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आजाद हिन्द फौज की कहानी

एस. ए. अय्यर

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :97
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4594
आईएसबीएन :81-237-0256-4

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आजाद हिन्द फौज की रोचक कहानी....


13. ऐतिहासिक घोषणा

1 अक्तूबर 1943 भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में स्वर्णिम दिन माना जायेगा। इस अविस्मरणीय दिन पूर्वी एशिया के समस्त भागों के भारतीय स्वतंत्रता लीग के प्रतिनिधि सिंगापुर के कैथे सिनेमा हाल में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की ऐतिहासिक घोषणा सुनने के लिए एकत्र हुए। बड़ा गंभीर अवसर था। हाल खचाखच भरा था। खड़े होने के लिए एक इंच स्थान खाली नहीं था। लोग चुपचाप आशा लगाये प्रतीक्षा कर रहे थे। घड़ी में साढ़े चार बजे। मंच पर अपने स्थान पर नेताजी खड़े हुए। उन्होंने भावनाओं से भरे हाल में धीरे-धीरे नपी-तुली आवाज में घोषणा पड़ी। श्रोताओं ने पूर्ण शांति के साथ उनके प्रत्येक शब्द को सुना। यह घोषणा 1500 शब्दों की थी जो नेताजी ने दो दिन पहले संपूर्ण रात्रि में एक ही बार में लिखी थी। इस घोषणा में1857 से भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई का अत्युत्तम सर्वेक्षण था। इस धोषणा में कहा गया था कि 'अस्थायी सरकार का यह कार्य होगा कि वह भारत से अंग्रेजों और उनके मित्रों को निष्कासित करे। अस्थाई सरकार का यह भी कर्तव्य होगा कि भारतीयों की इच्छानुकूल और उनके विश्वास की आज़ाद हिंद की स्थाई सरकार का निर्माण करे।

घोषणा का एक प्रेरणापूर्ण अपील के साथ समापन हुआ-"ईश्वर के नाम पर, पूर्वजों के नाम पर जिन्होंने भारतीयों को एक सूत्र में बांधकर एक राष्ट्र बनाया, उन स्वंगवासी वीरों के नाम पर जिन्होंने शौर्य एवं आत्म-बलिदान की परंपरा बनायी, हम भारतवासियों से देश की स्वतंत्रता के लिए युद्ध करने और भारतीय झंडे के नीचे आने का आह्वान करते हैं।"

घोषणा आज़ाद हिंद सरकार की ओर से निम्नलिखित द्वारा हस्ताक्षरित थी-
सुभाष चंद्र बोस (राज्याध्यक्ष, प्रधान मंत्री, युद्ध एवं विदेशमंत्री)
कप्तान श्रीमती लक्ष्मी (महिला संगठन)
एस.ए. अय्यर (प्रचार एवं प्रसारण)
लै. कर्नल ए.सी. चटर्जी (वित्त)
ले. कर्नल अजीज़ अहमद, ले. कर्नल एन.एस. भगत, ले. कर्नल जे.के. भोंसले, लै. कर्नल गुलजार सिंह, ले. कर्नल एम.जैड कियानी, ले. कर्नल ए.डी. लोगनादन,
लै. कर्नल एहसान कादिर, ले. कर्नल शाहनवाज (सशस्त्र सेना के प्रतिनिधि), ए.एम. ‘सहायक सचिव (मंत्री स्तर), रासबिहारी बोस (उच्चतम परामर्शदाता) करीम गनी, देवनाथ दास, डी.एम. खान, ए. यलप्पा, जे.थीवी., सरदार इशर सिंह (परामर्शदाता), ए.एन. सरकार (कानूनी सलाहकार)।

संसार के सम्मुख आज़ाद हिंद की अस्थायी सरकार की घोषणा करने के पश्चात्
भारत के प्रति निष्ठा की शपथ ली गयी। जब सुभाष निष्ठा की शपथ लेने खड़े हुए तो कैथे हाल में एक अत्यंत भावनामय अपूर्व दृश्य उपस्थित हुआ। जब नेताजी अपनी शपथ पढ़ने लगे तो वातावरण निस्तब्ध था—“ईश्वर के नाम पर मैं यह पावन शपथ लेता हूं कि भारत और उसके 38 करोड़ निवासियों को स्वतंत्र कराऊंगा।

इसके पश्चात् नेताजी रुक गये क्योंकि उनकी वाणी भावनाओं के कारण अवरुद्ध हो गयी। अश्रुधारा उनके गालों पर बह निकली, उन्होंने अपना रुमाल निकालकर आंसू पोंछे। संपूर्ण हाल में एकदम स्तब्धता छा गयी। उनके दुख एवं भावनाओं से अधिकांश उपस्थित व्यक्ति उद्वेलित हो उठे और उनकी आंखों से भी आंसू बह निकले। उस समय नेताजी यह भूल गये कि श्रोता उनके सामने थे, उस समय उनकी आंखों के सामने भूतपूर्व क्रांतिकारियों एवं भारत के अंदर लाखों स्वतंत्रता सेनानियों, जो अब भी अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित विदेशी सेना के विरुद्ध वीरता से लड़ रहे थे, का लंबा काफिला था। भावनाओं से अभिभूत नेताजी की वाणी अवरुद्ध हो गयी और वे अपनी शपथ आगे न पढ़ सके। भावना मुक्त होने पर धैर्य आया और उन्होंने पढना आरंभ किया: “मैं सुभाष चंद्र बोस, अपने जीवन के अंतिम स्वांस तक स्वतंत्रता की पवित्र लड़ाई जारी रखूगा।"

"मैं सदैव भारत का सेवक रहूंगा और 38 करोड़ भाइयों और बहिनों के कल्याण को अपना सर्वोच्च कर्तव्य समझूगा।"

"स्वतंत्रता प्राप्त करने के पश्चात् भी मैं सदैव भारत की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने रक्त की अंतिम बूंद बहाने को तैयार रहूंगा"।

जब नेताजी की शपथ समाप्त हुई तो वातावरण से खिंचाव एकदम समाप्त हुआ और श्रोता भावना मुक्त हुए तो वे भावातिरेक में हर्षध्वनि करने लगे जो कई मिनट तक प्रतिध्वनित होती रही। 'इंकलाब जिंदाबाद', 'आज़ाद हिंद जिंदाबाद' के गगनभेदी नारों से वातावरण गूंज उठा।

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