कहानी संग्रह >> आजाद हिन्द फौज की कहानी आजाद हिन्द फौज की कहानीएस. ए. अय्यर
|
7 पाठकों को प्रिय 434 पाठक हैं |
आजाद हिन्द फौज की रोचक कहानी....
17. क्रांतिकारी सेना
द्वितीय विश्व युद्ध के तूफान के दौरान जन्म लेनेवाली आई.एन.ए. एक
क्रांतिकारी सेना थी जो इस विश्व युद्ध में कार्यरत अन्य सेनाओं से भिन्न और
अनोखी थी। यह एक ऐसी सेना थी जिसका निर्माण अपनी मातृभूमि से सैकड़ों मील दूर
एक विदेशी भूमि पर हुआ था, जो हवाई जहाज, टैंक, तोपखाना, राइफल एवं बारूद,
यहां तक कि सैनिकों को युद्ध-स्थल तक ले जाने हेतु लारियों के लिए भी विदेशी
शक्तियों पर निर्भर थी। यह सेना जापान से बर्मा तक संपूर्ण पूर्वी एशिया में
फैले हुए भारतीयों की देशभक्ति की भावनाओं पर आश्रित थी। इन्हीं से उसे
सैनिक, धन, वस्त्र, खाद्य सामग्री एवं अन्य वस्तुयें प्राप्त होती थीं। इस
सेना की सबसे बड़ी शक्ति उसके सैनिकों की आत्मोत्सर्ग की भावना थी। ये सैनिक
अपने मुख से 'चलो. दिल्ली' का नारा लगाते हुए उत्साहपूर्वक अपना जीवन बलिदान
करने को आये थे।नेताजी इस विचित्र सेना के विलक्षण उच्चतम सेनापति थे जो यूरोप अथवा एशिया के अन्य सेनापतियों से भिन्न थे। संभवत: संसार के सैनिक इतिहास में पहली बार सैनिकों को नेताजी ने ऐसी भाषा में संबोधित किया था जैसी पहले कभी नहीं सुनी गयी थी। उन्होंने युद्ध के लिए प्रस्थान करने वाले सैनिकों से कहा था-"मैं इस अंतिम समय पर भी जब कि तुम युद्ध-स्थल पर जाने के लिए प्रस्तुत हो तुम्हें स्वतंत्र रूप से यह निर्णय करने की छूट देता हूं कि तुम वास्तव में अपने देश के लिए अपना जीवन देने को तैयार हो। यदि तुम्हारे मन में इस उद्देश्य की पवित्रता के संबंध में तनिक भी शंका हो तो तुम इसी समय सेना से पृथक होकर पीछे रह सकते हो। तुम बिना संकोच के ऐसा कर सकते हो। मैं तुम्हें पीछे की पंक्ति में कुछ अन्य कार्य दूंगा। मुझे संख्या की चिंता नहीं है। एक छोटी सेना, जिसे अपने उद्देश्य में, जिनके लिए वह युद्ध करने जा रही है, विश्वास है तो वह किसी भी उस बड़ी सेना से अच्छी है जिसे न तो अपने उद्देश्य का ज्ञान है और जो अपने लक्ष्य के प्रति उदासीन है एवं उसे उपेक्षा की दृष्टि से देखती है। मैं तुमको स्पष्ट बता देना चाहता हूं कि मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है सिवा भूख, प्यास और मृत्यु। तुम अपना पथ निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र हो। तुमको अभी पृथक होने में लज्जित होने की आवश्यकता नहीं है। मैं तुमको दोष नहीं दूगां। मैं तुम्हारी ईमानदारी की प्रशंसा करूंगा और तुम्हें कोई अन्य उपयोगी कार्य सौंप दूंगा।"
नेताजी इन शब्दों को आई.एन.ए. के सैनिकों के समक्ष जब वे युद्ध-स्थल को जाते थे बार-बार दोहराते थे। एक भी सैनिक ऐसा नहीं निकला जो पृथक होकर पीछे रहना चाहता हो।
बर्मा में उपस्थित आई.एन.ए. की दो डिवीजनों के बीस हजार सैनिक इसी उत्कृष्ट भावना से प्रेरित थे। पहली डिवीजन के कमांडेंट मेजर जनरल जमा कियानी थे और दसरी डिवीजन के कमांडर कर्नल अजीज अहमद के स्थान पर कर्नल शाहनवाज थे क्योंकि कर्नल अजीज अहमद को जब वे युद्ध-स्थल पर जाने को तैयार हो रहे थे तभी रंगून पर बमबारी में चोट लग चुकी थी।
