सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
|
448 पाठक हैं |
मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
हुसैन– अब मुझे मरने का ग़म नहीं रहा। मेरे नाना की उम्मत हक और इंसाफ की हिमायत करेगी। शायद इसीलिए रसूल ने अपनी औलाद को हक पर कुर्बान करने का फैसला किया है। हुर, तुमने इस फकीर की पेशगोई सुनी?
हुर– या हज़रत, आपका रुतबा आज जैसा समझा हूं, ऐसा कभी न समझा था। हुजूर रसूल पाक से मेरे हक़ में दुआ करें कि मुझ रूहस्याह के गुनाह मुआफ़ करें।
[चला जाता है]
हुसैन– अब्बास, अब हमें कूफ़ावालों को अपने पहुंचने की इत्तिला देनी चाहिए।
अब्बास– वजा है।
हुसैन– कौन जा सकता है?
अब्बास– सैदावी को भेज दूं?
हुसैन– बहुत अच्छी बात है।
[अब्बास सैदावी को बुला लाते हैं।]
अब्बास– सैदावी, तुम्हें हमारे पहुंचाने की खबर लेकर कूफ़ा जाना पड़ेगा। यह कहने की जरूरत नहीं कि यह बड़े खतरे का काम है।
सैदावी– या हजरत, जब आपकी मुझ पर निगाह है, तो फिर खौफ़ किस-किस बात का।
हुसैन– शाबाश, यह खत लो, और वहां किसी ऐसे सरदार को देना, जो रसूल का सच्चा बंदा हो। जाओ, खुदा तुम्हें खैरियत से ले जाये।
[सैदावी जाता है।]
|