कहानी संग्रह >> आजाद हिन्द फौज की कहानी आजाद हिन्द फौज की कहानीएस. ए. अय्यर
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आजाद हिन्द फौज की रोचक कहानी....
9. सिंगापुर, टोकियो और बैंकाक के सम्मेलन
आई.एन.ए. के आध्यात्मिक प्रशिक्षण का उद्देश्य वर्ग में उत्तरदायित्व एवं
सम्मान की उच्च भावना उत्पन्न करना था। उन्हें जाति एवं धर्म के ऊपर अपने को
पहले भारतीय समझने की शिक्षा दी गई थी। शनै:-शनै: पृथक रसोई घर और अन्य
पारस्पारिक धार्मिक अवरोध समाप्त कर दिये गये। कांग्रेस के तिरंगे को
आई.एन.ए. के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपना लिया गया।ज्ञानी प्रीतमसिंह ने सिंगापुर पहुंचकर तुरंत मलाया स्थित समस्त भारतीयों की भारतीय स्वतंत्रता लीग बनायी। एन. राघवन इसके अध्यक्ष बने। युद्ध के पूर्व राघवन पिनांग में बैरिस्टर के रूप में वकालत करते थे। स्वतंत्र भारत में राघवन चीन
9 मार्च 1942 को मलाया और थाईलैंड के भारतीय स्वतंत्रता लीग के प्रतिनिधि सदस्यों के सिंगापुर में हुए एक सम्मेलन में स्वामी सत्यानंद पुरी ने बताया कि उन्होंने 2 फरवरी, 1942 को जर्मनी में सुभाष चंद्र बोस को तार भेजा था और उन्हें पूर्वी एशिया में आकर आंदोलन का नेतृत्व ग्रहण करने का निमंत्रण दिया था। सुभाष ने यह बात स्वीकार कर ली थी।
सिंगापुर का यह सम्मेलन शंघाई, मलाया, हांगकांग एवं थाइलैंड के प्रतिनिधियों के वृहद सम्मेलन का प्रारंभिक रूप था। यह बड़ा सम्मेलन टोकियो में जापानी अधिकारियों से भारत की स्वतंत्रता में उनके सहयोग की शर्तों पर विचार करने के लिये किया गया था। सभापति राघवन के अतिरिक्त बाबा अमरसिंह, ज्ञानी प्रीतमसिंह, स्वामी सत्यानंद पुरी, के.पी.के. मेनन, कप्तान मोहनसिंह, लें. कर्नल गिल एवं मेजर एन. जैड कियानी ने भी इस सम्मेलन में भाग लिया। मेजर कियानी बाद में मेजर जनरल बने और सुप्रीम कमांडर सुभाष चंद्र की देखरेख में उन्होंने आई.एन.ए. की प्रथम डिवीजन का संचालन किया। सिंगापुर के सम्मेलन में एक निर्णय यह लिया गया कि सुभाष से टोकियो आने का निवेदन किया जाए और उन्हें पूर्वी एशिया में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व संभालने को कहा जाए।
टोकियो सम्मेलन में एक हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के कारण खिन्नता रहीं। इसमें चार प्रमुख प्रतिनिधि स्वामी सत्यानंद पुरी, ज्ञानी प्रीतम सिंह, कप्तान मोहम्मद
अकरम जो कप्तान मोहनसिंह के दाहिने हाथ थे और नीलकांत अय्यर जो राघवन के विश्वस्त साथी थे सवार थे। उन्होंने सैगोन 13 मार्च 1942 को छोड़ा था, तत्पश्चात् उनका कोई समाचार प्राप्त नहीं हुआ।
टोकियो सम्मेलन रासबिहारी बोस की अध्यक्षता में 28 मार्च को हुआ। इस सम्मेलन के लिए जापान के प्रधान मंत्री जनरल टोजों ने यह संदेश भेजा कि जापान सरकार यह आशा करती है कि भारतीय स्वयं अग्रेजी राज्य को समाप्त करेंगे एवं स्वतंत्र भारत का निर्माण करेंगे। संदेश में यह भी कहा गया था कि जापान सरकार की उनके इस प्रयास के प्रति सहानुभूति है और इस संबंध में वह हर संभव सहायता देने में भी नहीं हिचकिचायेगी।
जापान सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कर्नल इवाकुरो ने, जो बाद में जापान सरकार और भारतीय आंदोलनकारियों के बीच समन्वय संगठन के प्रमुख बने, इस सम्मेलन में भाग लिया।
