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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


रहमान ठंडी आह भरकर सोचने लगा-‘खैर, आज नहीं तो कल शहजादी फिर से मेरी होगी। अल्लाह के करम से मुझे सब कुछ मिल जायेगा।
रहमान ने किसी प्रकार दिल पर पत्थर रखकर शहजादी के बाल बनाये। अपने बालों को देखकर शहजादी बहुत खुश हुई, क्योंकि रहमान ने उसके बाल बहुत खूबसूरत तरीके से संवारे थे।
आज से सिर्फ तुम ही मेरे बाल संवारोगी चाँदनी।” शहजादी उसका हाथ पकड़कर बोली।
“आपकी मेहरमानी है बेगम साहिबा, वरना मैं किस लायक हूँ।” रहमान ने सिर झुकाकर कहा।
उस दिन के बाद से रहमान शहजादी का खास खिदमतगार बन गया। वह रोज शहजादी के बाल संवारने लगा। महल में अब उसकी खास अहमियत हो गयी थी। सभी नौकरानियां और दासियां रहमान उर्फ चाँदनी को अपनी सहेली की तरह मानने लगी थीं।
एक रात की बात है-रहमान अपने कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ अपनी सोच में गुम था। उसको नींद नहीं आ रही थी। वह जिस काम को करने के लिये हिजड़ा बनकर यहाँ आया था, वह काम अभी भी अधूरा पड़ा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि वह जादुई चिराग कैसे हासिल करे?
वह इतने दिनों में भी यह नहीं जान पाया था कि आखिर अलादीन उस चिराग कों रखता कहाँ है?
चिराग पाना तो दूर रहा, उसे तो अब यह डर संताने लगा था कि कहीं वह अपने मकसद में नाकाम न हो जाये। बैसूफा से तो उसने कहा था कि वह चिराग आसानी से पा लेगा, लेकिन अभी तक उसने चिराग को देखा तक न था। उल्टे यहाँ आकर शहजादी और अलादीन की खुशियां देखकर उसकी दिल जलने और लगा था। जब वह शहजादी और अलादीन को प्यार-मुहब्बत की बातें करते देखता तो उसके तन-बदन में आग लग जाती। उसका दिल चाहता कि वह अलादीन को अभी खत्म कर डाले, लेकिन वह मजबूर था।
वह ऐसा नहीं कर सकता था। उसे अपने दिल पर पत्थर रखकर रह जाना। पड़ता। लेकिन वह सोचा करता कि-'जिस दिन भी दांव लगेगा, सब सूद समेत वसूल लूंगा।'
एक दिन तो उसके गुस्से की हद ही न रही।

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