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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


नौकरानी के जाने के बाद अलादीन ने हिजड़े से पूछा--"कौन हो तुम? यहाँ पर कैसे आना हुआ?”
हिजड़े की आंखों में आंसू आ गये। भर्राई आवाज में वह कहने लगा-“सरकार, नसीबों की मारी मैं रूस की रहने वाली हूँ। मेरा नाम चाँदनी है। पहले रूस के बादशाह के महल में काम किया करती थी, लेकिन बादशाह ने बेवजह मुझे अपने महल से निकाल दिया। तब से मैं दर-दर की ठोकरें खाती भटक रही हूँ। यहाँ पहुंची तो आपकी नेकियों के किस्से सुने। सोचा, आपसे एक बार मिल लें, शायद आपके दिल में मेरे प्रति दया आ जाए और यहाँ नौकरी मिल जाये।”
“ठीक है, मैं तुम्हें काम पर रख लेता हूँ।” अलादीन ने कहा-“लेकिन जो काम दिया जायेगा पूरा करना पड़ेगा।”
“जी बिल्कुल सरकार। आप जो काम कहेंगे मैं पूरा करूंगी।” हिजड़े ने सिर झुकाकर कहा था।
अलादीन ने उसी वक्त हिजड़े को काम पर रख लिया। हिजड़ा बना रहमान अलादीन के गुणगान करता हुआ महल में दाखिल हुआ। महल में दाखिल होते वक्त वह सोच रहा था-"बेटा अलादीन, अब तेरी और उस बेवफा शहजादी नूरमहल की जिन्दगी तबाह होनी शुरू हो चुकी है, क्योंकि तुम संबकी मौत अब तुम्हारे महल में घुस चुकी है।
उसके बाद रहमान अपने काम में जुट गया। उसे जो काम बताया जाता, उसे वह बड़ी लगन, मेहनत और बड़ी ही सूझ-बूझ के साथ करता। जल्दी ही वह अलादीन और नूरमहल का मुंहलगा नौकर हो गया।
रहमान अपने सिर के बाल इतनी खूबसूरती से बांधता था कि महल की सभी सुन्दरियां उसके बालों को देखकर जलने लगी थीं। एक बार शहजादी नूरमहल ने उससे पूछा-“चाँदनी, तुमने इतने खूबसूरंत बाल बनाने कहाँ से सीखे?"
चाँदनी सिर झुकाकर बोली-“बेगम साहिबा, इस बांदी के देश रूस में बाल ऐसे ही गूंथे जाते हैं।”
“हमारे बाल भी संवार दिया करो चाँदनी।” शहजादी ने मुस्कराकर कहा।
“ये कनीज आप पर कुर्बान जाये बेगम साहिबा, यह तो इस कनीज की खुशनसीबी होगी कि आपकी खिदमत का मौका मिलेगा।”
“तो फिर ठीक है।” शहजादी बोली-“आज से हमारे बाल तुम बनाओगी।”
इतना कहकर शहजादी रहमान उर्फ चाँदनी को लेकर अपने कमरे में आ गयी। चाँदनी उसके बाल बनाने लगी। इस समय रहमान शहजादी के कोमल तथा रेशम की तरह मुलायम बालों से खेल रहा था। अनायास ही वह मन-ही-मन सोचने लगा-‘उफ्फ! ये बाल, यह गुलाब की तरह महकता बदन मेरा था। बड़ी-बड़ी हिरनी-सी आंखें भी मेरी ही थीं। मगर उस नामुराद, कमीने अलादीन ने मेरी खुशियों पर डाका डाल दिया।

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