कहानी संग्रह >> आजाद हिन्द फौज की कहानी आजाद हिन्द फौज की कहानीएस. ए. अय्यर
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आजाद हिन्द फौज की रोचक कहानी....
14. झांसी की रानी रेजिमेंट
आजाद हिंद की अस्थाई सरकार की घोषणा करने के पश्चात् नेताजी ने सिंगापुर. में
झांसी की रानी रेजिमेंट के लिए एक शिविर खोला। इस रेजिमेंट की संचालिका
कप्तान लक्ष्मी नियुक्त हुई। समाज के प्रत्येक वर्ग की महिलाएं शिविर में
लड़ाकू सैनिकों या नर्स अथवा रेजिमेंट में अन्य किसी उपयोगी कार्य के लिए
स्वयं-सेविका का प्रशिक्षिण लेने के लिए एकत्र होने लगीं। समृद्ध परिवार की
कानवेंट शिक्षा प्राप्त युवतियां अपने अभिभावकों के सुरक्षित घरों को छोड़कर
सैकड़ों की संख्या में शिविर में सम्मिलित हुई। वे सैनिक प्रशिक्षण की
कठिनाइयों को सहन करते हुए राईफल चलाने एवं संगीन का अभ्यास करने की शिक्षा
ग्रहण करने की इच्छुक थीं। वे मुक्ति सेना के लड़ाकू सैनिक विभाग में
सम्मिलित होने के लिए युवकों से उत्साह में किसी प्रकार पीछे न थीं। आज़ाद
हिंद फ़ौज में झांसी की रानी रेजिमेंट पुरुषों की रेजिमेंट की सहयोगी टुकड़ी
थी। जब जापानियों ने भारतीय युवतियों को आई.एन.ए. के पुरुष सैनिकों के साथ
अस्त्र-शस्त्र पहने और युद्ध-स्थल पर जाने हेतु इच्छुक देखा तो वे पहले
विस्मित हुए। जापानियों के मन में पूर्ण शंका थी और उन्हें यह विश्वास नहीं
था कि झांसी की रानी रेजीमेंट निर्मित हो सकेगी। परंतु जब उन्होंने अपनी
आंखों से युवतियों को कंधों पर बंदूक रखे, उत्साहपूर्वक मार्च करते हुए देखा
तो उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन आया। अक्तूबर 23/24 की रात को अस्थायी सरकार की मीटिंग नेताजी के निवास स्थान पर हुई और उसमें अंग्रेजों और उनके मित्र राष्ट्र अमेरिका के विरुद्ध युद्ध घोषणा करने का निर्णय लिया गया। विचार-विमर्श में ले. कर्नल लोगनादन ने युद्ध घोषणा में अमेरिका को ब्रिटेन के साथ शामिल करने पर आपत्ति की, परंतु नेताजी ने यह कहकर कि युद्ध अवधि में भारत में प्रभुत्व जमाये रखने में अमेरिका ब्रिटेन का सक्रिय सहयोगी है अपनी घोषणा को उचित बताया और उन्हें संतुष्ट किया। इस प्रकार आज़ाद हिंद सरकार अमेरिका की अप्रसन्नता से भयभीत नहीं हुई।
उसी दिन संध्या समय नेताजी ने आई.एन.ए. एवं भारतीय नागरिकों की विशाल रैली में सभी से शपथ ली कि वे भारत को मुक्त कराने के लिए अंग्रेज और अमेरिका के विरुद्ध युद्ध में अपना सर्वस्व तन-मन-धन अर्पित करेंगे।
अस्थाई सरकार आई.एन.ए. एवं स्वतंत्रता लीग अब पूर्णरूप से कार्यरत होने के लिए तैयार थी। आई.एन.ए. में पुरुषों की एवं झांसी की रानी रेजीमेंट में स्त्रियों की भर्ती एवं प्रशिक्षण का कार्य पूरी रफ्तार से चल रहा था। पूर्व एशिया में धन एवं अन्य आवश्यक सामग्री का संग्रह किया जा रहा था। सिंगापुर, बैंकाक, रंगून सैगोन और टोकियो से आजाद हिंद रेडियो स्टेशन भारत की विभिन्न भाषाओं में कार्यक्रम प्रसारित कर रहा था। सिंगापुर से आज़ाद हिंद रेडियों केंद्रों से अंग्रेजी, हिंदुस्तानी, बंगला, तामिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, गुजराती, मराठी, पंजाबी, गोरखाली एवं पुश्तो भाषाओं में प्रसारण रात-रात भर होता था। आज़ाद हिंद सरकार अपने दैनिक एवं साप्ताहिक समाचार पत्र वहां की स्थानीय जनता के लिए विभिन्न भाषाओं में निकालती थी।
