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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


तभी रहमान को अपने सामने काल के रूप में अशरफ को देखकर जैसे। होश आ गया, उसने अपनी मौत को अपने सामने खड़ा देख तेजी से अंगुली में से अंगूठी निकालकर फर्श पर दे मारी। तभी एक धमाके के साथ जिन्न प्रकट हुआ और बोला-क्या हुक्म है मेरे आका?”
इससे पहले कि रहमान उसे कोई हुक्म दे पाता-अशरफ ने बिजली की मानिन्द फुर्ती से अपनी तलवार चलायी और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। जिन्न चुपचाप यह सब होता देखता रहा, क्योंकि उसे तो अपने आका की ओर से कोई हुक्म नहीं मिला था।। अशरफ ने फौरन वह अंगूठी उठा ली और जिन्न से बोला-“अब यह अंगूठी मेरे पास है, क्या तुम मेरा हुक्म मानोगे?”
जिन्न बोला-"यह अंगूठी जिसके पास होती है, मैं उसी का गुलाम होता हूँ। अब यह अंगूठी आपके पास है, इसलियें अब मैं आपका गुलाम हूँ।”
उसकी बात सुनकर अशरफ बोला-“ठीक है अब तुम जाओ, जब मुझे तुम्हारी जरूरत होगी तो मैं तुम्हें बुला लूंगा।”
अशरफ का हुक्म सुनकर जिन्न वहाँ से गायब हो गया। अशरफ नंगी तलवार हाथ में लिये शेर पर सवार होकर वहाँ से निकल आया।
बगदाद पर अपना परचम लहराने के बाद अशरफ ने अंगूठी के जिन्न को बुलाया।
जिन्न हाजिर हुआ। अशरफ ने उससे पूछा-“मेरे मां-बाप कहाँ हैं?"
जिन्न बोला-वे दोनों पाताललोक.में मंहा जादूगर सम्राट बैसूफा की कैद में हैं मेरे आका।”
महा जादूगर बैसूफा की कैद में...ओह! मगर वे किस हाल में हैं?” अशरफ ने पूछा।
“महा जादूगर बैसूफा ने उन्हें पत्थर के बुत में तब्दील कर दिया है और बैसूफा के अलावा सिर्फ चिराग का जिन्न ही उन्हें फिर से इन्सान बना सकती है।”
अशरफ ने फिर पूछा-"क्या तुम बैसूफा को मार सकते हो?”
“नहीं, उसे मारना मेरे बस में नहीं है। वह मुझसे ज्यादा ताकतवर है। हाँ मैं आपको उस तक पहुँचा जरूर सकता हूँ।” जिन्न बोला।
अशरफ ने हुक्म दिया-“ठीक है। तुम मुझे वहाँ तक पहुँचा दो, बाकी मैं खुद देख लूंगा।”
अंगूठी के जिन्न ने बहुत जोर से अपना पैर जमीन पर मारा। उसके ऐसा करते ही जमीन फट गयी। जिन्न ने अशरफ को अपनी हथेली पर उठा लिया और उसे पाताल लोक ले जाकर बैसूफा की छत पर उतार दिया।
इस वक्त रात हो रही थी। बैसूफा अपने कमरे में रंगरलियां मना रहा था। उसे भनक भी नहीं लगी और अशरफ सीढ़ियों के रास्ते उसके महल में उतर गया। अशरफ ने जादूगर बैसूफा के कमरे का दरवाजा खटखटाया। बैसूफा . ने गुस्से में भुनभुनाते हुए दरवाजा खोला। दरवाजा खुलते ही अशरफ ने अपनी खून की प्यासी तलवार बैसूफा के सीने पर रख दी और बोला-"दुष्ट जादूगर बैसूफा! अब तेरे दिन पूरे हो चुके हैं। अपने आखिरी वक्त में अपने आका शैतान को याद कर ले...।”
अशरफ की बात सुनकर महा जादूगर तिलमिला उठा, वह बोला-“तेरी, यह हिम्मत, नादान लड़के, कि तू मुझसे भिड़ने चला आया और वह भी मेरे ही महल में। मैं तुझे चुटंकी में मसल दूंगा।” इतना कहकर महा जादूगर बैसूफा होंठों-ही-होंठों में कोई मंत्र बुदबुदाने लगा।
जैसे-जैसे वह मंत्र बुदबुदाता जाता था, वैसे-वैसे अशरफ को गर्मी लगने लगी। जब गर्मी अशरफ की बरदाश्त से बाहर हो गयी तो उसने फौरन अपनी तलवार से बैसूफा का सिर धड़ से अलग कर दिया।
बैसूफा का सिर धड़ से अलग होकर दूर जा गिरा, लेकिन यह देख अशरफ भौंचक्का रह गया कि बैसूफा का सिर अभी भी मंत्र बुदबुदा रहा था और अशरफ को लगने वाली गर्मी बढ़ती जा रही थी।

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