सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
पांचवां दृश्य
[रात का समय। हुसैन अपने खेमे में सोए हुए हैं। वह चौंक पड़ते हैं, और लेटे हुए, चौकन्नी आंखों से, इधर-उधर ताकते हैं।]
हुसैन– (दिल में) यहां तो कोई नजर नहीं आता। मैं हूं, शमा है, और मेरा धड़कता हुआ दिल है। फिर मैंने आवाज किसकी सुनी! सिर में कैसा चक्कर आ रहा है। जरूर कोई था। ख्वाब पर हकीकत का धोखा नहीं हो सकता। ख्वाब के आदमी शबनम के परदे में ढकी हुई तस्वीरों की तरह होते हैं। ख्वाब की आवाज़ें जमींन के नीचे से निकलने वाली आवाजों की तरह मालूम होती है। उनमें यह बात कहां! देखूं, कोई बाहर तो खड़ा नहीं है। (खेमे से बाहर निकलकर) उफ् कितनी गहरी तारीकी है, गोया मेरी आँखों ने कभी रोशनी देखी ही नहीं। कैसा गहरा सन्नाटा है, गोया सुनने की ताकत ही से महरूम हूं। गोया यह दुनिया अभी-अभी अदम के ग़ार से निकली है (प्रकट) कोई हैं।
[अली अकबर का प्रवेश]
अली०– हाज़िर हूं, अब्बाजान, क्या इरशाद है?
हुसैन– यहां से अभी कोई सवार तो नहीं गुजरा है?
अली०– अगर मेरे होश-हवास बजा हैं, तो इधर कोई जानदार नहीं गुजरा।
हुसैन– ताज्जुब है, अभी लेटा हुआ था, और जहां तक मुझे याद है, मेरी पलकें तक नहीं झपकीं, पर मैंने देखा, एक आदमी मुश्की घोड़े पर सवार सामने खड़े होकर मुझसे कह रहा है कि ‘ऐ हुसैन! इराक जाने की जल्दी कर रहे हो, और मौत तुम्हारे पीछे-पीछे दौड़ी जा रही है।’ बेटा, मालूम हो रहा है, मेरी मौत करीब है!
अली०– बाबा, क्या हम हक़ पर नहीं हैं?
हुसैन– बेशक, हम हक़ पर हैं, तो मौत का क्या डर। क्या परवा, अगर हम मौत की तरफ जायें या मौत हमारी तरफ आए।
हुसैन– बेटा, तुमने दिल खुद कर दिया। खुदा तुमको वह सबसे बड़ा इनाम दे, जो बाप बेटे को दे सकता है।
[जहीर, हबीब, अब्दुला, कलबी और उसकी स्त्री का प्रवेश।]
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