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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


अलादीन को वही चिराग पाना था। वह पत्थरों पर पैर रखकर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। धीरे-धीरे उसने सारे पत्थर पार कर लिये और वह मज़ार की सीढ़ियों पर जा पहुँचा। उसने पहली सीढ़ी पर कदम रखा ही था कि वहाँ एक जोरदार धमाका हुआ। साथ ही धुएं का एक गर्द-गुब्बार उसकी आंखों के आगे छा गया।
धमाके की आवाज सुनकरं अलादीन एकदम से घबराकर पीछे हट गया।
धुएं के गर्द-गुब्बारे के छंटते ही अलादीन के आश्चर्य की सीमा न रही।
कारण, अलादीन के सामने एक शैतान खड़ा था। उसने अलादीन से पूछा-“कौन है तू?”
शैतान उसके सामने खड़ा था। उसका जिस्म तो गोरिल्ले जैसा था और चेहरा घोड़े जैसा। वह जब बोलता था तो उसके मुंह से झाग निकलता था। उसे अलादीन ने शैतान के रूप में जाना था, पर वह जिन्न था।
“जल्दी बोल।” घोड़े जैसे चेहरे वाला देहाड़ा-“वरना मैं तुझे कच्चा चबा जाऊंगा।”
“मं...मैं अलादीन हूँ।” हड़बड़ाकर मगर निडरता से अलादीन ने जवाब दिया।
“अबे अपने बाप का नाम बोल।” वह दहाड़ा। अलादीन और जादुई चिराग
“मुस्तफा दर्जी।”
“ठीक है। तू ही इस चिराग का असली हकदार है।” इस बार वह नरम होकर बोला।
इसके बाद उसके नरम व्यवहार को देख अलादीन ने पूछा - मगर आप कौन हैं?"
"मैं इस चिराग का रखवाला हूँ। हजारों सालों से यहाँ मैं इसकी हिफाजत कर रहा हूँ। मेरे आका का हुक्म है कि जब तक तू यहाँ पहुँचकर अपनी अमानत हासिल न कर ले, तब तक मैं इसकी हिफाजत, करूं।”
“ले अलादीन! संभाल अपनी अमानत। लेकिन होशियार रहना। आज तक हजारों झूठे-मक्कार लोग, जादूगर, तांत्रिक जो इस चिराग को हासिल करना चाहते थे, मेरे हाथों मारे जा चुके हैं। तुमने सुरंग के बाहर उनकी हड्डियों के ढेर तो देखे ही होंगे?”।
- "ह...हाँ!” अलादीन हड़बड़ाया।
उसने चिराग को उठाया और अलादीन से बोला- “अब ले संभाल अपनी अमानत, मैं जाता हूँ।” इतना कहकर जिन्न ने अलादीन को चिराग सौंपा और फिर धुआं बनकर वहाँ से गायब हो गया।
मजार पर से उठाकर जलते चिराग को अलादीन ने बुझाकर, अपने पास रख लिया तथा जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते पर वापस चल दिया।
इधर सुरंग से बाहर खड़ा सौदागर बेचैन कदमों से चहलकदमी कर रहा था। उसके लिये एक-एक सेकण्ड एक-एक घंटे के समान गुजर रहा था। वह बार-बार सुरंग के मुंहाने तक आता और नीचे झांककर अलादीन को देखने लगता। इस बार जैसे ही वह सुरंग के मुंहाने पर आया, उसकी नजर अलादीन पर पड़ी। अलादीन को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।

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