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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


यह देखकर अशरफ घबरा गया। तभी उसे अपनी मुंहबोली मां रेईसा की सीख याद आयी कि-“अगर मुसीबत में आदमी हिम्मत से काम ले, तो कोई-न-कोई हल जरूर निकल आता है।”
अशरफ ने सोचना शुरू किया, तभी बिजली की गति से उसके दिमाग में एक विचार आया-उसने अपने सिर की टोपी उतारी और वह टोपी बैसूफा के कंटे सिर के मुंह में ठूस दी। अब बैसूफा का मुंह मंत्र नहीं बुदबुदा सकता था। उसने अंब बैसूफा के कमरे में चिराग ढूंढना शुरू किया, लेकिन उसे चिराग नहीं मिला। हारकर अशरफ ने अंगूठी के जिन्न को बुलाया।
अंगूठी में से निकलकर जिन्न बोला-“क्या हुक्म है मेरे आका?"
अशरफ बोला-“क्या तुम बता सकते हो कि चिराग कहाँ रखा है?”
इस वक्त चिराग अदृश्य रूप में तिजोरी में रखा है।” अंगूठी के जिन्न ने बताया।
अशरफ ने तिजोरी को खोजना शुरू किया, तो उसके हाथ किसी ठोस चीज से टकराये, लेकिन उसे नजर कुछ नहीं आया। उसने उस कठोर चीज को टटोला, तो महसूस किया कि वह चिराग ही था।
अशरफ़ ने वह अदृश्य चिराग उठाकर उसे धरती पर रगड़ा, तो तुरन्त चिराग का जिन्न हाजिर हो गया और बोला-“क्या हुक्म है मेरे आका?”
अशरफ ने कहा-“इस चिराग को दिखाई देने वाला बना दो।”
जिन्न बोला-“जो हुक्म मेरे आका।"
फौरन ही चिराग नजर आने लगा।
इसके बाद अशरफ जिन्न से बोली-“मुझे मेरे मां-बाप के पास ले चलो, जो कि पत्थर की मूर्ति में तब्दील हैं।" चिराग के जिन्न ने अशरफ को अपनी हथेली पर बैठाया और उसे उसके मां-बाप के पास पहुँचा दिया।
वहाँ पहुँचकर अशरफ बोला-“मेरे मां-बाप और यहाँ मौजूद सभी मूर्तियों को फिर से इंन्सान बना दो।”
जिन्न बोला-“जो हुक्म मेरे आका।”
जिन्न ने इतना कहकर वहाँ मौजूद सभी मूर्तियों पर हाथ फेरना शुरू किया और मन-ही-मन कुछ बुदबुदाया। फौरन ही वहाँ मौजूद सभी पत्थर की मूर्तियां इन्सानों में बदल गयीं।

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