पौराणिक >> अभिज्ञान अभिज्ञाननरेन्द्र कोहली
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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...
सहसा सुदामा का ध्यान उस सूचना की ओर चला गया। क्या अर्थ है इसका? ....युधिष्ठिर अपना सर्वस्व हार गये थे। अर्थात् इन्द्रप्रस्थ का राज्य, धन-धान्य, सत्तासम्पत्ति सब कुछ! अपने भाइयों तथा अपनी पत्नी पांचाली द्रौपदी को भी हार गये हैं। तो क्या वे दुर्योधन के दास हो गये हैं? दास! कृष्ण की बुआ के बेटे हैं पाण्डव! बलराम जैसे भाई। बलराम से कम नहीं माना है कृष्ण ने उन्हें। और फिर अर्जुन! कृष्ण का भाइयों से भी बढ़कर मित्र। सुभद्रा का पति। सुभद्रा से कितना प्यार करता है कृष्ण। इतनी छोटी है उससे कि उसे बहिन नहीं, सदा बेटी माना है कृष्ण ने। और अब अर्जुन, दुर्योधन का दास हो गया है...इन्द्रप्रस्थ का राज्य भी तो एक प्रकार से कृष्ण का ही स्थापित किया हुआ था। नहीं तो शायद दुर्योधन कुछ भी न देता पाण्डवों को। और दे भी देता, तो इन्द्रप्रस्थ में था ही क्या? कुछ वन थे, कुछ खण्डहर। कृष्ण ने ही अपने सहयोग से उसे एक सम्पन्न राज्य बना दिया था, इतना सम्पन्न कि युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया। कृष्ण ने उस यज्ञ में आगंतुकों के पैर धोए और युधिष्ठिर ने अग्रपुरुष के रूप में कृष्ण की पूजा की।...कृष्ण ने मध्य देश में धर्म-राज्य के रूप में स्थापित किया था इन्द्रप्रस्थ को...और युधिष्ठिर जुए में सब कुछ हार गया।
महल में पहुंचकर कृष्ण सीधे अपने कमरे में गये।
"बैठो सुदामा!" उन्होंने कहा, "विश्राम के लिए एकान्त चाहोगे या यहीं चर को बुला लूं।"
"बुला लो।"
कृष्ण ने अपना मुकुट उतार कर चौकी पर रखा और एक सिंहासन पर आराम से बैठ गये। चर आया तो बोले, "विस्तार से बताओ, क्या समाचार लाये हो।"
"अनर्थ हो गया है यादव श्रेष्ठ!" चर बोला, "समाचार कहने को उसमें क्या है।"
"बोलो।"
"हस्तिनापुर में नव-निर्मित सभा-भवन में भीष्म पितामह, महाराज धृतराष्ट्र, गुरु द्रोणाचार्य, महामन्त्री विदुर तथा अन्य वृद्धजनों एवं राजस्य वर्ग की उपस्थिति में चौपड़ का खेल आरम्भ हुआ।" चर बोला, "पाण्डवों की ओर से युधिष्ठिर खेल रहे थे और कौरवों की ओर से शकुनि।"
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