स्वतंत्रता युद्ध संचालित करने के साथ-साथ स्वतंत्र भारत की भावी सरकार के संबंध में नेताजी निरंतर योजना बनाते रहते थे। अस्थाई सरकार के पास अपनी सेना थी एवं सेना के लिए युवकों को शिक्षित करने की पर्याप्त सुविधा थी परंतु उनके पास अपनी नौ सेना एवं वायु सेना नहीं थी। अत: वे पूर्व एशिया में अपने युवकों को नौ सेना एवं वायु सेना का प्रशिक्षण नहीं दे सकते थे। अत: नेताजी ने स्वयं कुछ किशोर अवस्था के भारतीय लड़के चुनकर सिंगापुर से जापान नौ सेना एवं वायु सेना के प्रशिक्षण के लिए भेजे। ये 'टोकियो बायज', जैसे कि इन्हें नेताजी प्यार की भाषा में कहते थे, अपने प्रशिक्षण में अच्छा कार्य कर रहे थे। जब अगस्त 1945 में जापान ने एकदम आत्मसमर्पण कर दिया। तो कैडेट प्रशिक्षण भी समाप्त हो गया और इन लड़कों को भारत भेज दिया गया।
सिंगापुर में आई.एन.ए. और एवं सरकार स्थापित करने के पश्चात् नेताजी 28 अक्तूबर को हवाई जहाज से टोकियो एक बृहद पूर्वी एशिया सम्मेलन में द्रष्टा के रूप में भाग लेने गए। वे वहां इस रूप में इस कारण गए क्योंकि वे सम्मेलन के निर्णयों में भारत को समभागी नहीं बनाना चाहते थे। वे भावी स्वतंत्र भारत को टोकियो सम्मेलन के निणयों एवं विचारों से अप्रभावित तथा मुक्त रखना चाहते थे।
इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री जनरल तोजो ने घोषणा की कि जापान अंडमान व निकोबार द्वीपों, को जिन्हें उसने पूर्वी एशिया युद्ध में बहुत पहले जीता था आज़ाद हिंद की अस्थाई सरकार को सौंपने का निश्चय करता है। इस प्रकार आज़ाद हिंद सरकार को अपने पहले दो प्रदेश मिले जिनका नाम बाद में शहीद एवं स्वराज द्धीप रखा गया। ले. कर्नल ए.डी. लोगनादान को अस्थायी सरकार की ओर से उनका प्रथम भारतीय प्रशासक नियुक्त किया गया।
चीन और फिलपीन की यात्रा के पश्चात दिसंबर के अंत में सिंगापुर लौटने पर नेताजी अंडमान गए जहां उन्होंने स्वतंत्र भारत के पहले प्रदेश में 31 दिसंबर 1943 को अपने पग रखे। भारत के अंग्रेज शासकों द्वारा निष्कासित भारतीय क्रांतिकारियों की पीढ़ियों के बलिदान से और बंदी के रूप में वहां निवास से यह भूमि पवित्र बन गयी थी। गत सितंबर में नेताजी ने प्रतिज्ञा की थी कि आई.एन.ए. स्वतंत्र भारत भूमि पर वर्ष के अंत तक पहुंच जाएगी। उनका अंडमान आगमन इस प्रतिज्ञा की पूर्ति का प्रतीक था।
अंडमान जाने से पूर्व नेताजी ने सिंगापुर में एक मंत्रिमंडलीय उपसमिति नियुक्त की थी जिसका कार्य पूर्व एशिया में भारतीयों की भाषा, वेशभूषा, भोजन, अभिवादन, चिन्ह एवं रीति-रिवाजों में एकता लाकर राष्ट्रीय स्तर पर संगठित करना था। नेताजी आंदोलन के इस रूप को भारत में स्थायी एकता स्थापित करने की दुष्टि से बहुत अधिक महत्व देते थे।
इस मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने भावी राष्ट्रीय एकता की दिशा में प्रथम कार्य भारत की सामान्य भाषा 'हिंदुस्तानी' निर्धारित की। सभी भारतीयों का अभिवादन 'जयहिंद', राष्ट्रीय झंडा कांग्रेस का तिरंगा, राष्ट्रगान 'शुभ सुख चैन', सिंह राष्ट्रीय चिन्ह निर्धारित किए एवं जब तक सफलता के पश्चात् आंदोलन की समाप्ति न हो जाए 'चलो दिल्ली' राष्ट्रीय उद्घोष एवं 'आज़ाद हिंद जिंदाबाद', 'इंकलाब जिंदाबाद', 'नेताजी की जय' राष्ट्रीय नारे निर्धारित हुए।
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