पौराणिक >> अभिज्ञान अभिज्ञाननरेन्द्र कोहली
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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...
"क्या युधिष्ठिर नहीं जानते थे कि शकुनि अत्यन्त धूर्त है और उससे जीतना सम्भव नहीं है?'' कृष्ण ने पूछा।
"जहां तक मैं जानता हूं, यह तथ्य सर्वविदित था वासुदेव!" चर ने उत्तर दिया, "किन्तु महाराज युधिष्ठिर ने इसका विरोध नहीं किया। वे कुछ इतने उत्साह से खेले कि कुछ ही दाँवों में अपना सब कुछ हार गये। उन्होंने इतनी शीघ्रता में इतने बड़े-बड़े दाँव बदे, जैसे वे सब कुछ स्वयं ही हार जाना चाहते हों। वे अपना धन-धान्य, राज-पाट, अपने भाई, स्वयं अपने आपको और अन्ततः महारानी द्रौपदी को भी हार गये।"
सुदामा ने कृष्ण की ओर देखा : कृष्ण के चेहरे पर अखण्ड शान्ति थी।
"दुर्योधन ने घोषणा की कि पांचाली द्रौपदी अब रानी नहीं, कौरवों की दासी है, इसलिए उसे एक दासी के रूप में सभा-भवन में उपस्थित किया जाये...।"
"पापी!" कृष्ण अपने होंठों में बुदबुदाये।
"पहले एक सारथि ‘प्रातिकामी' को इस कार्य के लिए भेजा गया। किन्तु देवी पांचाली उसके साथ नहीं आयीं। उन्होंने उसके माध्यम से एक प्रश्न पूछ भेजा कि यदि युधिष्ठिर पहले स्वयं अपने-आपको हार गये थे तो उन्हें अपनी पत्नी को दाँव पर लगाने का अधिकार कैसे था?"
"ठीक पूछा द्रौपदी ने।" कृष्ण बोले।
"पूछा तो ठीक ही," चर बोला, "किन्तु किसी ने उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। इस बार दुर्योधन ने दुःशासन को आदेश दिया कि देवी पांचाली जहां भी हों, जिस भी अवस्था में हों, उन्हें तत्काल घसीटकर लाया जाये और सभा में उपस्थित किया जाये। दुःशासन ने जाकर देवी को दासी के समान सम्बोधित कर सभा में चलने के लिए कहा। देवी ने उससे बचने के लिए राजा धृतराष्ट्र के अन्तःपुर की ओर भागने का प्रयत्न किया। दुःशासन एकवस्त्रा, रजस्वला देवी पांचाली को उनके बालों से पकड़कर सभा में घसीट लाया। न तो उसने यह सोचा कि वे केश, राजसूय यज्ञ के अन्त में अवभृथ स्नान के समय मन्त्रों से अभिसिंचित जल से धोए गये थे और न उसने पाण्डवों की शक्ति के विषय में सोचा। दुर्योधन ने पांचाली से अशोभन प्रस्ताव किये और कर्ण ने हंसकर कहा कि दायित्व से मुक्त होना चाहे तो द्रौपदी किसी राजकुमार से विवाह कर ले।"
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