लोगों की राय

कहानी संग्रह >> आजाद हिन्द फौज की कहानी

आजाद हिन्द फौज की कहानी

एस. ए. अय्यर

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :97
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4594
आईएसबीएन :81-237-0256-4

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

434 पाठक हैं

आजाद हिन्द फौज की रोचक कहानी....


19. प्रत्यावर्तन का उत्पीड़न और उसके बाद

23 अप्रैल 1945 को रंगून में सूचना मिली कि अंग्रेज सेना मध्य बर्मा में पिनमाना तक पहुंच चुकी है और अब कुछ ही घंटों में वो बर्मा की राजधानी पहुंच जाएगी। भारतीय अधिकारियों को सबसे अधिक चिंता इस बात की थी कि नेताजी अभी रंगून में ही थे। अब उनका रंगून छोड़ने में विलंब करना विनाशकारी सिद्ध होता। रंगून में जापानी अधिकारियों से इस संबंध में निरंतर विचार-विमर्श किया गया। परंतु वे स्वयं रंगून खाली करने की तैयारी में लगे हुए ये और महत्वपूर्ण पत्रादि को नष्ट कर रहे थे, वे अपने गोला-बारूद के भंडार में भी आग लगाने की व्यवस्था कर रहे थे जिससे कि वह आनेवाली शत्रु सेना के हाथ न पड़े। इस समय जापानी अव्यवस्थित एवं उलझन में थे। वे हताश नहीं हुए थे परंतु आतंकित अवश्य थे। इसके विपरीत नेताजी स्थिर एवं शांत थे और इस बात पर दृढ़ थे कि वहां से जाने के लिए उन्हें कम-से-कम इतने साधन प्राप्त हो जायें जिससे कि रानी झांसी रेजिमेंट एवं अस्थायी सरकार के एक सौ से अधिक अधिकारी एवं कर्मचारी तथा आई.एन.ए. के सैनिक उनके साथ जा सकें।

24 अप्रैल की चांदनी रात में चार कार और बारह लारियों का काफिला नेताजी के साथ उनकी पार्टी एवं रानी झांसी रेजिमेंट की लड़कियों को लेकर उनके घर से बैंकाक की अविस्मरणीय 21 दिन की यात्रा पर निकला। नेताजी दो घंटे में भी रंगून से बैंकाक जाना स्वीकर कर लेते। परंतु उन्होंने ऐसा करना स्वीकार नहीं किया। उन्होंने जापानियों से कहा कि वे अपनी संपूर्ण पार्टी के साथ ही जायेंगे चाहे उन्हें बैंकाक तक पैदल चलना पड़े और उन्हें तीन रात पैदल भी चलना पड़ा। जब उन्होंने देख लिया कि उनकी पार्टी का प्रत्येक व्यक्ति लारी में बैठ गया है तब वे स्वयं मर्तबान के लिए शेष यात्रा पूरी करने हेतु लारी में बैठे।

कार और लारियां रंगून छोड़ने के दो अथवा तीन दिन बाद तक प्रयोग में आयीं। उनको बाब और सीटांग नदियों के तटों पर छोड़ दिया गया क्योंकि वहां पर इतनी नौकाएं नहीं थी कि उन सबको नदी पार ले जाया जा सके। जब वे मर्तबान से सीटांग की सड़क पर पहुंचे तो नेताजी एवं पार्टी के अन्य सदस्य भूखे-प्यासे थे और उनके पैरों में छाले पड़ गये थे। इसी दशा में वे चलने के लिए बाध्य थे। रात्रि
में चलते समय कभी-कभी व्यवधान पड़ जाता था और प्रत्येक बार जब शत्रुओं के हवाई जहाज उनके ऊपर से उड़ते तो उन्हें सड़क के किनारे खड़े पेड़-पौधों के बीच छिपने के लिए बिखर जाना पड़ता था। परंतु प्रत्यावर्तन व्यवस्थित था। मेजर जनरल जमान कियानी इसके नेता नियुक्त किए गए थे। संपूर्ण-पार्टी स्वयं आई.एन.ए. के उच्चतम कमांडर नेताजी भी-इस अनिवार्य प्रयाण में जनरल जमान कियानी की आज्ञाओं का पालन करते थे। नेताजी ने इस प्रकार का व्यवहार कर के सैनिक अनुशासन का उच्च आदर्श स्थापित किया। वे इस प्रयाण करते हुए दस्ते के सबसे आगे मेजर जनरल भौंसले जो चीफ आफ स्टाफ थे, के साथ चल रहे थे। मेजर जनरल चटर्जी, अस्थायी सरकार के मंत्री तत्पश्चात् रानी झांसी रेजिमेंट की लड़कियां और अंत में आई.एन.ए. के सैनिक उनके पीछे थे।

