सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
हुसैन– (दिल में) सैदावी, जाते हो, मगर मुझे शक है कि तुम लौटोगे! तुमने जिसे न दीन की हिफ़ाजत का ख्याल है, न हक का, जिसे दुश्मनों ने चारों तरफ़ से घेर नहीं रखा है, जिसको शहीद करने के लिए फौजे नहीं जमा की जा रही हैं, जो दुनिया में आराम से जिंदगी बसर कर सकता है, महज वफ़ादारी का हक़ अदा करने के लिए जान-बूझकर मौत के मुंह में कदम रखा है, तो मैं मौत से क्यों डरूं।
[गाते हैं।]
मौत का क्या उसको हैं, जो मुसलमां हो गया,
जिसकी नीयत नेक हैं, जो सिदकू ईमां हो गया।
कब दिलेरों को सताए फिक्र जर और खौफ़ जो,
अज्म सादिक उसका है, जो पाक दामा हो गया।
क्यों नदामत हो मुझे, दुनिया में ग़र जिंदा रहा,
जाय ग़म क्या है, जो नज़रे-तेग़ बुर्रा हो गया।
हो अदू दुनिया में रुसवा, आखिरत में ग़म नसीब,
मुनहरिफ दीं से हुआ, औं’ नंग-दौरां हो गया।
जिसकी नीयत नेक हैं, जो सिदकू ईमां हो गया।
कब दिलेरों को सताए फिक्र जर और खौफ़ जो,
अज्म सादिक उसका है, जो पाक दामा हो गया।
क्यों नदामत हो मुझे, दुनिया में ग़र जिंदा रहा,
जाय ग़म क्या है, जो नज़रे-तेग़ बुर्रा हो गया।
हो अदू दुनिया में रुसवा, आखिरत में ग़म नसीब,
मुनहरिफ दीं से हुआ, औं’ नंग-दौरां हो गया।
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