लोगों की राय

पौराणिक >> अभिज्ञान

अभिज्ञान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4429
आईएसबीएन :9788170282358

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

10 पाठक हैं

कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...


कृष्ण के चेहरे पर पूर्ण शान्ति थी। बीच में क्षण-भर के लिए उभर आयी उद्विग्नता उनकी गम्भीरता से विलीन हो गयी थी, "जब तुम चले तो पाण्डव कहां थे?"

"वे लोग इन्द्रप्रस्थ लौटने की तैयारी में थे।"

"उद्धव से तुम्हारी भेंट हुई?"

"जी नहीं।" चर बोला, "मुझे उनके हस्तिनापुर में वर्तमान होने की कोई सूचना नहीं मिली।"

कृष्ण थोड़ी देर मौन बैठे कुछ सोचते रहे। फिर बोले, "अच्छा तुम जाओ। विश्राम करो।"

चर चला गया तो कृष्ण सुदामा की ओर मुड़े, "सुदामा! कुछ समय के लिए तुम्हें अकेले रहना होगा। भोजन कर विश्राम करना। सन्ध्या समय तक लौटूंगा।"

इससे पहले कि सुदामा कुछ कहते, कृष्ण उठ खड़े हुए, "आओ प्रद्युम्न!"

और अगले ही क्षण, पिता-पुत्र कक्ष से बाहर चले गये।

भोजन कर सुदामा विश्राम के लिए लेट गये। कृष्ण अभी तक नहीं लौटे थे, और कोई नहीं जानता था कि वे कब तक लौटेंगे। रुक्मिणी ने सुदामा को बताया था कि कृष्ण की सारी गतिविधियों का लेखा-जोखा रखना किसी के बस का नहीं है। इस समय वे कहां होंगे और क्या कर रहे होंगे, यह कोई नहीं जानता। बस अनुमान लगाया जा सकता है कि वे इन्द्रप्रस्थ और हस्तिनापुर की घटनाओं के सन्दर्भ में व्यस्त होंगे।

ऊंघते-ऊंघते सुदामा का मन भी उन्हीं घटनाओं में भटक गया। दुर्योधन और उसके साथियों का व्यवहार सुदामा सरलता से समझ जाते थे; किन्तु पाण्डवों का व्यवहार...युधिष्ठिर का इस प्रकार स्वेच्छा से सब कुछ हार जाना और उनके महाबली भाइयों का बड़े भाई की रक्षा के धर्म का निर्वाह करने के लिए समर्थ होते हुए भी इतना अत्याचार चुपचाप सह जाना। अपनी आँखों के सामने अपनी पत्नी के साथ सार्वजनिक रूप से ऐसा अत्याचार होते देखना...पर शायद पाण्डव इतने समर्थ भी नहीं रहे होंगे। दुर्योधन बहुत व्यावहारिक व्यक्ति लगता है। उसने कुछ भी संयोग पर न छोड़ा होगा। उसके सारे साथी, मित्र, परिजन वहां उपस्थित थे और शस्त्र-सज्जित थे। उसकी सेनाएं भी सन्नद्ध रही होंगी। ऐसी स्थिति में बहुत सम्भव है कि पाण्डव उनसे भिड़ने का प्रयत्न करते तो घेरकर मार डाले जाते।...बहुत सम्भव है कि दुर्योधन की रक्तपात की इस तैयारी को देखकर ही भीष्म भी चुप लगा गये हों। हो सकता है कि उन्हें यह शंका हो कि उनके हस्तक्षेप से पाण्डवों को बल मिलेगा और दुर्योधन और भी कुपित होगा; और यदि उस सभा में एक बार भी, किसी की ओर से शस्त्र उठ गया होता, तो पाण्डवों का जीवित बच कर निकलना सम्भव न होता। यह भी सम्भव है कि दुर्योधन ने द्रौपदी के साथ इतना दुर्व्यवहार पाण्डवों को उकसाने के लिए ही किया हो!...ऐसी स्थिति में पाण्डवों द्वारा यह सारा अपमान पी जाना ही उनके जीवित रहने का एकमात्र उपाय हो। सारे कुरुवृद्धों का यहां तक कि भीष्म और द्रोण जैसे लोगों का भी धर्म-अधर्म के नाम पर चुप रह जाना...शायद यही कारण हो...

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अभिज्ञान

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book