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रवि कहानी

अमिताभ चौधरी

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :85
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 474
आईएसबीएन :81-237-3061-6

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नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक


देश में हिन्दू-मुसलमान समस्या दिनों दिन उलझती जा रही थी। रवीन्द्रनाथ ने उन दिनों दो लेख लिखे -''समस्या'' और ''समाधान''। उन्होंने लिखा कि भारत की भलाई के लिए हिंदुओं और मुसलमानों को बराबरी का दर्जा देना पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा -''मुसलमानों के लिए एकजुट होना जितना आसान है, हिंदुओं के लिए उतना नहीं। हिंदुओं की संख्या बड़ी है लेकिन वे कमजोर हैं। सिर्फ चरखा कातते रहने सेही यह समस्या नहीं सुलझेगी। विदेशियों को भारत से भगाने के बावजूद यह आग जलती रहेगी। यहां तक कि स्वदेशी राज होने के बाद भी यह समस्या बनी रहेगी।आज से दो सौ साल पहले भी चरखा चल रहा था। करधे भी बंद नहीं थे। मगर इन सबके बावजूद यह आग पूरी तौर से जल रही थी। इस आग को भड़काने में विभिन्नधर्मों की मूर्खता भरी जड़ता ईंधन का काम कर रही है।''

सन् 1923 के अंत में वे एक बार फिर गुजरात गए, सहायता मांगने। उन्हें अच्छी-खासीसहायता मिली भी। उसी धन से ''नंदन'' कलाभवन बना। उन्हें चीन से भी बुलाया गया। चीन जाने से पहले कलकत्ता विश्वविद्यालय में उन्होंने तीन भाषण दिए।चीन के सफर में कवि के साथ नंदलाल बसु, क्षितिमोहन सेन, कालिदास नाग और एमहर्स्ट भी थे। 21 मार्च 1924 को कलकत्ता बंदरगाह से जहाज पर सवार होकररंगून, पेनांग, क्वालालमपुर होकर सिंगापुर पहुंचे। वहां से चीन जाने वाले एक दूसरे जहाज से वे 12 अप्रैल को संघाई पहुंचे।

संघाई से नदी के रास्ते नानकिंग। उसके बाद बीजिंग। जहां-जहां वे गए, हर जगह उनका भापण हुआ,जिसे सुनने के लिए काफी भीड़ होती थी। बुजुर्गों ने रवन्द्रिनाथ को हर जगह सम्मान दिया, लेकिन कुछ युवकों ने रवीन्द्रनाथ के प्रति अपना विरोध भीजताया था।

चीन से जापान। वहां भी भाषाणों के दौर चलते रहे। उससफर में उनकी भेंट क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से हुई। टोकियो में भाषण देने से पहले कवि ने जापानियों की अति राष्ट्रीयता की आलोचना की। चीन औरजापान के उस सफर में कवि के मन में नए विचार आए। एकाकुरा के प्रसिद्ध कथन ''एशिया इज वन'' (एशिया एक है) को भी उन्होंने नए सिरे से महसूस किया।उन्हीं दिनों संघाई में ''एशियाटिक ऐसोसिएशन'' का गठन हुआ।

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