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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


इधर अलादीन बहुत खुश था। एक दिन वह अपनी अम्मी से बोला-“अम्मी, रहमान शहजादी को तलाक दे चुका है। अब तुम फिर से
बादशाह के पास जाकर मेरी शादी की बात करो। मुझे उम्मीद है कि बादशाह जरूर मान जाएगा।”
अलादीन की बात सुनकर उसकी मां एकदम भड़क उठी, वह उसे डांटते हुए बोली-“तेरा दिमाग तो खराब नहीं है, अब शहजादी से तेरी शादी हरगिज नहीं हो सकती। इस दुनिया में क्या लड़कियों की कमी है जो तू एक तलाकशुदा से शादी करेगा? मैं ऐसा हरगिज नहीं होने दूंगी।”
मां की बात सुनकर अलादीन मुस्कराने लगा। उसने चिराग घिसकर वहाँ जिन्न को बुला लिया और दोनों ने मिलकर मां को सारा किस्सा कह सुनाया। सारी बात सुनकर मां बोली-“तू तो बड़ा शैतान है रे! तूने तो कमाल ही कर डाला।”
“मैंने कुछ नहीं किया अम्मी, सब अल्लाह की मेहरबानी है। अब तो तुम बादशाह के पास जाने की तैयारी करो।” अलादीन उतावला-सा होकर बोला।
“ठीक है, मैं बादशाह के पास जाती हूँ।”
इतना कहकर अलादीन की मां बादशाह के पास जाने की तैयारी करने लगी। इस बार वह शानो-शौकत से जाना चाहती थी। अलादीन खुश था। अब वह शहजादी को अपनी दुल्हन के रूप में देखने लगा था।
अलादीन की मां जब दरबार में पहुंची तो बादशाह ने खड़े होकर उसका इस्तकबाल किया। वह उसे इज्जत के साथ महल के अन्दर ले गया। वहाँ उसने अलादीन की मां से अपने किये की माफी मांगी और कहने लगा- “मैंने आपसे वादाखिलाफी की, इसके लिये मैं बहुत पछता-रहा हूँ। बेकार में मैंने एक पागल से अपनी फूल-सी बच्ची की शादी कर दी, जिसकी वजह से आज मुझे ये दिन देखने पड़ रहे हैं। अगर आप चाहें तो अब भी शहजादी को अपनी बहू बना सकती हैं।”
“हुजूर! मैं तो आयी ही इसीलिये हूँ।” अलादीन की मां बोली-“मैं अब भी शहजादी को अपनी बहू बनाना चाहती हूँ।”
वजीर उसी समय कमरे में आया और चुपचाप एक कोने में खड़ा हो गया। बादशाह की बात सुनकर वह बोला-“वैसे तो मैं पहले ही गलतीं कर चुका हूँ कि मैंने शहजादी की शादी अपने पागल बेटे के साथ करवा दी, परन्तु मुझे खुद नहीं पता था कि मेरा बेटां पागल हो जायेगा। शहजादी से उसकी शादी करवाकर मैं भी बहुत पछता रहा हूँ, लेकिन मेरा ख्याल है कि अगर आप इनके बेटे को एक बार देख लें तो बेहतर होगा।”
बादशाह ने एक पल को सोचा। वजीर की बात में उसे दम लगी। वह बोला-“तुम ठीक कहते हो, एक बार हमें लड़के को ठीक प्रकार से देख लेना चाहिये। एक बार धोखा खाने के बाद हम अब आगे धोखे में नहीं रहना चाहते।”
फिर वह अलादीन की मां से बोला-“बहनजी! यदि आपको एतराज न हो तो हम आपके बेटे को एक नजर देखना चाहते हैं। यदि आप अपने बेटे को यहाँ भेज दें तो बहुत अच्छा रहेगा।”
“जैसी आपकी मर्जी बादशाह सलामत! मुझे कोई ऐतराज नहीं है।” अलादीन की मां बोली-“अब तो वह आपका दामाद है। मैं उसे आपके पास भेज दूंगी।”
अलादीन की मां इतना कहकर वापस अपने घर लौट आयी।

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