पौराणिक >> अभिज्ञान अभिज्ञाननरेन्द्र कोहली
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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...
वे लौटकर आये तो किसी ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। व्यापारी लोग अपनी बातों में उलझे हुए थे। पर इस बार अधिक लोग नहीं बोल रहे थे। जाने ऐसी कौन-सी बात थी कि जिसमें सब की रुचि थी। एक बोल रहा था और अन्य सन रहे थे।...सदामा का ध्यान भी उसी ओर चला गया। उन्होंने अपनी आँखें विपरीत दिशा में ही टिकाए रखीं, पर उनके कान उनकी ओर लगे रहे। स्वर से लगता था कि वही व्यक्ति बोल रहा था, जिसने उनसे पूछताछ की थी।
"व्यापारी को क्या चाहिए? व्यापार करने की सुविधा!" वह कह रहा था, "और व्यापार किसलिए है? धन कमाने के लिए। अब इसमें नैतिकता-अनैतिकता या स्वाभिमानअपमान की बात कहां से आ गयी। अन्न के व्यापार में लाभ होगा तो हम अन्न बेचेंगे, मदिरा बेचने में लाभ होगा, हम मदिरा बेचेंगे। सुन्दरियां बेचने में लाभ होगा, तो हम सुन्दरियां बेचेंगे।"
"पर सुन्दरियां उगाएगा कौन?" किसी ने हंसकर उसे टोक दिया। अनुशासन टूट गया और प्रायः सब लोग अपने-अपने ढंग से हंसने लगे।
सहसा उसी व्यक्ति का क्रुद्ध स्वर सुनाई पड़ा, "भामाशाह! तुम सदा गम्भीर बात को भी हंसी में उड़ा देते हो। बहुत बुरी बात है। मेरी बात को समझने का प्रयत्न क्यों नहीं करते।"
"अच्छा! बोलो भाई बोलो।" टोकने वाले व्यक्ति ने लापरवाही से कहा।
"मैं यह कह रहा था," पहले व्यक्ति ने अपनी बात आगे बढ़ाई, "हमें तो प्रतिक्षण व्यापार के लिए नयी-से-नयी वस्तु और नया-से-नया क्षेत्र खोजना पड़ता है। ऐसे में सदा राज्य के विधि-निषेध आड़े आते हैं। तब हमें उनसे बचने का कोई मार्ग खोजना पड़ता है।" वह क्षण-भर रुका, "और इस समय इस राज्य में सबसे समर्थ और प्रभावशाली व्यक्ति है कृष्ण! यदि हमें कृष्ण तक पहुंचने का कोई साधन मिल जाये तो हमारे मार्ग से सारे राजकीय विघ्न दूर हो जायेंगे।"
"देखो! मैं बोलूंगा, तो फिर कहोगे कि मैं गम्भीरता से बात नहीं करता।" टोकने वाला व्यक्ति बोला।
"बोलो-बोलो।" अनेक स्वरों ने एक साथ कहा।
"देवीदयाल बोलता है तो बोलता ही जाता है।" भामाशाह बोला, "जो कुछ यह कह रहा है, वह तो सब ही जानते हैं। पर वह मार्ग है कौन सा? किसके माध्यम से पहुंचेंगे हम कृष्ण तक?"
"वही तो बताने जा रहा हूं।" देवीदयाल अधीरता से बोला, "वैसे तो द्वारका में ऐसे सैकड़ों व्यक्ति हैं, जिनके द्वारा कृष्ण तक पहुंचा जा सकता है; पर हमें ऐसा व्यक्ति चाहिए, जो कृष्ण की बातों में बह न जाये और अपनी बात उससे मनवा सके।"
"फिर वही बात...।'' भामाशाह बोला।
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