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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


वस्तुओं की, व्यक्तियों की, साधनों की परिस्थितियाँ अपने सुख-दुःख का कारण मानी जाती हैं। उन्हें बदलने या सुधारने के लिए प्रयत्न किया जाता है। पर क्या कभी यह भी सोचा है कि अपनी आंतरिक स्थिति में हेर-फेर किये बिना, क्या बाह्य परिवर्तन हमारे लिए अभीष्ट परिणाम उपस्थित कर सकेंगे?

इस कुरूप संसार में सुंदरता कहाँ? यदि सौंदर्य का अजस्र दर्शन करना हो तो अपनी अंतरात्मा में सौंदर्यानुभूति का विकास करना होगा, इस परिवर्तन के साथ ही हर वस्तु सुंदर दीखने लगेगी। इस निर्जीव, निष्प्राण, निष्ठुर दुनिया में प्रेम कहाँ? यदि प्रेम की प्यास है तो अपनी आत्मा में भरे हुए प्रेम के अमृत को चारों ओर बिखेरना पड़ेगा। उसके छींटे जहाँ कहीं भी पड़ेंगे वहाँ सब कुछ प्रेमास्पद ही दीखने लगेगा। इस दुखरूप जड़ जगत् में भोगने योग्य क्या है? सब कुछ स्वाद रहित है। स्वाद तो अपनी इंद्रियों में बसी हुई रसना में है। रसना नष्ट हो जाने पर यहाँ स्वादिष्ट रह ही क्या जायेगा? यदि स्वाद की लालसा हो तो अपनी शुद्ध रसना को जाग्रत् करें, हर पदार्थ रसमय लगने लगेगा।

हम निर्धन क्यों रहें? अपने सीमित धन को ही अपना मानने की अपेक्षा सारी संपदा को अपने माँ-बाप (परमात्मा) की ही जायदाद क्यों न मानें? हम मित्रों का, पुत्रों का, स्वजनों का अभाव क्यों अनुभव करें? इस सारी वसुधा को ही कुटुंब क्यों न मानें? हम असहाय एवं दुर्बल क्यों रहें? अपनी आत्मा में भरे हुए अनंत बल को ही विस्तृत एवं विकसित क्यों न करें? यह विकास जितना ही अग्रगामी होगा, उतने ही अनुपात में संसार हमारे लिए सहायक एवं उपयोगी प्रतीत होने लगेगा।

अपने अंदर बहुत कुछ है। बहुत कुछ ही नहीं, सब कुछ भी है। बाहर तो केवल भीतर की छाया मात्र है। इस अंदर के बहुत कुछ को ढूँढ़ना, सुधारना, बनाना और बढ़ाना यही अध्यात्म का महत्त्व है। जो कुछ इस संसार में सुख, सौंदर्य, सहयोग, प्रिय, मधुर, लाभ, संतोष, आनंद एवं उल्लास दिखाई देता है, वह सब अपने भीतरी तत्त्व का ही छाया दर्शन है। छाया के पीछे न भाग कर हम उद्गम का आश्रय ग्रहण करें, यही अध्यात्म है, यही अध्यात्म का संदेश है।



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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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