लोगों की राय

मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

292 पाठक हैं

अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


रहमान ने जिन्न को हुक्म दिया-“हमें फौरन मिस्र देश के अलहलर नामक गांव में ले चलो।"
जिन्न बोला-“जो हुक्म मेरे आका।”
इतना कहकर वह दोनों को लेकर अलहलर नामक गांव की ओर उड़ा। चला-जो कि मित्र देश में था।
रईसा मिस्र की रहने वाली थी। उसकी जिन्दगी गरीबी में बीती थी। बहुत गरीब होने की वजह से उसके बाप ने उसे एक सौदागर के हाथ बेच दिया था। इसके बाद रईसा किसी तरह शहज़ादी नूरमहल की सेवा में आ गई थी और तभी से वह शहजादी नूरमहल की खिदमत कर रही थी।
शहजादी नूरमहल शादी होकर जब होकर जब अलादीन के महल में आयीं थी, तो वह भी उसके साथ ही आ गई थी।
कुछ ही देर में जिन्न ने उन दोनों को अलहलर गांव में पहुँचा दिया। सामने ही रईसा का घर नजर आ रहा था। “अब तुम अपने घर जाओ। पन्द्रह-बीस दिन बाद मैं खुद तुम्हें लेने आऊंगा।” रहमान ने रईसा को आश्वासन देते हुए कहा।
रईसा की आंखों में आंसू आ गये। वह रुंधे गले से बोली-“मेरे सरताज आप मुझे भूल न जाना।”
कैसी बात करती हो रईसो! तुम्हारी वजह से ही तो मुझे नई जिन्दगी हासिल हुई है। तुम्हारी मदद की वजह से ही मैं अलादीन से अपना बदला लेकर बगदाद को बादशाह बनूंगा, जरा सोचो, क्या मैं तुम्हें भूल पाऊंगा? नहीं रईसा, कभी नहीं। अगर मैं तुम्हारे साथ ऐसी दगाबाजी करूंगा तो अल्लाह मुझे कभी भी माफ नहीं करेगा।” इस तरह लम्बी-चौड़ी फरेबी बातें करके रहमान ने उसे रुखसत किया।
रईसा भारी कदमों से अपने घर की ओर चल दी। रहमान ने एक पल। कुछ सोचकर जाती हुई रईसा को पुकारा। रईसा दौड़ती हुई वापस रहमान के पास आयी।
रहमान ने अपने जिस्म के सभी जवाहरात उतारकर रईसा को दिये और बोला-"ये सब अपने पास रख लो, अब मुझे इनकी कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि अब तो मुझे तलवार से खेलना होगा।”
उसकी बात सुनकर रईसा की आंखें एक बार फिर से भर आयीं। वह बोली-“तुम जल्द-से-जल्द कामयाब होकर लौटो मेरे सरताज, मेरी दुआयें कदम-कदम पर तुम्हारी ढाल बनकर तुम्हारे साथ रहेंगी। खुदा हाफिज।”
"खुदा हाफिज।” रहमान ने भी धीरे से कहा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book