हुईं ! मुझे इन सब की कुछ भी खबर न थी. आप तो इस तरह बयान कर रहे हैं जैसे कोई जादूगर आइने के अन्दर जमाने भर की हालत देख-देख कर सभा में बयान करता हो !
गुलाब.: यही तो इनमें एक अनूठी बात है जिससे बड़े-बड़े नामी ऐयार दंग रहा करते हैं. इनसे किसी भेद का छिपा रहना बहुत ही कठिन है. (भूतनाथ से) अच्छा तो मेरे प्यारे दोस्त, मैं प्रभाकरसिंह और इन्दुमति को आपके सुपुर्द करता हूं. जिससे इनका कल्याण हो सो कीजिए. यह बात आपसे छिपी हुई नहीं है कि मैं इन्हें कैसा मानता हूँ.
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