यह प्रत्यावर्तन तीन सप्ताह तक अत्यंत दुखपूर्ण समय में चलता रहा जबकि सैनिकों को दिन में एक बार भोजन मिलता था। बमबारी, मशीनगन दिन प्रतिदिन बढ़ती जाती थी। उन्हें रात्रि में ही चलना पड़ता था दिन में वे शत्रु की दृष्टि से बचने के लिए जंगलों में छिप जाते थे।

सीटांग में शत्रु सेना की बमबारी का निष्कृष्टतम दिन वह था जब मेजर जनरल चटर्जी के वैयक्तिक सहायक ले. नजीर अहमद विनाशकारी वायु आक्रमण में बुरी तरह घायल होकर मृत्यु को प्राप्त हुए।
मोलमेन पहुंचने के पश्चात् यात्रा कुछ सुगम हुई। और नेताजी एवं पार्टी बैंकाक में सभ्य समाज के बीच 14 मई को पहुंचे।

दूसरे दिन से ही नेताजी कार्यरत हो गए। प्रतिदिन वे बैंकाक में अपने निवास स्थान पर मंत्रियों की नियमानुकूल औपचारिक अथवा अनौपचारिक बैठक करते थे। इन बैठकों में मंत्रणा का मुख्य विषय यही होता था कि आगे क्या करें? पूर्वी एशिया एवं भारत में विश्व युद्ध की स्थिति पर रेडियो प्रसारणों के आधार पर प्रत्येक दृष्टिकोण से विचार किया जाता था। जर्मनी की पराजय का समाचार उनके बैंकाक पहुंचने के एक सप्ताह पूर्व पहुंच चुका था। अब अकेला जापान अंग्रेज और अमेरिकनों से कब तक युद्ध कर सकेगा? यदि जापान की भी पराजय हई तो आई.एन.ए. का क्या कार्य होगा? नेताजी उस स्थिति में अपनी लड़ाई कहां से जारी रखेंगे? क्या नेताजी जापान के माध्यम से रूस से जो युद्ध में तटस्थ था और जापान से मैत्री भाव रखता था संपर्क स्थापित करेंगे? क्या जापान रूस से संपर्क स्थापित करने के उनके विचार को अच्छा समझेगा? नेताजी ने रूस के कट्टर देश जर्मनी का युद्ध में साथ दिया था इस कारण रूसी उनके प्रस्ताव का कहां तक आदर करेंगे? यदि जापानी नेताजी के रूस से संपर्क करने के विषय में सहयोग दें तो रूस के माध्यम

से शांति स्थापित करने एवं संधि में अनुकूल शर्तों पर सहमति लेने के उनके प्रस्तावों पर कितना प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा? इस प्रकार नेताजी का रूस से संपर्क स्थापित करने का विचार अनेक कठिनाइयों से पूर्ण था। परंतु नेताजी तो जन्म से आशावादी थे। उन्होंने निश्चय किया कि वे जापान से उनका रूस से संपर्क कराने का आग्रह करेंगे। वे रूस से भर्त्सना सहन करने के लिए भी तैयार थे। रूस की सीमा में पहुंचकर वे प्रतिबंधित होने के लिए भी प्रस्तुत थे। इस प्रकार यह निश्चय किया गया कि नेताजी किसी प्रकार रूस पहुंचने का प्रयत्न करें।

जून 1945 के मध्य में भारत से समाचार मिला कि भारत द्वारा अंग्रेजों के युद्ध प्रयासों में सहयोग देने के फलस्वरूप वाइसराय लार्ड वैवेल अपनी कार्यकारिणी समिति में अधिक भारतीयों को सम्मिलित करने का प्रस्ताव कांग्रेस उच्च कमान के सम्मुख रख रहे है। नेताजी तुरंत हवाई जहाज से सिंगापुर गए और वहां से रेडियो द्वारा अंग्रेजी, हिंदुस्तानी, बंगाली भाषाओं में पूरे एक मास रात-रात भर प्रसारण करके गांधीजी और अन्य चोटी के नेताओं से लार्ड वैवेल के साथ समझौता न करने के निवेदन करते रहे। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता को अंग्रेजी साम्राज्य का घरेलू मामला न मानकर अंतर्राष्ट्रीय विषय बनाने का आग्रह किया। उन्होंने कांग्रेस उच्च कमान से ब्रिटेन में होने वाले निर्वाचन तक प्रतीक्षा करने के लिए कहा। इस निर्वाचन में लेबर पार्टी की विजयी होने की आशा थी और चर्चिल की अपेक्षा इस पार्टी से उन्हें अधिक अच्छे समझौते की आशा थी। शिमला में वेवेल सम्मेलन विफल रहा तभी नेताजी ने संतोष की सांस ली।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book