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भूतनाथ - भाग 1

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : शारदा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1995
पृष्ठ :284
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4853
आईएसबीएन :81-85023-56-5

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भूतनाथ - भाग 1


प्रभाकरसिंह और गुलाबसिंह बातचीत करते हुए इन्दुमति की तरफ रवाना हुए और बहुत जल्द वहाँ पहुँचे जहाँ इन्दुमति चिन्ता-निमग्न बैठी हुई अपने पति का इन्तजार कर रही थी. पति को देखकर वह प्रसन्नता के साथ उठ बैठी और जब उसने गुलाबसिंह को पहिचाना तो बहुत खुश होकर बोली—

इन्दु.: मैं पहिले ही कहती थी कि गुलाबसिंह को हम लोगों के विषय में बड़ी चिन्ता होगी और वे जरूर हमारी सुध लेंगे.
गुलाब.: बेशक ऐसा ही है. इसीलिए जिस समय राजा साहब ने आप लोगों की गिरफ्तारी का काम मेरे सुपुर्द किया तो मैं बहुत ही प्रसन्न हुआ और.......
गुलाबसिंह अपनी बात पूरी न करने पाये थे कि लगभग चालीस-पचास गज की दूरी पर से सीटी बजने की आवाज आई जिसे सुनते ही तीनों चौंक पड़े और उसी तरफ देखने लगे. बेचारी इन्दु को दुश्मन का ख्याल आ गया और वह डरी हुई आवाज से बोली, यहाँ तक भाग आने पर भी हम लोगों का खुटका न गया, इसी से मैं कहती थी कि जहाँ तक जल्द हो सके नौगढ़ की सरहद में हमें पहुँच जाना चाहिए !

गुलाब.: (इन्दु से) डरो मत, हम दोनों क्षत्रियों के रहते किसकी मजाल है कि तुम्हें किसी तरह की तकलीफ पहुँचा सके. इसके अतिरिक्त इस बात को भी समझ रक्खो कि आज दिन सिवाय उस बेईमान राजा के और कोई तुम्हारा दुश्मन नहीं है और उसकी तरफ से इस काम के लिए मैं ही भेजा गया हूँ, ऐसी अवस्था में किसी वास्तविक दुश्मन का ध्यान लगाना वृथा है, हाँ चोर-डाकू में से यदि कोई हो तो मैं नहीं कह सकता.
इन्दु.: खैर पेड़ों की आड़ में तो हो जाइए.
गुलाब.: हाँ इसके लिए कोई हर्ज नहीं.
इतने ही में पुनः सीटी की आवाज आई, मगर अबकी दफे की आवाज कुछ अजीब ढंग की थी. मालूम होता था कि कोई बंधे हुए इशारे के साथ झिरनी की आवाज देकर सीटी बुला रहा है. इस आवाज को सुनकर गुलाबसिंह हँस पड़ा और इन्दु तथा प्रभाकरसिंह की तरफ देख के बोला, बस मालूम हो गया, डरने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि यह मेरे एक दोस्त की बजाई हुई सीटी है, मैं अभी जरूरी बातों से छुट्टी पाकर थोड़ी ही देर में आप लोगों से कहने वाला था कि यहाँ मेरे एक दोस्त का मकान है जिससे मिल कर आप बहुत प्रसन्न होंगे, और उनसे आपको सहायता भी पूरी-पूरी मिल सकती है. मैं अब इस सीटी का जवाब देता हूँ. बहुत अच्छा हुआ जो अकस्मात वे खुद यहाँ आ पहुँचे. मालूम होता है कि मेरा यहाँ आना उन्हें मालूम हो गया !

इतना कह कर गुलाबसिंह ने भी कुछ अजीब ढंग की सीटी बजाई अर्थात् उस सीटी की जवाब दिया.
प्रभा.: भला अपने इस अनूठे दोस्त का नाम तो बता दो ?
गुलाब.: आजकल इन्होंने अपना नाम भूतनाथ रख छोड़ा है.
प्रभा.: (कुछ सोच कर) यह नाम तो कई दफे मेरे कानों में पड़ चुका है और एक दफे ऐसा भी सुन चुका हूँ कि इस नाम का एक आदमी बड़ा ही भयानक है जिसके रहन-सहन का किसी को कुछ पता नहीं चलता.
गुलाब.: ठीक है, आपने ऐसा ही सुना होगा, परन्तु यह केवल दुष्टों और पापियों के लिए भयानक है.


उलझाने वाले किस्से आगे यहाँ पढ़ें

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