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बहुभागीय पुस्तकें >> भूतनाथ - भाग 1

भूतनाथ - भाग 1

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : शारदा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1995
पृष्ठ :284
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4853
आईएसबीएन :81-85023-56-5

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भूतनाथ - भाग 1


इसके साथ ही गुलाबसिंह के बाकी साथी भी बोल उठे, बेशक ऐसा ही है, बेशक ऐसा ही है !

गुलाब: (प्रसन्नता से) ईश्वर की कृपा है कि मेरे साथी लोग भी मेरी इच्छानुसार चलने के लिए तैयार हैं. (नौजवान से) अब आप ही आज्ञा कीजिए कि हम लोग क्या करें ? क्योंकि अब भी मैं अपने को आपका दास ही समझता हूँ.
नौजवानः मेरे प्यारे गुलाबसिंह, शाबाश ! इसमें सन्देह नहीं कि तुम्हारे ऐसे नेक और बहादुर आदमी का साथ बड़े भाग्य से होता है. मैं तुम्हें अपने आधीन पाकर बहुत ही प्रसन्न था और अब भी यही इच्छा रहती है कि ईश्वर तुम्हें मेरा साथी बनाये, मगर क्या करूँ, लाचार हूँ, क्योंकि आज मेरा वह समय नहीं है. आज मुसीबत के फन्दे में फंस जाने से मैं इस योग्य नहीं रहा कि तुम्हारे ऐसे बहादुरों का साथ.....(लम्बी साँस लेकर) अस्तु ईश्वर की मर्जी, जो कुछ वह करता है अच्छा ही करता है, कदाचित् इसमें भी मेरी कुछ भलाई ही होगी. (कुछ सोच कर) मैं तुम्हें क्या बताऊँ कि क्या करो ? तुम्हारे मालिक ने बेशक धोखा खाया कि मेरी गिरफ्तारी के लिए तुम्हें भेजा, इतने दिनों तक साथ रहने पर भी उसने तुम्हें और मुझे नहीं पहिचाना. मुझे इस समय कुछ भी नहीं सूझता कि तुम्हें क्या नसीहत करूं और किस तरह उस दुष्ट का नमक खाने से तुम्हें रोकूँ !

गुलाब: (कुछ सोच कर) खैर कोई चिन्ता नहीं, जो होगा देखा जायगा. इस समय मैं आपका साथ कदापि न छोड़ूँगा और इस मुसीबत में आपको अकेले भी न रहने दूँगा. जो कुछ आप पर बीतेगी उसे मैं भी सहूँगा. (अपने साथियों से) भाइयो, अब तुम लोग जहाँ चाहे जाओ और जो मुनासिब समझो करो, मैं तो अब इनके दुःख-सुख का साथी बनता हूँ. यद्यपि ये (नौजवान) उम्र में मुझसे बहुत छोटे हैं परन्तु मैं इन्हें अपना पिता समझता हूँ और पिता ही की तरह इन्हें मानता हूँ, अस्तु जो कुछ पुत्र का धर्म है मैं उसे निबाहूँगा. मैं इनको गिरफ्तार करने की आज्ञा पाकर बहुत प्रसन्न था और यही सोचे हुआ था कि इस बहाने से इन्हें ढूँढ़ निकालूँगा और सामना होने पर इनकी सेवा स्वीकार करूँगा.
गुलाबसिंह की बातें सुन कर उसके साथियों ने जवाब दिया, ठीक है, जो कुछ उचित था आपने किया परन्तु आप हम लोगों का तिरस्कार क्यों कर रहे हैं ? क्या हम लोग आपकी सेवा करने के योग्य नहीं हैं ? या हम लोगों को आप बेईमान समझते हैं ?
गुलाब.: नहीं-नहीं, ऐसा कदापि नहीं है, मगर बात यह है कि जो कोई मुसीबत में पड़ा हो उसका साथ देने वाले को भी मुसीबत झेलनी पड़ती है, अस्तु मुझ पर तो जो कुछ बीतेगी उसे झेल लूँगा, तुम लोगों को जान-बूझ कर क्यों मुसीबत में डालूँ ! इसी ख्याल से कहता हूँ कि जहाँ जी में आवे जाओ और जो कुछ मुनासिब समझो करो.
गुलाबसिंह के साथी: नहीं-नहीं, ऐसा कदापि न होगा और हम लोग आपका साथ कभी न छोड़ेंगे. आप आज्ञा दें कि अब हम लोग क्या करें.


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