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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


शबरी, सूर, मीरा, कबीर, रैदास, केवट, गोपियाँ, नरसी, धन्ना आदि के ऐसे असंख्यों चरित्र मौजूद हैं, जिन पर विचार करने से प्रतीत होता है कि भावपूर्ण उत्कृष्ट अंत:करण का निर्माण योगाभ्यास के अतिरिक्त व्यावहारिक जीवन को शुद्ध रखने से भी संभव हो सकता है। उच्च अंतरात्मा द्वारा की हुई स्वल्प एवं अविधिपूर्वक की गई साधना भी भारी सत्परिणाम प्रस्तुत कर सकती है। वाल्मीकि की मनोभूमि जब पलटी तो शुद्ध राम नाम ले सकने में असमर्थ होने पर 'मरा-मरा' कहते हुए, उलटा नाम जपते हुए भी ऋषित्व को प्राप्त कर सके। कसाई, गणिका, अजामिल, अंगुलिमाल, अंबपाली आदि अनेक चरित्र ऐसे मौजूद हैं, जिनमें अंतःकरण के परिवर्तन होते ही स्वल्प-साधना से भी उच्च स्थिति की उपलब्धि का प्रमाण मिलता है।

देर तक कठोर शारीरिक तपश्चर्याएँ करने पर भी, बहुत पूजा उपासना करते रहने पर भी जब आत्मिक प्रगति नहीं दिख पड़ती तो उसका एकमात्र कारण यही होता है कि अंतःकरण के विकास का प्रयत्न नहीं किया गया, केवल पूजा तक ही साधना को एकांगी एवं सीमित रखा गया। साधना को औषधि कहा जाए तो सदाचार को पथ्य मानना पड़ेगा। परहेज बिगाड़ते रहने वाला, कुपथ्य करने वाला रोगी, अच्छी औषधि खाते रहने पर भी कुछ लाभ प्राप्त न कर सकेगा। पर यदि पथ्यपूर्वक रहा जाए तो मामूली औषधि से भी रोग दूर हो सकता है। भजन के साथ परमार्थप्रियता भी आवश्यक है। भावनाओं की उत्कृष्ट स्थिति और चरित्र में आदर्शवाद की प्रक्रिया यदि परिपूर्ण रहे तो फिर साधना के असफल होने का कोई कारण नहीं हो सकता।

स्वर्ग किसी स्थान का नाम नहीं, भावना की उत्कृष्ट भूमिका को ही स्वर्ग कहते हैं। ऊँची भावनाएँ जिस अंतःकरण में प्रवेश पा चुकी हैं; उसके लिए हर पदार्थ, हर प्राणी, हर अवसर, स्वर्गीय आनंद की अनुभूति प्रस्तुत करेगा। मुक्ति का अर्थ है—वासनाओं और तृष्णाओं के बंधनों से छुटकारा पाना और पशुता से दूर होना। स्वार्थ और संकीर्णता को जिसने ठुकरा दिया, वह जीवनमुक्त हो गया। मुक्ति का आनंद शरीर रहते हुए भी प्राप्त किया जा सकता है, सद्गति के रूप में वह मरने के बाद भी प्राप्त होता है। जीव को जो बंधन बाँधे हुए हैं, वह काम-क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर के ही तो हैं। उन्हें तोड़ते हुए मनोभूमि को उदार, विशाल, पवित्र एवं उत्कृष्ट बना लेना, मुक्ति साधन है। जिस किसी को भी मुक्ति मिली है, उसे आत्म शोधन भी करना पड़ा है।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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