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सदाबहार >> कर्बला

कर्बला

प्रेमचंद

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :155
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4828
आईएसबीएन :9788171828920

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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।


योगी– भगवन्! मैं उस स्थान को जाना चाहता हूं, जहां महर्षि मुहम्मद की समाधि है।

हुसैन– तुम कौन हो? यह कैसी शक्ल बना रखी है?

योगी– साधु हूं। उस देश से आ रहा हूं, जहां प्रथम ओंकार-ध्वनि की सृष्टि हुई थी। महर्षि मुहम्मद ने उसी ध्वनि से संपूर्ण जगत को निनादित कर दिया है। उनके अद्वैतवाद ने भारत के समाधि-मग्न ऋषियों को भी जागृति प्रदान कर दी है। उसी महात्मा की समाधि का दर्शन करने के लिए मैं भारत से आया हूं, कृपा कर मुझे मार्ग बता दीजिए।

हुसैन– आइए, खुशनसीब कि आपकी जियारत हुई। रात का वक्त है अंधेरा छाया हुआ है। इस वक्त यहीं आराम कीजिए। सुबह मैं आपके साथ अपना एक आदमी भेज दूंगा।

योगी– (गौर से हुसैन के चेहरे को देखकर) नहीं महात्मन् मेरा व्रत है कि उस पावन भूमि का दर्शन किए बिना कहीं विश्राम न करूंगा। प्रभो, आपके मुखारविंद पर भी मुझे उसी महर्षि के तेज का प्रतिबिंब दिखाई देता है। आप उनके आत्मीय हैं?

हुसैन– जी हां, उनका नेवासा हूं। मगर आपने नाना को देखा ही नहीं, फिर आपको कैसे मालूम हुआ कि मेरी सूरत उनसे मिलती है?

योगी– (हंसकर) भगवन्! मैंने उनका स्थूल शरीर नहीं देखा, पर उनके आत्मशरीर का दर्शन किया है। आत्मा द्वारा उनकी पवित्र वार्ता सुनी है। में प्रत्यक्ष देख रहा हूं कि आप में वही पवित्र आत्मा अवतरित हुई है। आज्ञा दीजिए, आपके चरण-रज से अपने मस्तक को पवित्र करूं।

हुसैन– (पैरों को हटाकर) नहीं-नहीं, मैं इंसान हूं और रसूल पाक की हिदायत है कि इंसान को इंसान की इबादत वाजिब नहीं।

योगी– धन्य है! मनुष्य के ब्रह्मत्व का कितना उच्च आदर्श है! यह ज्ञान-ज्योति, जो इस देश के उद्भाषित हुई है, एक दिन समस्त भूमंडल को आलोकित करेगी, और देश-देशांतरों में सत्य और न्याय का मुख उज्जवल करेगी। हां, इस महार्षि की संतान-न्याय-गौरव का पालन करेगी। अब मुझे आज्ञा दीजिए, आपके दर्शनों से कृतार्थ हो गया।

[योगी चला जाता है]

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