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आजाद हिन्द फौज की कहानी

एस. ए. अय्यर

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :97
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4594
आईएसबीएन :81-237-0256-4

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आजाद हिन्द फौज की रोचक कहानी....


15. आज़ाद हिंद फ़ौज ने प्रथम गोली दागी

अंडमान से नेताजी ने हवाई जहाज द्वारा बर्मा के लिए प्रस्थान किया और वहां जाकर अस्थाई सरकार, भारतीय स्वतंत्रता लीग तथा आई.एन.ए. की सर्वोच्च कमान के मुख्यालय जनवरी 1944 के प्रथम सप्ताह में रंगून स्थानातरित किए। इस प्रकार दो मुख्यालय बने - एक रंगून में और दूसरा पीछे का मुख्यालय सिंगापुर में रहा।

सरकार, लीग एवं आई.एन.ए. के साथ नेताजी के मुख्यालय का बर्मा स्थानांतरण
आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी। भारत बर्मा से सीमा की दृष्टि से ही पृथक था। यहां से नेताजी और मुक्ति सेना के लिए भारत के पूर्वी द्वार तक पहुंचना और अंग्रेजों को अपनी मातृभूमि से बाहर निकालने के लिए भारत के अंदर प्रवेश करना सुगम था। अत: अब उन्होंने अपना समस्त ध्यान एवं शक्ति बर्मा को अपने कार्यों के लिए एक सुदृढ़ आधार बनाने में लगाया। वे बर्मा को आक्रमण का अडा बनाने के लिए कृत संकल्प थे जिससे वे भारत में अंग्रेजों की गर्दन पर झपट कर चढ़ सकें।

युद्ध-स्थल के लिए प्रस्तुत आई.एन.ए. की सेनाओं को देखकर बर्मा में भारतीयों के हृदयों में उत्साह की लहर दौड़ गयी। नेताजी के युद्ध फंड के लिए बर्मा में भारतीयों से आर्थिक सहयोग लेने के लिए रंगून में एक नेताजी फंड समिति बनायी गयी। देश की स्वतंत्रता के लिए सब कुछ बलिदान करने की नेताजी की अपील का लोगों ने अत्यधिक स्वागत किया। भारतीयों द्वारा सम्मेलनों में उन्हें समर्पित मालाओं को उन्होंने नीलाम करना आरंभ किया। श्रोताओं ने उनकी मालाओं को एक लाख, दो लाख और पांच लाख रुपये देकर भी क्रय किया। रंगून के एक नागरिक श्री हबीब ने अपनी संपूर्ण संपत्ति, भूमि, मकान, आभूषण जिनका मूल्य एक करोड़ रुपये से ऊपर था नेताजी को अर्पित कर दिए। यह समर्पण और त्याग का आश्चर्यजनक उदाहरण था। नेताजी इसे हंसी में हबीब मिक्सचर कहते थे और सभी भारतीयों को इस मिक्सचर को लेने के लिए कहते थे। अपनी समस्त लौकिक धन संपत्ति के समर्पण के साथ-साथ हबीब ने अपनी सेवाएं तथा अपना जीवन भी नेताजी को समर्पित कर दिया। रंगून की श्रीमती हेमराज बटाई ने भी अपनी समस्त लौकिक संपत्ति नेताजी को दे दी। उनके त्याग को महत्व प्रदान करने के लिए नेताजी ने उन्हें सेवक-ए-हिंद पदक द्वारा सम्मानित किया।

पूर्ण सक्रियता लाने के उद्देश्य से नेताजी ने सरकार और लीग संस्था का विस्तार किया। उन्होंने आपूर्ति विभाग, मानव शक्ति एवं माल विभाग में मंत्रियों की नियुक्ति करके सरकार के आधार को दृढ़ बनाया। सरकार नीति निर्धारित करती थी परंतु दैनिक कार्यों में उसका कार्यान्वयन लीग संस्था द्वारा समस्त क्षेत्र में फैली शाखाओं से माध्यम से किया जाता था। इस दृष्टि से नेताजी ने लीग के मुख्यालयों की संख्या जो सिंगापुर में 12 थी बढ़ाकर 24 कर दी।

