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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


धीरे-धीरे सब जगह अंधेरा छाता जा रहा था। लेकिन सौदागर को इस बात की कोई फिक्र नहीं थी। वह अंगूठी देने के बाद अलादीन को समझाने लगा कि उसे क्या-क्या और कैसे-कैसे करना है? अलादीन ने सारी बात भली प्रकार समझ ली, इसके बाद वह थोड़ा फिक्रमंद होकर बोला-“जब मैं नीचे उतर जाऊंगा तो आपं तो यहाँ अकेले रह जायेंगे?”
“तुम मेरी फिक्र मत करो बेटा! देखो मेरे पास तलवार है, और फिर सुरंग के अन्दर तुम्हें ज्यादा वक्त थोड़े ही लगना है। तुम यू जाओगे और यूं वापस आ जाओगे। जाओ बेटा! अब तुम ज्यादा वक्त मत लगाओ।”
“लेकिन मैं नीचे कैसे उतरूंगा चचा नान?" अलादीन ने पूछा।
"मैं तुम्हें एक रस्सी से अन्दर उतारूंगा बेटा! और जब तुम चिराग लेकर वापस आओगे तो रस्सी से ही तुम्हें खींच लूंगा।"
इसके बाद सौदागर ने घोड़े की कमर में बंधी रस्सी खोली और उसकी मदद से धीरे-धीरे अलादीन को सुरंग में उतार दिया।
आहिस्ता-आहिस्ता गहरी सुरंग में उतरते-उतरते ही अलादीन का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि आने वाले अगले पल में उसके सीने में से उसका दिल झटके के साथ बाहर निकल आयेगा। खैर, किसी। तरह उसने अपने धड़कते दिल पर काबू रखा और अपने पैर जमीन पर टिकाये। इसके बाद वह सुरंग में इधर-उधर देखने लगा। उसकी अंगूठी से सुरंग के अन्दर रोशनी हो रही थी। उसे अपने दायें हाथ की ओर एक दरवाजा दिखाई दिया। उसने धड़कते दिल से अपने सिर के ऊपर की ओर देखा, तो उसे करीब तीस फुट ऊपर गहरे गड्ढे के मुंहाने पर सौदागर बैठा दिखाई दिया।
“शाबास बेटा! आगे बढ़ो।” वह चिल्ला-चिल्लाकर अलादीन की हिम्मत बढ़ रहा था।
उसके ऐसा करने से अलादीन की कुछ हिम्मत बढ़ी और वह उस दरवाजे की ओर बढ़ने लगा जो उसे अपने दायीं ओर नजर आया था। वह दरवाजे के अन्दर आगे बढ़ता जा रहा था। सारा रास्ता गहन अन्धेरे में डूबा हुआ था, मगर अंगूठी की रोशनी अंधेरे को चीरने में उसकी मदद कर रही थी। करीब पचास मीटर का रास्ता पार करके उसने अपने आपको एक बाग में खड़े पाया।
उस बाग में जमीन के अन्दर से सोता फूट रहा था।
उसने गौर से देखा, पानी के अन्दर बड़े-बड़े कीमती पत्थर पड़े हुए थे। वह पानी बहुत साफ और ठण्डा था। उसके बीच में हीरे-जवाहरात भरे पड़े थे, उनकी रोशनी से वह कमरा रोशन हो रहा था। लेकिन उन हीरे-जवाहरांतों के साथ ही पानी में बहुत सारे खतरनाक और जहरीले सांप भी रेंग रहे थे।
अलादीन को वहाँ देखकर वे सांप एकदम से चौकन्ने हो गये और फन उठाकर उसकी ओर फुंकारने लगे।
अलादीन सांपों की हुंकार से डर गया और उसके कदम एकाएक अपनी जगह जड़ हो गये, मगर तभी उसे अपने चाची की बात याद आयी कि यहाँ पर जो भी बलायें मिलेंगी वे सच्चे और ईमानदार आदमी को कुछ भी नहीं कहेंगी। अलादीन ने देखा, कुछ देर बाद ऐसा ही हुआ। जैसे ही अलादीन ने निडर होकर अपना कदम आगे बढ़ाया वे सारे सांप एकदम से पानी में समा गये।
उस पानी को पार करके अलादीन एक ऊंची चट्टान पर पहुँचा, वहाँ उसे एक मज़ार नजर आया, जिस पर एक चिराग रोशन हो रहा था।

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