पौराणिक >> अभिज्ञान अभिज्ञाननरेन्द्र कोहली
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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...
देवीदयाल ने सीधे भामाशाह को कोई उत्तर नहीं दिया, पर जब वह बोला तो उसका स्वर पहले से कुछ अधिक कठोर था। शायद भामाशाह की टोका-टाकी की प्रतिक्रिया में, "और वह व्यक्ति हो भी ऐसा, जो कम प्रयत्न से, कम मूल्य में हमारे नियन्त्रण में आ जाये।"
"पर वह हो कौन सकता है?' इस बार अनेक स्वरों ने अधीरता से पूछा।
"मैं कृष्ण के उस कंगाल मित्र, विप्र सुदामा..."
सुदामा के कान खड़े हो गये। ये लोग उनके विषय में बातें कर रहे हैं...।
"मैंने सुना है कि वह बहुत निर्धन व्यक्ति है।" देवीदयाल कह रहा था, "थोड़ी-सी स्वर्ण मुद्राओं से प्रसन्न हो जायेगा। ब्राह्मण है, किसी छोटे ग्राम में रहता है। व्यापार के विषय में कुछ नहीं जानता। हम जो चाहेंगे, वह कृष्ण से मनवा देगा। कृष्ण उसकी बात टालेगा भी नहीं।"
सुदामा के जी में आया, तत्काल अपना लोटा-डोरी लेकर यहां से भाग जायें। ये लोग तो उनके चारों और भयंकर षड्यन्त्र की रचना करने की सोच रहे हैं। ये लोग उन्हें खरीद लेना चाह रहे हैं, उनके धर्माधर्म विचार को, न्यायान्याय के चिन्तन को, उनके कल्याणाकल्याण के भाव को, उनकी बुद्धि, दर्शन और इच्छा को...और उन सब में कृष्ण को बांध लेना चाहते हैं। फिर वे कृष्ण से भी अपनी इच्छा के अनुरूप कार्य करवायेंगे। सारे जम्बूद्वीप के कर्मनायक को, ये व्यापारी बांधकर परतन्त्र कर देना चाहते हैं और उसे बांधने के लिए रस्सी बनेंगे सुदामा...।
एक बार तो सुदामा का हाथ अपनी गठरी की ओर बढ़ भी गया, पर दूसरे ही क्षण उनके विवेक ने उन्हें रोका। इसमें भागने की क्या बात है? वे लोग सुदामा को क्रय कर लेना चाहते हैं, पर यह तो सुदामा की अपनी इच्छा पर है कि वे बिकना चाहते हैं या नहीं ...प्रलोभन उनके सामने आयेगा तो यह तो उनकी अपनी इच्छा-शक्ति की परीक्षा है कि उनके भीतर प्रलोभन के प्रति कितना प्रतिरोध है।...भाग जाने से क्या यह प्रक्रिया थम जायेगी?...कौन नहीं जानता कि यादवों का वास्तविक शासक कौन है? कौन उसकी शक्ति और सामर्थ्य से परिचित नहीं है। आज जब कृष्ण ने सुदामा के साथ अपने सम्बन्ध को इस खुले रूप में स्वीकार किया है तो प्रत्येक व्यक्ति के मन में सुदामा का महत्त्व, उनके कृष्ण के साथ अनुपात में ही बढ़ गया है। प्रत्येक व्यक्ति उनके माध्यम से कृष्ण तक पहुंचना चाहेगा...सुदामा कहां-कहां और कितना मानेंगे?...यह तो संयोग था कि इन व्यापारियों की बातें उन्होंने सुन ली थीं, किन्तु इसी के समान जाने कहां-कहां लोग, उनके माध्यम से काम निकालने की सोच रहे होंगे। यह तो एक चेतावनी है सुदामा के लिए। इससे भागने के स्थान पर उन्हें यह सब सुनना चाहिए।
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- अभिज्ञान