दिल्ली की ओर प्रस्थान के समय मुक्ति सेना के लिए नेताजी का प्रेरक उच्च उद्घोष 'चलो दिल्ली' समय की दीवारों से टकराकर बार-बार प्रतिध्वनित होता रहेगा। सीमा पर खड़े होकर अपनी मातृभूमि की ओर संकेत करके उन्होंने कहा था-"उस नदी के पार, उस जंगल के पार, उन पहाड़ियों के पार हमारी मातृभूमि स्थित है—वह भमि जिसकी मिट्टी से हमने जन्म लिया है वह भूमि जहां अब हम वापस जाएंगे। सुनो-भारत तुम्हें पुकार रहा है। तुम्हारे भ्रातृगण तुम्हें पुकार रहे हैं, खून-खून को पुकार रहा है। उठो, अब समय नष्ट न करो, अपने अस्त्र-शस्त्र उठाओ, हम शत्रु सेना के मध्य से अपना पथ प्रशस्त करेंगे अथवा यदि ईश्वर की ऐसी इच्छा है तो शहीद की मृत्यु प्राप्त करेंगे और अंतिम बार निद्रामग्न होते समय उस पथ को चूमेंगे जिस पर चलकर हमारी सेना दिल्ली जाएगी। दिल्ली की सड़क स्वतंत्रता की सड़क है, 'चलो दिल्ली।"
8 अप्रैल को कोहिमा का किला और दिमापुर-कोहिमा रोड पर एक छावनी पर कब्जा किया और अगले दिन इंफाल पर घेरा डाला और इस पर 13 अप्रैल को चारों ओर से आक्रमण किया। तत्पश्चात् पुन: 18. अप्रैल को इंफाल पर चारों ओर से आक्रमण किया। आई.एन.ए. ने इंफाल में शत्रुओं के व्यूह को उत्तर में ध्वस्त किया। 22 अप्रैल को घमासान युद्ध हुआ- युद्ध मई मास तक होता रहा। 20 मई को इंफाल के घेरे को कड़ा किया गया। शत्रु सेना इंफाल को बचाने के लिए कठिन युद्ध कर रही थी क्योंकि माउंटबेटन मुख्यावास से उन्हें आज्ञा मिली थी कि इंफाल को प्रत्येक दशा में बचाना था। आई.एन.ए. समय के विपरीत युद्ध कर रही थी क्योंकि बर्मा में मानसून तीव्र गति से आगे बढ़ रहा था।
मानसून वर्षा प्रथम जून को आरंभ हुई। मूसलाधार पानी बरसा। युद्ध-स्थल पर वर्षा की बाढ़ आई.एन.ए. के उस पथ पर आ गयी जिससे सामग्री आती थी और जिसके द्वारा संचार व्यवस्था स्थापित थी। 27 जून को इंफाल से घेरा उठा लिया गया। शत्रु सेना जो संख्या में अधिक थी और अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित थी, जिसके पास सामग्री का बहुत बड़ा भंडार था, ने अब आक्रमण किया। आई.एन.ए. अब रक्षात्मक युद्ध कर रही थी। पांच माह के इस भयंकर युद्ध में आई.एन.ए. ने उच्च कोटि की कर्तव्य निष्ठा, स्मरणीय साहस द्वारा उत्तम युद्ध-कौशल का पर्याप्त प्रमाण दिया था।
4 अगस्त, 1944 को जब आई.एन.ए. घमासान युद्ध कर रही थी नेताजी ने रंगून रेडियो से अविस्मरणीय प्रसारण किया और महात्मा गांधी से भावनात्मक अपील की। युद्ध स्थिति की विस्तृत व्याख्या करने के पश्चात् उन्होंने गांधीजी से कहा—“भारत की स्वतंत्रता के लिए अंतिम युद्ध आरंभ हो चुका है। आजाद हिंद फौज भारत भूमि पर वीरता से युद्ध कर रही है और अनेक कठिनाइयों के होते हुए भी धीरे-धीरे दृढ़ता से आगे बढ़ रही है। यह सशस्त्र युद्ध उस समय तक चलता रहेगा जब तक हम अंतिम अंग्रेज को भारत से बाहर न निकाल देंगे और हमारा तिरंगा नयी दिल्ली में वाइसराय भवन पर न फहराने लगेगा।"
"राष्ट्रपिता! हम भारत के इस पवित्र मुक्ति युद्ध में आपका आशीर्वाद एवं शुभकामना चाहते हैं, जयहिंद।"
14 अगस्त, 1944 को एक दैनिक विशेष आदेश में नेताजी ने कहा- "भारतीय राष्ट्रीय सेना के मेरे वीर साथी देशभक्तो ! हमने इंफाल पर आक्रमण करने की पूर्ण तैयारी कर ली थी परंतु तभी मूसलाधार वर्षा आरंभ हो गयी। इस कारण इंफाल पर आक्रमण करना असंभव हो गया। जैसे ही हमारी तैयारी पुन: पूर्ण हो जाएगी हम एक बार फिर तीव्र आक्रमण करेंगे। हम अपने वीरों के उत्तम युद्ध कौशल, अदभ्य उत्साह एवं अडिग कर्तव्य परायणता के कारण अवश्य विजयी होंगे।"
युद्ध भूमि से सुदर निवास करने वाले नागरिक सैनिक अधिकारियों एवं जवानों की शौर्य गाथा सुनकर रोमांचित हो जाते थे। रंगून में एक प्रेरणादायक परेड के अवसर पर नेताजी ने अवशेष अधिकारियों एवं सैनिकों को युद्ध भूमि पर शौर्य के लिए सम्मान प्रदान किया। उन्होंने उन वीरों को जिन्होंने दिल्ली जाने वाले पथ पर अपने जीवन की आहुति दे दी थी मरणोपरांत अनेक पुरस्कार घोषित किए।
|
लोगों की राय
No reviews for this book