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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


महल में शहजादी नूरमहल तथा रहमान की शादी बड़ी धूमधाम से हुई। रहमान दुल्हन के रूप में शहजादी को पीकर बहुत खुश था।
उधर अलादीन एक पेड़ के नीचे बैठा बार-बार आकाश की ओर देख रहा था। जैसे-जैसे वक्त गुजरता जा रहा था, वैसे-वैसे उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उसके दिल में बार-बार यही बात आ रही थी कि अगर जिन्न अपने काम में कामयाब नहीं हुआ तो क्या होगा? उसे रह-रहकर पछतावा भी हो रहा था कि आखिर उसने नूरमहल की शादी रहमान से होने ही क्यों दी? शादी से पहले ही शहजादी को उठवाकर यहाँ क्यों नहीं मंगवा लिया? शहजादी को लेकर वह फौरन ही यहाँ से कहीं दूर चला जाता और फिर कभी भी लौटकर इस शहर में नहीं आता।
शहजादी नूरमहल दुल्हन बनी कमरे में बैठी हुई थी। उसकी सहेलियों ने उसे घेर रखा था, जो उसके साथ हँसी-मजाक कर रही थीं।
लेकिन शहजादी को इन बातों से कोई सरोकार न था। उसकी आंखों से झर-झर आंसू बह रहे थे। वह शराबी और एय्याश रहमान को बिल्कुल भी पसन्द नहीं करती थी। लेकिन अपने बाप के सामने डर के मारे वह यह बात किसी से कह नहीं पायी थी। सब तो यही सोच रहे थे कि शहजादी रहमान से मुहब्बत करती है। शहजादी ने चुपचाप सिर झुकाकर रेहमान से शादी कर ली, लेकिन अन्दर-ही-अन्दर उसका दिल बुरी तरह रो रहा था।
सहेलियां नूरमहल से हँसी-ठिठोली करके बाहर निकल आईं।
कुछ देर बाद रहमान नूरमहल के कमरे में दाखिल हुआ।
शहजादी एक ओर सिमटी-सिकुड़ी बैठी आंसू बहा रही थी। उसे रहमान से सख्त नफरत थी। उसे लग रहा था कि शादी होने से पहले ही वह अगर जहर खा लेती तो ज्यादा अच्छा रहता। रहमान जब कमरे में आया, तो वह शराब के नशे में बुरी तरह धुत्त था।
वह नूरमहल को देखकर बोला-"अरे नूर! रो क्यों रही हो? आओ मेरे पास आओ।” इतना कहकर वह जूतों समेत पलंग पर चढ़ गया। वह जूते तक उतारने के होश में नहीं था।
उस कमरे में जिन्न भी मौजूद था, लेकिन वह किसी को नजर नहीं आ रहा था, क्योंकि उसने खुद को अदृश्य कर रखा था। रहमान के पलंग पर चढ़ते ही, वह उन दोनों को पलंग सहित ले उड़ा।
पलंग को अचानक उड़ता देखकर दूल्हा-दुल्हन दोनों ही चौंक पड़े।
शहजादी तो डर के मारे बेहोश ही हो गई और रहमान का भी डर के मारे बुरा हाल था। वह पलंग पर बैठा-बैठा आसमान में उड़ रहा था। डर मारे उसका हलक खुश्क हो रहा था। उसके मुंह से आवाज तक नहीं निकल रही थी।
पेड़ के नीचे खड़ा अलादीन लगातार आसमान की ओर ही देखे जा रहा था। जैसे-जैसे वक्त गुजर रहा था, उसकी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी। आधी रात हो चुकी थी, लेकिन जिन्न का कुछ अता-पता न था। अलादीन को लगने लगा था कि शायद अब जिन्न शहजादी को लाने में कामयाब नहीं होगा।

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