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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


शहजादी के हुस्न का दीदार करने के लिये रहमान ने चुपके से उसके कमरे में झांका और अन्दर का दृश्य देखकर वह सन्न रह गया। अन्दर शहजादी और अलादीन रति-क्रीड़ा में डूबे हुए थे। उनको देखकर रहमान के सब्र का बांध टूटने लगा। उसने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और वहाँ से हट गया। अब तो उसके बदला लेने के जज्बात और भी भयंकर रूप धारण कर चुके थे। उसे महल में रहते हुए कई दिन गुजर चुके थे, लेकिन वह अपनी मन्जिल को नहीं पा सका था। उसे अब यह फिक्र सताने लगी थी, कि अगर वह अपनी मन्जिल को नहीं पा सको तो क्या होगा?
शहजादी की खिदमत में रहकर वह इतना तो जान ही चुका था कि अलादीन चिराग की हिफाजत अपनी जान से भी बढ़कर करता है। वह चिराग को ऐसी जगह रखता है जहाँ पर परिन्दा भी पर नहीं मार सकता, लेकिन वह जगह कौन-सी है, यह राज रहमान अभी तक नहीं जान पाया था।
अलादीन चिराग की हिफाजत के लिये इतना चौकन्ना था कि उसने शहजादी तक को नहीं बता रखा था कि वह चिराग कहाँ रखता है। जादूगर वाली घटना से वह इतना चौकन्ना हो गया था कि वह चिराग के मामले में किस तरह का कोई खतरा लेने को तैयार न था। चिराग कहाँ है और किस हालत में है? यह अलादीन के सिवा कोई नहीं जानता था।
यही बात रह-रहकर रहमान को सता रही थी। वह दिन-रात यही सोचता कि चिराग कहाँ है? उसे कैसे झसिल करूँ? हो सकता है कि चिराग अलमारी। में ही रखता होगा; क्योंकि चाबियों का गुच्छा वह अपने पास ही रखता है। चिराग पाने की वह नई-नई तरकीबें निकालता, लेकिन सब बेकार चली जातीं। उसे आज तक चिराग की गंध तक वहीं मिली थी। ऐसी ही सोचों में गुम वह अपने बिस्तर पर पड़ा था।
तभी कोई दरवाजा खोलकर कमरे में दाखिल हुआ। आहट पाकर रहमान चौंक पड़ा। चौंककर उसने दरवाजे की तरफ देखा, वहाँ रईसा खड़ी थी।
रईसा अलादीन के महल की दासियों की मुखिया थी। रहमान ने अपने सिर के दुपट्टे को ठीक किया और पलंग पर से उठते हुए बोला-“आपने यहाँ आने की तकलीफ क्यों की, मुझे ही बुलवा लिया होता?”
रईसा एक खूबसूरत दासी थी। खाली कुर्सी पर बैठते हुए वह बोली-"नींद नहीं आ रही थी। सोचा कि तुम्हारे पास हो आऊं। इसलिये चली आई। कुछ बातें करेंगे, तो रात आराम से कट जायेगी।”
रहमान ने आगे बढ़कर लैम्प की लौ तेज कर दी। कमरे में रोशनी बढ़ गई। रहमान ने मुस्कराकर रईसा की ओर देखा, तो देखता ही रह गया। वह अपलक रईसा की खूबसूरती को ही देखे जा रहा था। एक पल के लिये तो वह यह भी भूल गया कि वह हिजड़े के वेष में है, उसे सिर्फ और सिर्फ अपना पुरुष होना ही याद था।

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