बहुभागीय पुस्तकें >> भूतनाथ - भाग 1 भूतनाथ - भाग 1देवकीनन्दन खत्री
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भूतनाथ - भाग 1
भूत.: मैं सब जानता हूँ और इसीलिए यहाँ आया भी हूँ, परन्तु अब विशेष बातचीत करने का मौका नहीं, आप उठिए और मेरे पीछे आइए.
प्रभा.: (उठते हुए) मुझे अपने लिए कुछ भी फिक्र नहीं है, केवल बेचारी इन्दु के लिए मुझे नामर्दों की तरह भागने और अदने-अदने आदमियों से छिपकर चलने.......
भूत.: (बात काट कर) मैं खूब जानता हूँ, मगर क्या कीजिएगा, समय पर सब कुछ करना पड़ता है, आँख रहते भी टटोलना पड़ता है !
सब कोई उठ कर भूतनाथ के पीछे-पीछे रवाना हुए.
जो कुछ हाल हम ऊपर बयान कर चुके हैं इसमें कई घंटे गुजर गये.
पिछले पहर की रात बीत रही है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, इन चारों के पैरों के तले दबने वाले सूखे पत्तों की चरमराहट के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती. भूतनाथ इन तीनों को साथ लिए हुए एक अनूठे और अनजान रास्ते से बात की बात में पहाड़ी के नीचे उतर आया और इसके बाद दक्षिण की तरफ जाने लगा. जंगल ही जंगल लगभग आधा कोस के जाने के बाद ये लोग पुनः एक पहाड़ के नीचे पहुँचे. इस जगह का जंगल बहुत ही घना तथा रास्ता घूमघुमौवा और पथरीला था. भूतनाथ इस तरह घूमता और चक्कर देता हुआ पेचीली पगडंडियों पर जाने लगा कि कोई अनजान आदमी उसकी नकल नहीं कर सकता था, अथवा यों समझना चाहिए कि एक-दो दफे का जानकार आदमी भी धोखे में आकर भटक सकता था, किसी अनजान का जाना तो बहुत ही कठिन बात है.
कुछ ऊपर चढ़ने के बाद घूमता-फिरता भूतनाथ एक ऐसी जगह पहुँचा जहाँ पत्थरों के बड़े-बड़े ढोकों के अन्दर छिपी हुई एक गुफा थी. इन तीनों को लिए हुए भूतनाथ उस गुफा के अन्दर घुसा. आगे-आगे भूतनाथ, उसके पीछे गुलाबसिंह, उसके बाद इन्दुमति और सबसे पीछे प्रभाकरसिंह जाने लगे. कुछ दूर गुफा के अन्दर जाने के बाद भूतनाथ ने अपने ऐयारी बटुए में से सामान निकाल कर मोमबत्ती जलाई और उसकी रोशनी के सहारे अपने साथियों को ले जाने लगा, लगभग पचीस गज के जाने के बाद एक चौमुहानी मिली अर्थात् जहाँ से एक रास्ता सीधी तरफ चला गया था, दूसरा बाईं तरफ, और तीसरी सुरंग दाहिनी तरफ चली गई थी, तथा चौथा रास्ता वह था जिधर से ये लोग आये थे. यहाँ तक तो रास्ता खुलता था मगर आगे का रास्ता बहुत ही बारीक और तंग था जिसमें दो आदमी बराबर से मिल कर नहीं चल सकते थे.
यहाँ पर आकर भूतनाथ अटक गया और मोमबत्ती की रोशनी में आगे की दोनों सुरंगों को बता कर अपने साथियों से बोला, हमारे मकान में जाने वाले को इस दाहिनी तरफ वाली सुरंग में घुसना चाहिए. सामने अथवा बाईं तरफ वाली सुरंग में जाने वाला किसी तरह जीता नहीं बच सकता है.
इतना कह कर भूतनाथ दाहिनी तरफ वाली सुरंग में घुसा और कुछ दूर जाने के बाद उसने मोमबत्ती बुझा दी.
लगभग दो सौ कदम चले जाने के बाद यह सुरंग खतम हुई और उसका दूसरा मुहाना नजर आया. सबके पहले भूतनाथ सुरंग से बाहर हुआ, इसके बाद गुलाबसिंह और उसके पीछे इन्दुमति रवाना हुई, मगर प्रभाकरसिंह न निकले, तीनों आदमी घूमकर उनका इन्तजार करने लगे कि शायद पीछे रह गए हों मगर कुछ देर इन्तजार करने पर भी वे नजर न आये. इन्दुमति का कलेजा उछलने लगा, उसकी दाहिनी भुजा फड़क उठी और आँखों में आँसू डबडबा आये. भूतनाथ ने इन्दुमति और गुलाबसिंह को कहा, तुम जरा इसी जगह दम लो, मैं सुरंग में घुस कर प्रभाकरसिंह का पता लगाता हूँ. इतना कहकर भूतनाथ पुनः उसी सुरंग में घुस गया.
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