लोगों की राय

विविध >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधरी

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :85
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 474
आईएसबीएन :81-237-3061-6

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

456 पाठक हैं

नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक


विश्वभारती के बढ़ते हुए खर्चों से रवीन्द्रनाथ परेशान थे। भाषण देने के सिलसिले में रवीन्द्रनाथमुंबई, पुणे और मैसूर गए। वहां से मद्रास, मंगलौर होकर श्रीलंका। वहां के लोगों से विश्वभारती के लिए

सहायता मांगते हुए वे फिर मद्रास औरतिरूअनंतपुरम गए। उसके बाद मुंबई। उन्होंने पारसी समाज से विश्वभारती के लिए मदद मांगी। थोड़ी बहुत मदद मिली भी। मुम्बई से वे अहमदाबाद पहुंचकरवहां अम्बालाल साराभाई के यहां अतिथि होकर कुछ दिन रहे। गांधी जी उन दिनों जेल में थे, इसलिए दोनों में भेट नहीं हुई। मगर रवीन्द्रनाथ साबरमती आश्रमजाना नहीं भूले।

रवीन्द्रनाथ दक्षिण भारत और उत्तर भारत से होतेहुए शांतिनिकेतन लौट आए। विश्वभारती में उन दिनों एक से बढ़कर एक विदेशी अध्यापक थे। उनके कारण शांतिनिकेतन का गौरव बढ़ गया। विन्टरनित्स वेनोआ,वगदानोव, स्टेला क्रैम्बिस जैसे महारथी शांतिनिकेतन में थे। शांतिनिकेतन की देखभाल के साथ ही रवीन्द्रनाथ देश का भी काम कर रहे थे, साथ में अपनालेखन कार्य भी।

लेकिन विश्वभारती का काम अब काफी बढ़ गया था। इसकेलिए काफी धन की जरूरत थी। मगर धन कहां था! रवीन्द्रनाथ धन का जुगाड़ करने के लिए निकल पड़े। वे पहले काशी गए। वहां उन्हें भाषण देना था। इसके बाद वेलखनऊ गए। वहां वे कवि और गीतकार अतुलप्रसाद सेन के यहां ठहरे। इसके बाद मुंबई, वहां से अहमदाबाद फिर वहां से कराची। विश्वभारती के लिए सिंधीव्यापारियों से उन्हें मदद में अच्छी रकम मिल गई। इस सफर का आखिरी पड़ाव गुजरात का पोरबंदर था।

शांतिनिकेतन लौटने के बाद ही कवि शिलांग केलिए निकल पड़े। वहां उन्होंने ''यक्षपुरी'' नाटक लिखा। बाद में उनका नाम बदलकर ''रक्तकरवी'' रख दिया। कलकत्ता लौटकर ''विसर्जन'' नाटक खेलने कीतैयारी होने लगी। रवीन्द्रनाथ ने नाटक में ''जय सिंह'' का अभिनय किया। इसके पहले उन्होंने ''रघुपति'' की भूमिका निभाई थी। शांतिनिकेतन में पूरीतरह से पढ़ाई शुरू हो गई थी। रवीन्द्रनाथ खुद भी कक्षाएं लेने लगे। तभी उन्हें इटली की एक रेल दुर्घटना में पियर्सन साहब की मृत्यु की खबर मिली।वे बहुत दु:खी हुए। इसके बाद रवीन्द्रनाथ के प्रिय सुकुमार राय की अकाल मौत ने उनके दुःख को और बढ़ा दिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book