इस सम्मेलन में बहुत से प्रस्ताव पारित हुए। एक प्रस्ताव में कहा गया था कि एकता, निष्ठा, एवं त्याग ही आंदोलन के आदर्श होंगे। दूसरे प्रस्ताव में जापान सरकार से भारत के प्रति अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करने की एवं भारत को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए हर संभव सहायता देने की नियामानुसार घोषणा करने की प्रार्थना की गयी थी। सम्मेलन में यह भी निश्चय किया गया कि जापान भारत की पूर्ण प्रभुसत्ता स्वीकार करेगा एवं उसकी पूर्ण स्वतंत्रता का वचन देगा तथा भारत का भावी संविधान भारत के नागरिकों के प्रतिनिधि स्वयं बनायेंगे। सम्मेलन ने एक निर्वाचित परिषद बनाने का निश्चय किया और इस परिषद के अंतरिम अध्यक्ष के पद पर रासबिहारी बोस को नियुक्त किया। यह भी निश्चय हआ कि इस सम्मेलन के प्रस्तावों की पुष्टि बैंकाक में होने वाले पूर्वी एशिया की लीग के प्रतिनिधियों के सम्मेलन में की जायेगी।
जैसा कि टोकियो में निश्चय किया गया था जापान, मानचूको, हांगकांग, बर्मा, बोर्नियो, जाबा, मलाया, थाईलैंड, शंघाई, मनीला, एवं हिंदचीन के इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के प्रतिनिधियों का एक सप्ताह का सम्मेलन 15 जून से बैंकाक में हुआ। इस सम्मेलन में टोकियो के प्रस्तावों की पुष्टि की गयी। इन प्रस्तावों में वह प्रस्ताव भी था जिसके द्वारा जापान सरकार से अंग्रेजी के भारत से चले जाने के बाद भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के वचन की अधिकृत घोषणा करने का निवेदन किया गया था। इस सम्मेलन में एक कार्यकारिणी भी बनी जिसके अध्यक्ष रासबिहारी बोस और सदस्य राघवन, जनरल मोहनसिंह, के.पी.के. मैनन और कर्नल जी.क्य. गिलानी नियुक्त हए। इस कार्यकारिणी को समस्त क्षेत्रों की स्वतंत्रता लीग एवं आजाद हिंद फौज
पर नियंत्रण रखने का अधिकार दिया गया। सम्मेलन द्वारा भी सुभाष चंद्र बोस को पूर्वी एशिया पहुंचने की सुविधा देने के संबंध में अपने प्रभाव का प्रयोग करने का निवेदन किया गया।
बैंकाक सम्मेलन के तुरंत पश्चात लीग संगठन एवं आई.एन.ए. क्रियाशील हो गये। परिषद का मुख्यालय बैंकाक में एवं आई.एन.ए. का सिंगापुर में था। लीग संगठन में विभिन्न विभागों के माध्यम से परिषद का कार्य चलाया जाता था। आई.एन.ए. में युद्ध सैनिकों का ग्रुप, गांधी ब्रिगेड, नेहरू ब्रिगेड, आज़ाद ब्रिगेड, एस.एस. ग्रुप, गुप्तचर विभाग, सैनिक औषधालय, चिकित्सा, प्राथमिक सहायता कोर, इंजीनियरिंग कंपनी, सैनिक प्रचार अंग एवं सामग्री लाने वाले ग्रुप सम्मिलित थे।
पहले जापानी समन्वय कार्यालय मेजर फ्यूजी वारा के अंतर्गत था जिसे फ्यूजी किकान (कार्यालय) भी कहा जाता था। तत्पश्चात कर्नल इवाकुरों के नीचे यह संपर्क कार्यालय आ गया और इसे इवाकुरो किकान कहने लगे। मेजर फ्यूजी वारा ने अधिकांश भारतीयों को आई.एन.ए. के प्रारंम्भ से ही अपनी ईमानदारी का विश्वास दिलाया था। उनके द्वारा हुई रिक्ति को कर्नल इवाकुरो सुगमता से पूरी नहीं कर सकते थे। कर्नल इवाकुरो सिंगापुर में एक ओर लीग एवं आई.एन.ए. तथा दूसरी ओर टोकियो में जापान सरकार के बीच स्थानीय समन्वय अधिकारी के रूप में अपने भूतपूर्व लोकप्रिय अधिकारी की भाँति संबंध स्थापित नहीं कर सके।
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