पौराणिक >> अभिज्ञान अभिज्ञाननरेन्द्र कोहली
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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...
"कर्ण का सारा धर्म-विचार क्या हुआ? कृष्ण बोले, "नीच को अपनी प्रतिहिंसा में धर्म-विचार याद नहीं रहता।"
"किन्तु देवी पांचाली अपना प्रश्न दुहराती रहीं।" चर बोला, "धृतराष्ट्र के पुत्र विकर्ण ने देवी का पक्ष लेकर कहा कि युधिष्ठिर को द्रौपदी को दाँव पर बदने का कोई अधिकार नहीं था। अतः देवी दासी नहीं है। उनसे दुःशासन का इस प्रकार का व्यवहार अशोभनीय है। किन्तु कर्ण ने विकर्ण को डांट दिया और बड़े खुले शब्दों में पांच पतियों की पत्नी होने के कारण द्रौपदी को व्यभिचारिणी बताया। उसने कहा कि देवी को निर्वस्त्र कर देने में भी कुछ अन्यथा नहीं है।"
सुदामा ने देखा, कृष्ण के जबड़े पहली बार भिंचे थे।
"उस भरी सभा में देवी पांचाली दुःशासन के हाथों से बचने का प्रयत्न करती रहीं और बार-बार अपना प्रश्न दुहराती रहीं। उन्होंने अपने हारे हुए पतियों को पुकारा; पर वे उनकी सहायता को नहीं आये। तब उन्होंने कुरु वंश के वृद्धजनों से सहायता मांगी; किन्तु धर्म-अधर्म के नाम पर वे भी चुप रहे। एक विदुर ने बोलने का प्रयत्न किया तो दुर्योधन ने बोलने नहीं दिया। दुःशासन उनके वस्त्र खींचता जा रहा था, और देवी का शरीर उघड़ता जा रहा था; तब देवी ने सब ओर से निराश होकर, आपका नाम ले-लेकर सहायता के लिए पुकारा।"
कृष्ण की सारी चेतना जैसे उनकी आँखों में केन्द्रित हो गयी थी। "तब?" उन्होंने पूछा।
"देवी पांचाली के मुख से आपका नाम निकलते ही, जाने दुःशासन को क्या हुआ। उसके हाथ कांपने लगे, उसकी आँखें भय से फैल गयीं और मुख का वर्ण पीला पड़ गया। भयभीत होकर उसने देवी का वस्त्र छोड़ दिया और माथा पकड़कर भूमि पर ऐसे बैठ गया, जैसे उसे चक्कर आ गया हो।"
"सौभाग्यशाली है कि उसका माथा घूम गया, नहीं तो माथा कटकर भूमि पर गिरता।" कृष्ण जैसे अपने-आपसे बोले।
"इससे पाण्डवों को बहुत बल मिला।" चर बोला, "भीम अपना क्रोध नहीं रोक सके और उन्होंने दुःशासन का वक्ष चीरकर उसका रक्त पीने की प्रतिज्ञा की। देवी पांचाली ने भी प्रतिज्ञा की कि दुष्ट दुःशासन के हाथों खींचे गये इन बालों को तब तक खुला रखेंगी, जब तक दुःशासन के वक्ष के रक्त से उसे धो नहीं लेंगी। अर्जुन ने कर्ण के वध की प्रतिज्ञा की और सहदेव ने शकुनि के वध की। इन प्रतिज्ञाओं से धृतराष्ट्र एकदम डर गये। उन्होंने दुर्योधन को उसके अनुचित व्यवहार के लिए डांटा और देवी द्रौपदी को कहा कि वह दासी नहीं, कुरुवंश की जेठी बहू है। उन्होंने देवी पांचाली को वरदान मांगने के लिए कहा और देवी के वरदानों के अनुसार पाण्डवों को उनकी समस्त सम्पत्ति लौटा कर उन्हें दासत्व से मुक्त कर दिया।"
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