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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक

आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें


इस जीवन के बाद मनुष्य का एक और भी जीवन है, जो कि इस जीवन से लाखों-करोड़ों गुना लंबा है। कितने वर्षों, युगों और कल्पों तक वह जीवन चलता है, इसका अनुमान संभव नहीं है। वह एक प्रकार से अपनी अपरिमित अवधि के कारण अनंत और अमर ही कहा जा सकता है। उसे पारलौकिक जीवन कहा गया है।

पारलौकिक जीवन के विश्वास में संदेह की गुंजायश अब नहीं रह गई। आज का विज्ञान भी मनुष्य की रहस्यों को खोजता हुआ, कुछ ऐसे निष्कर्ष पर पहुंच रहा है, जिसमें पारलौकिक जीवन के प्रमाण मिले हैं। किंतु भारतीय ऋषि-मुनियों ने तो अपनी साधना, अपने ज्ञान और अपनी तपस्या के आधार पर इसका बहुत पहले पता लगाकर घोषणा कर दी थी और सारा भारतीय जीवन उसको ही लक्ष्य मानकर, उसको ही दृष्टि में रखकर निर्धारित किया गया है। पारलौकिक जीवन को अदृष्टिगोचर रखकर लौकिक जीवन नहीं जिया जा सकता और जो ऐसा करते हैं, अनियोजित तथा अबूझ जीवन जीते हैं, वे धोखा खाते हैं और अपने उस अनंतावधि जीवन के लिए काँटे बो लेते हैं।

लौकिक जीवन पारलौकिक जीवन की तैयारी का अवसर है। इसको ही यथार्थ अथवा अंतिम जीवन मान लेना भारी भूल है। मनुष्य यहाँ इस जीवन में जो कुछ पाप-पुण्य, दुःख-सुख, भलाई-बुराई, स्वार्थ-परमार्थ संचय करता है, वही उसके साथ जाकर उस पारलौकिक जीवन में फलित तथा प्रस्फुटित होता और उसी के अनुरूप जीवन अनंतकाल तक सुख-दुःख अथवा स्वर्ग-नरक भोग करता है। वर्तमान जीवन अनागत जीवन की तैयारी का एक ही अवसर है। इस तथ्य को कभी न भूलना चाहिए और उसको सुखद तथा संतोषप्रद बनाने के लिए, यहीं अभी से तैयारी कर लेनी चाहिए।

जीव का जागतिक जीवन अविश्वसनीय तथा नश्वर है। इसे नष्ट तो होना ही है, पर साथ ही यह भी पता नहीं कि यह सौ वर्ष तक जायेगा या इसी क्षण अथवा अगले क्षण छूट जायेगा। इस नश्वरता और क्षणिकता के प्रमाण बनकर न जाने कितने ही अकस्मात् मरने वाले आँखों और कानों के सामने से गुजरते रहते हैं। सोते हुए, खाते हुए, पीते हुए, हँसते हुए, बोलते हुए, खेलते और काम करते हुए, न जाने कितने जीव नित्य ही इहलीला समाप्त कर अपने दीर्घकालीन पारलौकिक जीवन में प्रवेश करने और यहाँ का लेखा-जोखा भोगने के लिए चल देते हैं। बेटा बैठा रहता है, पत्नी खड़ी रहती हैं, संबंधी देखते रहते हैं, संपत्ति और संचय पड़ा रहता है, पर आवाज लगते ही पंछी पूरी-अधूरी योजनायें, कार्यक्रम, बातचीत और व्यवहार-बर्ताव सब कुछ छोड़कर उड़ जाता है।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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