रंगन में भारतीय स्वतंत्रता लीग के मुख्यालय में 24 विभाग थे- वित्त, लेखा परीक्षण, नेताजी फंड समिति, आपूर्ति, आपूर्ति बोर्ड, क्रय बोर्ड, माल विभाग, भर्ती एवं प्रशिक्षण, महिला विभाग (झांसी की रानी रेजिमेंट सहित), प्रचार एवं प्रसार, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं समाज कल्याण, राष्ट्रीय योजना, गुप्तचर विभाग, सूचना, उत्पादन, प्रावैधिक, संचार, कृषि एवं उद्योग, पुनर्निर्माण, आवास एवं परिवहन, विदेश, श्रम और शाखायें।

नेताजी के अपने बर्मा मुख्यालय पर चले जाने के पश्चात् सैनिक कार्यों के लिए भूमि तैयार हो गयी। आई.एन.ए. मलाया से थाईलैंड और बर्मा होती हुई लंबा रास्ता तय करके भारत की सीमा तक पहुंच गयी।

तभी भारत की स्वतंत्रता की दूसरी लड़ाई में आई.एन.ए. द्वारा प्रथम गोली दागे जाने का रोमांचकारी समाचार मिला। आई.एन.ए. ने 4 फरवरी 1944 को अराकान युद्ध के मोर्चे पर लड़ाई आरंभ की और विजय प्राप्त की।

आई.एन.ए. के इतिहास में 18 मार्च 1944 का दिन स्वर्णिम दिन के रूप में सदैव स्मरणीय रहेगा क्योंकि इसी दिन आई.एन.ए. ने सीमा पार करके भारत की पावन भूमि पर अपने कदम रखे थे। 21 मार्च को एक प्रेस सम्मेलन में नेताजी ने एक नाटकीय घोषणा करके संपूर्ण संसार को इस ऐतिहासिक घटना की सूचना दी। प्रत्येक मास की 21वीं तारीख पूर्वी एशिया में भारतीयों के लिए एक पावन दिन था क्योंकि अक्तूबर 1943 में इसी दिन नेताजी ने पूर्वी एशिया में आजाद हिंद की अस्थायी सरकार की स्थापना की घोषणा की थी।

स्वतंत्रता की लड़ाई शुरू हो चुकी थी और अब आई.एन.ए. बर्मा-भारत सीमा पर कोहिमा के समीप और इंफाल के मैदानों में आठ क्षेत्रों में युद्ध कर रही थी।

कर्नल एस.ए. मलिक के नेतृत्व में आई.एन.ए. की एक टुकड़ी भारतीय प्रदेश में पर्याप्त अंदर चली गयी और उसने 14 अप्रैल 1944 को मणिपुर राज्य में मोरांग स्थान पर भारत का राष्ट्रीय तिरंगा लहरा दिया। इस प्रकार प्रतीक रूप में आई.एन.ए. ने भारत भूमि के एक भाग को अंग्रेजी शासन मे मुक्त करा दिया। भारत भूमि के जिस स्थान पर आई.एन.ए. ने प्रथम बार तिरंगा लहराया था वहीं आजाद हिंद फौज के शहीद होने वाले सैनिकों की स्मृति में एक स्मारक बनाकर अब उसे पावन स्थल का रूप दिया जा चुका है। नेताजी की कांसे की मूर्ति वहां लगायी जानी है और नेताजी संग्रहालय भी शीघ्र बनाया जा रहा है। मोरांग भारत में आने वाली पीढ़ियों के लिए एक तीर्थ स्थल होगा। विशेष करके उन व्यक्तियों के लिए जो भारत की स्वतंत्रता के द्वितीय संग्राम के सैनिकों को, जिन्होंने स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया था, श्रद्धा अर्पित करने चाहते हैं।

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