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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


जिस भय के कारण लोग कायर-कुचाली और कापुरुष बन जाते हैं, उसकी जननी आसक्ति ही है। देहासक्ति के कारण ही लोग इस भय से उसके रंजन-मंजन में लगे रहते हैं कि कहीं यह बूढी न हो जाए, कहीं इसकी शक्ति न चली जाए, कहीं भोग वासना के अयोग्य न हो जाये। इसी भय के कारण ही उसे विविध-पदार्थों और पट-परिधानों की पूजा-पगार चढ़ाते रहते हैं। वे पता नहीं, यह क्यों नहीं सोच पाते कि यह नश्वर मिट्टी एक दिन मिट ही जानी

है। इस पर कितना ही चंदन-वंदन क्यों न चढ़ाया जाए, कितनी ही मनौती और मिन्नतें क्यों न की जाएँ, समय पाकर यह बूढी तथा कुरूप ही हो जायेगी। आवश्यकता से अधिक शरीर को मान्यता देने का कारण यह देहासक्ति ही है।

इस नि:सार देहासक्ति के कारण मनुष्य न तो दृढ़तापूर्वक साधना कर पाता है और न नियम-संयम का निर्वाह। अधिक साधने अथवा बाग खींचने से कहीं यह निर्बल न हो जाये—अधिक संयम, नियमों से उसको कष्ट होगा, परमार्थ पथ पर डाल देने से इसके भोग-विलास के अधिकार छिन जायेंगे आदि-आदि न जाने कितनी कल्पनायें मनुष्य को देहाराधक बना देती हैं।

इस देहासक्ति से मनुष्य की बड़ी गहरी हानि होती है। देह को प्रधानता मिलते ही आत्मा पीछे रह जाती है। आत्मा के गौण होते ही अज्ञान का घना अंधकार घेर लेता है और तब उस अंधकार में इस मानव जीव की जो-जो दुर्दशा होती है, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। उसे भय, संशय, संदेह तथा आशंकाओं की डायनें हर समय सताया करती हैं। एषणायें और तृष्णायें उसे एक क्षण भी विश्राम नहीं लेने देतीं। आस्तिकता, आस्था और अनागत भविष्य के सारे दीप बुझ जाते हैं और मनुष्य एक अंधेरा अंत पाकर, अनंत अंधकार में जाकर युग-कल्पों के लिए डूब जाता है।

शरीर और कुछ नहीं एक साधन मात्र है, आत्मा के उद्धार का साधन। इसकी खोज-खबर रखनी तो चाहिये, पर उसी सीमा तक जहाँ तक यह साधन रूप में आत्मोद्धार में सहायक हो सके। इसे स्वस्थ तथा सशक्त बनाये रखने के लिए जो भी जरूरी हो करिये पर इसकी इंद्रिय-लिप्सा की जिज्ञासा का कभी भी रंजन न करिये, विषय-भोग और आराम, विश्राम जिन्हें यह माँगा करता है, इसके लिए घातक तथा अनावश्यक है। इनकी सुविधा पाकर यह शरीर आलसी, प्रमादी और ढीठ बन जाता है और तब हर उस साधना में आनाकानी करने लगता है, जो आत्मा के उद्धार में आवश्यक होती हैं। अस्तु देहाभिमान अथवा आसक्ति से सदा सावधान रहकर दूर रहना चाहिए।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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